मिच्छामी दुक्कड़म
कथा साहित्य | कहानी संजय एम. तराणेकर15 Sep 2024 (अंक: 261, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
आओ मिटाएँ जाति, धर्म का भेद,
अपनी ग़लतियों पर व्यक्त करें खेद।
ये दो शब्द ‘मिच्छामी दुक्कड़म’
विशेष हैं सभी को याद रहे हरदम।
ज़ब शब्दों, कर्मों या विचारों से,
हुई हो किसी भी प्रकार की पीड़ा।
ग़लती से भी पैरों में आकर,
अस्तित्व से मिट गया, हो कोई कीड़ा।
इस पवित्र अवसर पर हृदय से,
उन सभी से क्षमा माँग उठाओ बीड़ा।
करो त्याग अहंकार की भावना,
कर लो सच्चे मन से क्षमा की कामना।
सच्ची शान्ति और सुख सम्भव तभी,
करों एक-दूजे को क्षमा का साहस सभी।
दिलों में प्रेम और करुणा का हो भाव,
जलाओ ज्योत प्रेम की हर-घर में हो छाँव।
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