क्यों? यूँ जताते हो अपनी नाराज़गी
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता संजय एम. तराणेकर15 Dec 2024 (अंक: 267, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
क्यों? यूँ जताते हो अपनी नाराज़गी,
जब लौटकर महायुती में ही आना है।
क्या? ये बीमारी भी एक बहाना है,
फिर लौटकर इसी घर ही आना है!
अपरिपक्व कह रहा यह ज़माना है।
क्यों? यूँ जताते हो अपनी नाराज़गी,
जब लौटकर महायुती में ही आना है।
अब न जाना सतारा नेटवर्क है खटारा,
वे दिल्लीवाले हैं अब न खोलेंगे पिटारा!
मुश्किल में पाओगे अजब ही है नज़ारा।
क्यों? यूँ जताते हो अपनी नाराज़गी,
जब लौटकर महायुती में ही आना है।
छोड़ दो ज़िद अब नहीं रही है वह बात,
उनका प्रचंड है बहुमत छूट जाएगा साथ!
ऐसा ना हो कहीं मलते रह जाओ हाथ।
क्यों? यूँ जताते हो अपनी नाराज़गी,
जब लौटकर महायुती में ही आना है।
सोच लो, अगर यही रवैया रखना है,
नेता बनकर ख़ुद को भी परखना है!
हा रिक्त है नेता प्रतिपक्ष का भी स्थान,
उस पर हो जाओ एकनाथ विराजमान।
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