कुछ भी दूर नहीं था
कथा साहित्य | कहानी नीरजा हेमेन्द्र1 Aug 2024 (अंक: 258, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
“सब हो गया,” सरला ने अपनी बेटी पूर्वी से पूछा।
“हाँ मम्मी, सब हो गया। भाभी और बच्चा ठीक हैं,” पूर्वी ने माँ कहा।
पूर्वी की भाभी की डिलीवरी होने वाली थी। वो अपनी भाभी की डिलीवरी के समय होने वाले घर के काम में मदद करने के लिए ससुराल से आयी थी। पूर्वी के विवाह को भी तो अभी एक वर्ष ही हुआ है। मम्मी ने मदद के लिए उसके पति के पास यहाँ आने के लिए फोन किया और उन्होंने बिना देर किये पूर्वी को भेज दिया।
इसका कारण यह था कि माँ घर में अकेली थी। पापा घर के किसी काम में माँ की मदद नहीं कर पाते थे। दोनों की उम्र हो चली थी। भाई को कार्यालय से एक-दो दिनों से अधिक का अवकाश नहीं मिल पा रहा था। अतः घर व अस्पताल की कार्यों में सहायता करने के लिए पूर्वी अपनी ससुराल से आयी है।
भाई की दो वर्ष की एक बेटी पहले से है, जिसकी देखभाल सरला को ही करनी थी। सरला बच्ची को लेकर इस समय घर में थी। पूर्वी सुबह सबके लिए भोजन बनाकर भाभी के लिए भोजन लेकर सुबह के दस बजे तक अस्पताल आ गयी थी। दोपहर बारह बजे तक भाभी की डिलीवरी हो गयी।
पूर्वी इस समय अस्पताल में थी कि सरला का फोन आ गया। उन्होंने अपनी बहू का हाल पूछने के लिए पूर्वी के पास फोन किया था।
“जच्चा-बच्चा दोनों ठीक हैं, ये तो अच्छी बात है। किन्तु क्या हुआ है?” सरला ने अपनी बेटी पूर्वी से पूछा।
“भैया को प्यारी सी बच्ची हुई है। लक्ष्मी आयी हैं माँ। पापा से बोलकर मिठाई मँगवा लेना,” पूर्वी ने कहा।
“अपने भइया को ये ख़ुशख़बरी दे दी?” अपनी माँ के शब्दों में छिपे व्यंग्य को पूर्वी समझ गयी।
“हाँ . . . हाँ . . . सबसे पहले भइया को ही ऑफ़िस में फोन कर के बताया था। बच्ची और भाभी ठीक हैं ये जानकर वे बहुत ख़ुश थे,” पूर्वी ने माँ को बताया।
“तुम लोग तो ख़ुश होगे ही। हमारे बारे में कौन सोचता है? इस परिवार को आगे बढ़ाने वाला कोई है? कोई नहीं। तुम्हारी भाभी को लड़की पर लड़की हुई जा रही है . . .,” माँ बोलती जा रही थीं।
“अच्छा मम्मी, बाद में बात करती हूँ। इस समय डॉक्टर राउण्ड पर आने वाले हैं। भाभी को दवा देने का भी समय हो रहा है,” कह कर पूर्वी ने फोन रख दिया।
पूर्वी जानती है कि उसकी माँ पुराने विचारों की हैं। किन्तु इतने भी पुराने विचारों की नहीं कि भइया की दूसरी बेटी होने पर इतने कटु शब्दों का प्रयोग करें। मम्मी की बात पूर्वी को कुछ अच्छी नहीं लगी।
क्या मम्मी की एक बेटी मैं नहीं हूँ? मैं भी तो बेटी हूँ। इस घर में दो नन्ही-नन्ही परियाँ आ गयीं तो माँ को क्या परेशानी हो गयी? माँ तो ऐसी ही बेकार की बातें करती हैं। आज के समय में वे न जाने किस दुनिया में रह रही हैं . . . मन ही मन बोलती हुई पूर्वी मैटर्निटी रूम में भाभी के पास चली गयी।
तीन दिनों पश्चात् भाभी को डिस्चार्ज होना था। प्रतिदिन कुछ देर के लिए एक बार दोपहर को पूर्वी घर जाती। स्वयं नहा-धोकर भाभी के लिए दोपहर के भोजन के लिए दलिया और दूध लेकर आती। पूर्वी का और भाभी का रात का भोजन भाई लेकर आता। शेष पूरे समय पूर्वी यहीं अस्पताल में रहती।
♦ ♦ ♦
“मम्मी तुम भी चलो न भाभी को देखने अस्पताल। आज ही मेरे साथ चलो। कुछ देर रुकना तत्पश्चात् आ जाना। भाभी कल या परसों घर आ ही जाएँगी। कहने को ये न रहे कि तुम अपनी बहू को देखने अस्पताल नहीं गयीं,” अगले दिन पूर्वी नहाने के लिए दोपहर को घर आयी थी तो माँ से कहा।
“नहीं . . . नहीं . . . मैं क्या करूँँगी वहाँ जाकर? तुम लोग हो न वहाँ दूसरी लड़की को देख कर ख़ुश होने के लिए,” मम्मी का बात सुनकर पूर्वी को बहुत बुरा लगा।
“ऐसी बात क्यों कर रही हो मम्मी? चाची को पता चला तो वो भी आयीं देखने। भइया के कार्यालय से भी कई लोग आये देखने। बस, घर से न आप आयीं न पापा आये। पापा ज़्यादा कहीं आते-जाते नहीं हैं। किन्तु आप तो हमारे साथ जा सकती हैं। आकर देखिए तो कितनी प्यारी बच्ची है। देखते ही सबका मन मोह लेती है। दो दिन की बच्ची, सबको देखकर मुस्कुराती है,” पूर्वी ने माँ से कहा।
“ठीक है . . . ठीक है . . . अब तुम लोग घर आओगे तो इकट्ठे ही देखेंगे,” माँ ने कहा।
पूर्वी जानती है कि माँ हठी भी हैं और कुछ पुराने विचारों की भी हैं। उच्च शिक्षा न सही इण्टरमीडिएट उत्तीर्ण मम्मी पुत्र-पुत्री में इतना फ़र्क़ कैसे कर सकती हैं? कैसे वो बेटी होने पर इतनी निष्ठुर हो सकती हैं?
माँ को अस्पताल नहीं आना था न आयीं। उन्हें दूसरी बार बहू से बेटा चाहिए था, बेटी नहीं। इसमें सारा दोष वो बहू का मानती थीं। इस मामले में पूर्वी क्या कर सकती है, मात्र अपनी मम्मी को समझाने के।
उसे इस अति आवश्यक अवसर पर ससुराल वालों ने मायके भेज दिया यही क्या कम है? अब वह बेटा-बेटी के चक्कर में माँ से बहस तो नहीं कर सकती है? ससुराल में किसी को पता चल जाये या उसके पति को ही पता चल जाये कि मायके में मेरी माँ से वाद-विवाद हो गया है तो उसका क्या प्रभाव पड़ेगा? ये बात मम्मी नहीं समझ सकतीं।
हो सकता है कि आगे आवश्यकता पड़ने पर उसके ससुराल वाले माँ के घर आने ही न दें। वह करे तो क्या करे? पूर्वी माँ को समझाना चाहती थी। किन्तु माँ हैं कि आज के समय को समझना ही नहीं चाहती।
कल भाभी अस्पताल से घर आ जाएँगी। जो भी हो वह भाभी को माँ की सोच के बारे में पता ही न चलने देगी। भाभी और नन्ही परी का स्वागत् बहुत ख़ुशी से करेगी। धीरे-धीरे माँ भी समझ जाएगी। शनैः शनैः सब कुछ सामान्य हो जाएगा।
अगले दिन पूर्वी भाभी को लेकर अस्पताल से घर आयी। आते ही उसने बच्ची को माँ का गोद में रख दिया। मम्मी ने बच्ची को गोद में ले तो लिया किन्तु पूर्वी को उनके चेहरे पर ख़ुशी नहीं दिखी। पूर्वी ने मम्मी की इस बात को अनदेखा कर दिया।
पूर्वी ने भाभी के चेहरे की ओर देखा, भाभी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। वह ख़ुश लग रही थीं। भाभी की बेटी ऑपरेशन से हुई थी अतः डॉक्टर ने उन्हें कुछ दिन और आराम करने को कहा था। पूर्वी भाभी के आराम, समय पर भोजन, दवा और बच्ची की देखभाल पर पूरा ध्यान दे रही थी।
♦ ♦ ♦
पूर्वी को मम्मी के यहाँ भाभी की डिलीवरी में आये दस दिन हो गये थे।
“अरे भाई, अब घर कब आओगी? पूरे दस दिन हो गये मुझसे दूर गये हुए,” पूर्वी के पति का फोन था।
“हाँ, दस दिन हो गये? व्यस्तता इतनी थी कि दिन-रात का पता ही नहीं चला। क्या दस दिन हो गये?” पूर्वी ने चुहल करते हुए कहा।
“तुम्हें नहीं पता चला तो क्या, मुझे तो एक-एक पल का तुम्हारे बिना पता चल रहा था। तो कब आ जायें तुम्हें लेने? मम्मी भी पूछ रही थीं,” पूर्वी के पति ने हँसते हुए कहा।
“ठीक है। आपने यहाँ भेजा है। ये अच्छी बात है। तो मम्मी-पापा से पूछकर आज ही बताती हूँ। आप लेने आ जाइएगा,” पूर्वी ने कहा।
घर में सबका कुशलक्षेम पूछने के पश्चात् पूर्वी ने फोन रख दिया।
“किसका फोन था बेटा?” पूर्वी को फोन पर बातें करते देख माँ ने पूछा।
“इनका फोन था मम्मी? मुझे लेने आने के लिए पूछ रहे थे। मुझे बताना पड़ेगा कि कब मुझे लेने आयें,” पूर्वी ने कहा।
“दामाद जी अभी लेने आएँगे? इतनी शीघ्र?” माँ ने कहा।
“कह रहे थे, दस दिन हो गये मुझे यहाँ आये हुए। अब मुझे बता दो कि कब वो मुझे लेने आयें। मुझे फोन कर उनसे बताना पड़ेगा,” पूर्वी ने कहा।
“यहाँ का काम कैसे होगा? कौन करेगा? थोड़ा और नहीं रुक सकती?” माँ ने कहा।
“अब मेरी या आपकी मर्ज़ी थोड़े न चलेगी। आपकी आवश्यकता पर इतने दिनों के लिए भेज दिया यही क्या कम है? वहाँ भी मम्मी (सास) अकेली सारा काम सम्हाल रही होगी। मुझे उन सबका भी तो ध्यान रखना है। अब बता दीजिए मम्मी उन्हें कब आने के लिए कह दूँ?” पूर्वी ने माँ पूछा।
“मैंने तो सोचा ही नहीं था कि तुम्हें जाना भी है,” माँ ने कहा तो पूर्वी मुस्कुरा पड़ी।
“तुम्हें क्या बताना मम्मी कि बेटियों को जाना ही होता है। मायके में माता-पिता द्वारा बेटियों को जितना प्यार करना है कर लेना चाहिए। क्योंकि उन्हें एक दिन दूसरे के घर जाकर उस घर को अपना घर बनाना रहता है,” पूर्वी ने मुस्कुराते हुए कहा।
“ठीक है बेटा, तुम दामाद जी को परसों बुला लो। तुम एक दिन और हम लोगों के साथ रह लोगी,” माँ ने कहा।
“ठीक है माँ! मैं उन्हें परसों आने के लिए कह दे रही हूँ,” पूर्वी ने कहा।
पूर्वी ने फोन कर अपने पति को माता-पिता की ओर से उसे लेने परसों आने के लिए कह दिया। पूर्वी के जाने की बात सुनकर भाई-भाभी थोड़े से उदास दिखे। भले ही उन्होंने सबसे अपनी उदासी छुपा ली थी। किन्तु पूर्वी से उनकी उदासी कहाँ छुप पाती?
“भइया! मैं कुछ दिनों में फिर ससुराल में सबकी सहमति ले कर आऊँगी। आप कुछ दिनों तक भाभी के स्वास्थ्य का ध्यान रखिएगा। फिर भाभी सब सम्हाल लेंगी। माँ की किसी बात को दिल से न लगाइएगा। धीरे-धीरे वो सब कुछ करेंगी। सब ठीक हो जाएगा,” पूर्वी ने अपने भइया से कहा।
“हाँ पूर्वी! तुमने इस कठिन समय पर आकर मेरे घर में सब कुछ सम्हाल लिया। मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक बेटी तुमसे सीखे। तुम्हारी जैसी बने। अच्छा पूर्वी अब मैं तुम्हारी विदाई के लिए कपड़े, मिठाई, फल आदि चीज़ों की व्यवस्था कर दूँ . . .।अभी तक हम सब नवजात के कार्यों मेें व्यस्त थे। अब थोड़ा समय मिला है तो तुम्हारे लिए कुछ तैयारी कर दूँ,” भाई ने पूर्वी से कहा।
भाई की बातें सुनकर कुछ क्षण के लिए पूर्वी भावुक हो गयी। पुनः स्वयं को सम्हाला और भाभी के कमरे में चली गयी।
“मम्मी, ये लो बच्ची की मालिश कर दो। प्रतिदिन लगभग इसी समय एक बार इसकी मालिश कर दिया करो,” भाभी के कमरे से बच्ची को गोद में लेकर पूर्वी आयी और बीच के कमरे में तख़्त पर बैठी अपनी मम्मी की गोद में दे दिया।
पूर्वी की मम्मी ने अपनी सप्ताह भर की पोती को सम्हाल कर गोद में पकड़ लिया।
“मैं बच्ची की मालिश करने वाला तेल लेकर आती हूँ। भइया मालिश के लिए अच्छी कम्पनी का तेल लेकर आये हैं,” कह कर पूर्वी भाभी के कमरे से तेल की एक शीशी लेकर आयी और माँ को पकड़ा दिया।
पूर्वी ने देखा कि माँ बच्ची का चेहरा ध्यान से देखकर मुस्कुरा रही थीं। बच्ची भी मुस्कुरा रही थी। माँ बच्ची को सीने से लगा कर चूमने लगी।
“एक छोटा तौलिया तो दो। इनकी बढ़िया से मालिश कर दें,” माँ ने बच्ची के हाथों को चूमते हुए पूर्वी से कहा।
पूर्वी शीघ्रता से गयी और भाभी के कमरे से एक छोटी तौलिया लेकर आयी। पूर्वी ने देखा कि बच्ची की मालिश कर के मम्मी ने उसे दूसरे कपड़े पहना कर काजल का टीका लगा कर भाभी के कमरे की ओर जा रही हैं।
“लो बहू। इसको दूध पिला कर आराम करने के लिए लिटा दो। तुम भी कुछ फल और ड्राईफ्रूट ले लो। समय हो रहा है,” कह कर माँ अपने कमरे में आ गयीं।
“बच्ची का तौलिया और तेल की शीशी हमारे कमरे में रहने दो,” माँ ने पूर्वी से कहा। वह प्रसन्न थी कि घर में सब कुछ सामान्य हो गया। सबसे अच्छी बात ये है कि बच्ची को देख कर माँ की नाराज़गी ख़त्म हो गयी थी।
अगले दिन माँ स्वतः भाभी के कमरे में जाकर बच्ची को अपने पास ले कर आईं। समय से उसका मालिश कर दूध पिलाने के लिए भाभी को देकर आ गयीं।
पूर्वी ने देखा कि दिन में जब भी इच्छा होती और बच्ची जगी होती तो माँ उसे अपने पास लेकर आ जातीं और ख़ूब लाड़-प्यार करतीं और गोद में खिलाती रहतीं। अब दो लड़कियाँ हो गयीं वाला निराशा का भाव माँ के चेहरे से तिरोहित हो गया था। माँ ख़ुश थीं।
पूर्वी को आये हुए दस दिन इतनी शीघ्र व्यतीत हो गये तो दो दिन व्यतीत होने में दो पल लगे। तीसरे दिन पूर्वी का पति उसे लेने आ गया। भारी मन से माँ-पापा, भाई-भाभी ने उसे विदा किया।
भाभी तो ऐसे रोने लगीं जैसे अपनी बेटी को विदा कर रही हों।
“मत रोओ भाभी। मैं शीघ्र आऊँगी। अपनी बच्चियों से मिलने शीघ्र आऊँगी,” पूर्वी ने भाभी को चुप कराते हुए कहा।
“पूर्वी तुमने भाभी को बहुत देखभाल की। ऐसे समय पर मेरे परिवार को सम्हाल लिया, यह मैं उम्र भर नहीं भूलूँगा। तुम्हारा शुक्रिया कैसे करूँ पूर्वी,” विदा के वक़्त भाई ने भावुक होते हुए पूर्वी से कहा।
पूर्वी ने अपना सान्त्वना भरा हाथ भाई के कंधे पर रखा। माता-पिता, भाभी और दोनों बच्चियों से स्नेह से मिली और पति के साथ ससुराल के लिए निकल पड़ी।
पूर्वी की कार आगे बढ़ रही थी किन्तु मन था कि पीछे मायके में रुक-सा गया था। उसी घर से लगभग एक वर्ष पूर्व वह विदा कर ससुराल गयी थी। इस बीच वह दो बार मायके में आयी थी। पहली बार चौथ में पगफेरे के समय, दूसरी बार रक्षा बन्धन में।
. . . और अब तीसरी बार . . . उसे स्मरण है अब लगभग पन्द्रह-सोलह दिनों पूर्व जब भाई का फोन पहले पूर्वी के पास तत्पश्चात् उसके पति के पास आया था। भाई बता रहा था कि भाभी की डिलीवरी होने वाली है। अम्मा से अब उतना काम नहीं हो पाता। कुछ दिनों के लिए तुम यहाँ आ सकती हो पूर्वी?” भाई के स्वर में विवशता के साथ अनुरोध भी था।
उसके पति ने बिना यह पूछे कि वह कितने दिनों तक वहाँ रहेगी? उसके वहाँ रहने की अवधि के दौरान उसका ध्यान कौन रखेगा? मेरे पति की माँ वो भी वृद्ध हैं, उन्हें कुछ दिनों से बहू का सम्बल मिल रहा था। वो अकेले कैसे सब कुछ सम्हालेंगी? . . . जैसे अनेक प्रश्न और समस्याएँ थीं जिसे पूर्वी के पति ने नहीं पूछा। भाई की आवश्यकता पर उके पति ने सहर्ष उसे मायके आने दिया।
कार में बैठे-बैठे पूर्वी ने अपने पति की ओर प्रशंसा भरी दृष्टि से देखा।
“मायके की याद तो नहीं आ रही है?” पूर्वी को अपनी ओर देखते पाकर उसके पति ने पूछा।
“अरे! नहीं . . . नहीं . . . अब अपने घर चलना है। मेरे न रहने पर मम्मी (सास) को भी तो परेशानी हो रही होगी,” पूर्वी ने कहा।
“हाँ, सो तो है। प्रतिदिन तुम्हें स्मरण करती हैं,” पूर्वी के पति ने कहा। पति की बात सुनकर पूर्वी मुस्कुरा पड़ी।
पूर्वी ससुराल आकर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गयी। घर के काम, जिसमें उसकी सास भी सहयोग करती। साथ ही साफ़-सफ़ाई के लिए एक काम वाली भी आती थी। सब कुछ सही ढंग से चल रहा था।
फिर एक दिन वह भी आया जो विवाह के पश्चात् प्रायः प्रत्येक लड़की के जीवन में आता है। वो यह कि पूर्वी माँ बनने वाली थी। तीन महीने चढ़ चुके थे।
डाॅक्टर से प्रारम्भिक महीनों में उसे थोड़ा आराम करने के लिए कहा था। शेष सब कुछ ठीक था। पूर्वी ने यह ख़बर फोन द्वारा अपनी माँ को भी दे दी थी।
“तुमको बेटा होगा। हमारा आशीर्वाद है,” माँ ने कहा। माँ बहुत ख़ुश थीं।
“ठीक है माँ। तुम्हारा आशीर्वाद तो सौभाग्य की बात है मेरे लिए। बेटा होगा . . . बेटी होगी . . . ये सब बातें अभी न करो। जो भी हो बस ठीक हो, स्वस्थ हो,” पूर्वी ने माँ से कहा। यद्यपि पूर्वी माँ से ये सब कहना नहीं चाहती थी। किन्तु बेटा-बेटी की बात हो गयी तो ये सब कहना पड़ा।
समय आगे बढ़ता जा रहा था। दो-दो, चार-चार दिनों के पश्चात् माँ पूर्वी का हाल पूछती रहतीं। डाॅक्टर के अनुसार सब कुछ ठीक था। पूर्वी की ससुराल में पहले बच्चे के आने की ख़ुशी सबको थी। अतः सभी उसके खाने-पीने, आराम करने आदि का ध्यान रखते।
नौ माह पूरे होने के पश्चात् एक दिन पूर्वी ने प्यारी-सी बच्ची को जन्म दिया। पूर्वी के पति, उसके सास-ससुर सब ख़ुश थे। पूर्वी के पति ने फोन द्वारा बच्ची के आने की सूचना उसके मायके में दे दी।
कुछ ही देर में पूर्वी के फोन पर उसकी मम्मी का फोन आया। फोन से वो पूर्वी का हाल पूछ रही थीं। साथ ही कोई सहायता की आवश्यकता हो तो वो भी बताने के लिए कह रही थीं।
“नहीं मम्मी, कोई आवश्यकता तो नहीं है। सब ठीक है।” पूर्वी ने कहा।
“लड़की होने के कारण घर में कोई परेशान तो नहीं कर रहा है?” मम्मी ने धीमे स्वर में पूर्वी से पूछा।
“मम्मी, ऐसा कुछ नहीं है। पुत्र-पुत्री में कोई फ़र्क़ नहीं करता यहाँ। बच्ची से और मुझसे भी सभी प्यार करते हैं यहाँ,” पूर्वी ने हँसते हुए कहा।
“ठीक है बेटा, मैंने ऐसे ही पूछ लिया। क्योंकि ज़माना ख़राब है। सबको बेटा ही चाहिए,” पूर्वी की माँ ने उसी प्रकार धीमे स्वर में कहा।
“नहीं माँ, अब नया ज़माना है। अब बेटी-बेटे सब पढ़ लिख रहे हैं। सब आगे बढ़ रहे हैं। बूढ़े माँ-बाप की सेवा बेटों की भाँति बेटियों को भी करनी है। बेटियों से भी वंश आगे बढ़ता है। मायके, ससुराल दोनों स्थानों का वंश। तुम बिलकुल फ़िक्र न करो मम्मी,” पूर्वी ने मम्मी को समझाते हुए कहा।
“अच्छा बेटा मैं फोन रख रही हूँ। सौभाग्यलक्ष्मी के जाग जाने की आवाज़ आ रही है। वह उठ गयी हैं। उसके पास जायें देखें उसे, नहीं तो रोने लगेगी। और एक बात बतायें पूर्वी—वो थोड़ी देर मुझे नहीं देखती है तो रोने लगती है,” मम्मी के शब्दों में इतनी ख़ुशी और बच्ची के प्रति लगाव देखकर पूर्वी की प्रसन्नता असीम थी।
और तो और मम्मी ने उसका नाम कितना प्यारा सा रख दिया है . . . सौभाग्यलक्ष्मी। बच्ची का ये नाम अवश्य मम्मी ने ही रखा होगा। मन ही मुस्कुराती हुई पूर्वी अपनी बेटी के नन्हें-नन्हें वस्त्रों को तह लगा कर रखने लगी।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
कविता
कविता-माहिया
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं