कामना
काव्य साहित्य | कविता विशाल शुक्ल1 Jan 2025 (अंक: 268, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
हे प्रभु मेरे ईश!
बीत रहा दो हज़ार चौबीस
विदा लेते इस वर्ष में
इतना कर जाना
श्वास श्वास में हो नाम आपका
रोम रोम में मेरे बस जाना!
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