प्रेम का रंग
काव्य साहित्य | कविता विशाल शुक्ल23 Mar 2016
भरकर हृदय में प्रेम का रंग
अपनी मीठी बोली में
आ खेल ले रंग
मेरे संग होली में
समय नहीं बेरंग
गुमसुम उदास जीने का
मौक़ा है दुख को पछाड़
दर्द और ग़म पीने का
मेरी भावनाओं का रंग
जब तन से अन्तर्मन तक जाएगा
देखना तुम
उत्साह उल्लास के साथ
मन भी फाग गाएगा
फिर कितना भी दुख हो
जीवन की फगुनाई में
डाल देना हँसी का मदमस्त रंग
इस काली परछाईं में
देखकर ज़िन्दगी भी
करेगी मनभावन रंगों की बौछार
कहेगी तुमसे खेलो तुम खेलो
जमकर रंगों का त्योहार
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