गहराई अन्तस की
काव्य साहित्य | कविता बबिता कुमावत15 Jun 2025 (अंक: 279, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
गहराई अन्तस की कोई ना जाने,
छिपे हुए घावों को कोई ना जाने
कोई नहीं जानता भावों के माने,
अन्तस् रखे सुख, दुःख भावों को साने
पीड़ा की गहराइयों को कोई ना जाने,
कवि के भावों को कोई ना जाने
मर्मर करती पीड़ाओं के अनंत है माने,
कवि संयुक्त भावों को है रखे है साने
मुख मुस्कान के पर्दे का रहस्य कोई ना जाने,
करवटें लगाती गंभीरता को कोई ना जाने
किसी के भावों का किसी के लिए क्या माने,
चीरती हुई संवेदनाओं को कवि रखती है साने
अन्तः स्तल में लहराते दुखों को कोई ना जाने,
जीवन के रहस्यों को कोई ना जाने
टकराते अनंत भावों के अनंत है माने
बबिता प्रकाश भी भावों की गागर को रखते हैं साने।
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