एक बरसात ऐसी भी
काव्य साहित्य | कविता सुनील कुमार मिश्रा ‘मासूम’1 Jul 2025 (अंक: 280, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मूसलाधार बरसात हो रही थी
उसी समय मेरी आँखों से
बरसात नहीं रुक रही थी
बिजली जो गिर गई थी
बाड़े में बँधी हमारी
भैंस पर।
मैं तो बच्चा था
पर देखा था मैंने
घर के हर बड़े को
रोते हुए
कांति हमारे घर की
भैंस नहीं घर की सदस्या थी।
बारिश थमने के बाद
पता चला
आसमान और मेरे रोने
के अलावा
गाँव भर में कुछ लोगों
की आँखों से भी बारिश थमने
का नाम नहीं ले रही थी
महल्ले में लीला काकी की
आँखें भी बरस रही थी
बारिश के पहले आए
अंधड़ ने
उसके घर की चद्दर वाली
छत जो छीन ली
पड़ोसी ने बताया
की सड़क पर
श्यामु लुहार की
पत्नी भी सिसक रही है
उसका आशियाना जो
उजड़ गया था
इन सबका दुख
कुछ समय का था
पर मैं कैसा भूल पाऊँगा
अपनी कांति को!
पहले ये ही पता था कि
बारिश में मोर नाचते है
कोयल गीत गाती है
बारिश की हरियाली
मन को हरने वाली
रहती है
ऐसी बरसात का बुरा
अनुभव पहली बार हुआ था।
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