ये कैसा स्वर्ग है?
काव्य साहित्य | कविता सुनील कुमार मिश्रा ‘मासूम’1 Jun 2025 (अंक: 278, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
तेरा नाम तो वैसे जन्नत है,
आबाद रहे हमारी भी मन्नत है,।
तुझको मेहर दे रखी क़ुदरत है,
क्यूँ हमने झेली ये ज़िल्लत है॥
मानवता भी तो एक धर्म है,
क्या ग़ैर धर्म होना ही जुर्म है।
वसुधैव कुटुंबकम् हमारा सार है,
फिर भी चला दिए हम पर हथियार हैं॥
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