हिमाचल और अवसाद
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता संजय एम. तराणेकर15 Sep 2024 (अंक: 261, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
जनप्रतिनिधि बाँट रहे,
हिमाचल को प्रसाद।
फँसा क़र्ज़ के दलदल में,
हुआ उसको अवसाद।
मुफ़्त की योजनाओं से,
हुआ उसका बुरा हाल।
दो माह की तनख़्वाह देकर,
नेताजी जता रहे एहसान!
इनकी वजह से राज्य का,
ख़ज़ाना हो गया है वीरान।
ऊँट के मुँह में ज़ीरा देकर,
ख़ूब लूट रहे वाह-वाही।
सुना है तनख़्वाह रखी है होल्ड,
कहीं रखा हो जैसे कोई गोल्ड।
समझ नहीं आता इन लोगों का,
न जाने आगे क्या है प्लान?
जनता तो हो गई रघुबीरा,
वह तो ख़ाए ककड़ी और खीरा।
नज़र आ रहा इनको सेब,
भरनी है अब तो इनको जेब।
ढूँढ़ रहा है माँ का आँचल,
हमारा प्यारा वो हिमाचल।
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