सुदर्शना
कथा साहित्य | कहानी नीरजा हेमेन्द्र15 Nov 2024 (अंक: 265, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
यह एक छोटा-सा गाँव है नरहरपुर। कहने को तो यह गाँव ही है। गाँव के सभी चिह्न भी यहाँ मौजूद हैं . . . जैसे गाँव के पश्चिम दिशा में दस-बारह फर्लांग की दूरी पर गाँव का बड़ा पोखर, गाँव के मध्य मन्दिर व मन्दिर के प्रागंण में बायीं ओर छोटा-सा ताल तथा गाँव के चारों ओर दूर-दूर तक खेत-खलिहान, बाग़-बग़ीचों का फैलाव है। इन चिह्नों के साथ नरहरपुर पूरी तरह से एक गाँव है, किन्तु न जाने कब और कैसे शहर की विषैली हवा इस गाँव तक आ पहुँची?
हरे-भरे खेतों के बीच में अब सीमेंट के पक्के मकान बनने लगे हैं। पाँचवींं कक्षा तक के सरकारी विद्यालय के अतिरिक्त आगे की कक्षाओं की पढ़ाई के लिए कोई सरकारी स्कूल भले ही न हो, किन्तु बिजली के तार और टीवी के केबल पूरे गाँव में लग गये हैं। जो बच्चे आगे पढ़ना चाहते हैं, वे गाँव के प्राईवेट विद्यालयों में पढ़ते हैं। गाँव में कई प्राईवेट विद्यालय खुल गये हैं। पाँचवीं कक्षा से आगे सरकारी विद्याालय न होने के कारण गाँव में इन विद्यालयों का धन्धा चोखा होने लगा है। गाँव भी बड़ा होता जा रहा है आबादी व क्षेत्रफल दोनों ही दृष्टि से।
यही कोई सात-आठ माह हुए हैं, सुदर्शना को इस गाँव में ब्याह कर आये हुए। तब से अब तक नरहरपुर में काफ़ी बदलाव आ गया है। लोगों की शिक्षा में अधिक सुधार तो नहीं आया है, अपितु यहाँ के युवा फ़ैशनेबल कपड़े, मोबाइल फोन, फ़िल्मी गानों आदि के शौक़ीन होते जा रहे हैं।
घरों में सोफ़ा, फ़्रीज़, रंगीन टीवी आदि सुख-सुविधा की चीज़ें लोगों की आवश्यकता बनती जा रही हैं। किसी घर में इस तरह कर कोई चीज़ यदि आ गयी तो पड़ोसी भी चाहता है कि वो चीज़ उसके घर में भी आ जाये। भले ही उसे उस चीज़ की आवश्यकता न हो। एक दूसरे से होड़ और प्रतिस्पर्धा की भावना गाँव बढ़ती जा रही है।
सुदर्शना की ससुराल यहाँ के खाते-पीते परिवारों में शामिल है। घर में सास-ससुर, पति के अतिरिक्त देवर, ब्याहने योग्य दो ननदें हैैं। खेती-बाड़ी के अतिरिक्त दरवाज़े पर बाईक व ट्रैक्टर भी हैं। सुदर्शना के माता-पिता ने उसका ब्याह समृद्ध परिवार देखकर किया है। सुदर्शना का मायका यहाँ से लगभग चौदह कोस दूर जोखनपुर गाँव में हैं। विवाह के पश्चात् पहली बार उसका मरद छोटेलाल उसे ट्रैक्टर से लेकर मायके गया था।
आधे घंटे के भीतर वह अपने पीहर पहुँच गयी थी। बड़ी ख़ुश थी वो अपने मरद के साथ पहली बार ट्रैक्टर से माई-बाबू के घर जाकर। उसके बाबू छोटे किसान हैं। थोड़े-से खेत, एक कच्चा घर, दरवाज़े पर बँधी दो गायें . . . बस यही है उसके पिता हरक की सम्पत्ति। किन्तु वो प्रसन्न हैं कि अपनी पुत्री सुदर्शना का विवाह उन्होंने खाते-पीते घर में किया है।
सुदर्शना को ट्रैक्टर से घर आया देख कर उसके माई-बाबू, छोटे भाई बहन सभी ख़ूब प्रसन्न हो गए थे। ख़ुश क्यों न हो भला? दरवाज़े पर ट्रैक्टर होना गाँवों में सम्पन्नता का निशानी मानी जाती है। सुदर्शना माँ के घर ट्रैक्टर से आयी है। गाँव में आसपास ब्याही लड़कियाँ पति के साथ साइकिल से या कभी-कभी पैदल ही मायके आ जाती हैं।
सुदर्शना की माई ने हैसियत भर अपने दामाद छोटेलाल का स्वागत्-सत्कार किया। दोपहर के भोजन में स्वादिष्ट पकवान बनाये जो सुदर्शना के यहाँ कभी-कभार तीज-त्योहार आदि में बनाये जाते हैं। भोजन करने के उपरान्त शाम को छोटेलाल ट्रैक्टर लेकर चला गया। सुदर्शना दो-चार दिन यहाँ रहेगी। माँ गाँव के पंडित से साइत-घड़ी पूछ कर दिन और जतरा तय कर सुदर्शना की ससुराल में संदेशा कहलवा देगी। तत्पश्चात् कोई आकर सुदर्शना को विदा करा कर ले जायेगा। समय अपनी गति से चलता है।
दस दिन हो गए थे सुदर्शना को पीहर आये। सुदर्शना ने सोचा था कि वह माँ के घर दो-चार सप्ताह रहेगी। गाँव की अपनी सखियों, हम उम्र चाचियों, काकियों से मिलेगी . . . ख़ूब घूमेगी किन्तु . . . पंडित से सुदर्शना की विदाई का दिन और साईत-घड़ी पूछ कर हरकू ने गाँव के व्यक्ति से उसकी ससुराल में कहलवा दिया। एक दिन छोटेलाल आया और सुदर्शना को विदा कराकर ले गया। आख़िर ब्याहता लड़की को हरकू कितने दिन अपने घर में रख सकता था?
दूसरी बार शीघ्र ही सावन में माँ के घर वह पुनः आयी। इस बार भी उसका मरद छोटेलाल उसे ट्रैक्टर से छोड़ गया। माई-बाबू के पूछने पर उसने बता दिया कि ससुराल में उसके प्रति सबका व्यवहार ठीक है। सभी उससे ख़ुश हैं। हफ़्ते-दस दिनों के पश्चात् छोटेलाल आया और उसे विदा कराकर ले गया। माई-बाबू ने विदाई में उसे अपनी हैसियत के अनुसार सामान देकर विदा किया। ससुराल पहुँच कर सुदर्शना मन लगाकर घर के कामकाज व सबकी सेवा करने लगी।
“घर से कुछ रुपये पैसे लायी कि इस बार भी ऐसे ही चली आयी?” रसोई के काम समाप्त कर सुदर्शना आँगन में बैठकर बरतन माँज रही थी कि पीछे से उसकी सास के स्वर उसके कानों में पड़े। उसने पलटकर देखना चाहा कि वो किससे कह रही हैं। सुदर्शना हड़बड़ा गयी यह देखकर कि उसकी सास उससे ही कह रही हैं पर किस संदर्भ में, यह जानने के लिए वो अपनी सास से पूछ बैठी, “क्या हुआ माता जी?”
“हुआ क्या . . . ? क्या तुम नहीं जानती . . .? पहली बार आयी-गयी किसी ने कुछ न कहा। इस बार भी बिना नगदी लिए चली आयी।” सुदर्शना हक्का-बक्का अपनी सास को देखे जा रही थी। बरतन माँजते हुए उसके हाथ रुक गये थे।
“तुम्हारे माई-बाप तो ब्याह में एक बार खर्च कर के छुट्टी पा गये, और हमारे सर पर तुम्हें बैठा दिया,” यह सब सुनकर सुदर्शना को रोना आ रहा था।
“तुम्हें नहीं तो तुम्हारे माँ-बाप को तो पता है कि दुआर पर चार चीजें हैं। जिनमें पैसा लगा है। उन चीजों से गाँव में इज्जत है . . . रुत्बा है। तुमहू जिस ट्रैक्टर पर चढ़ कर बप्पा के घर गई रहो, वो बैंक से कर्जा लेकर लिया है, जिसका महीने-महीने पैसा जाता है। इज्जत तो तुम्हारे बाप की भी गाँव में बढ़ी थी। उसका भी फर्ज था कि कुछ नहीं तो ट्रैक्टर के ही पैसे दे,” सुदर्शन चुप।
एक शब्द भी ज़बान से नहीं निकल पा रहा था। किन्तु मन ही मन काँप रही थी। उसने किसी प्रकार अपनी रुलाई रोक रखी थी। खरी-खोटी सुनाकर उसकी सास बाहर दालान में चली गयी। जहाँ सुदर्शना का पति, देवर, ननदेें व ससुर सभी इकट्ठा बैठे थे।
अब आये दिन ही नहीं बल्कि दोनों पहर यही होने लगा। सास, ननदें तो डाँटती ही रहती थीं, अब देवर व उसका पति छोटेलाल भी सुदर्शना को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। सुदर्शना दिन-रात रोती रहती। कभी-कभी सोचती कि क्या ऐसे ही उम्र कट जायेगी अपमान व ज़िल्लत सहते-सहते? सुदर्शना का गाँव भी यहाँ से दूर है। अपने मन की बात कैसे अपनी माई तक पहुँचाये . . .? यदि किसी प्रकार ये बात माई बाबू तक पहुँची भी तो वे कहाँ से दहेज़ लोभियों की माँग पूरी करेंगे?
यदि दहेज़ न मिलने के कारण ये लोग मुझे छोड़ देंगे तो गाँव में मेरे माई-बाबू की कितनी बदनामी होगी। मेरी दो छोटी बहनें भी हैं। उनके लिए वर ढूँढ़ते समय बाबू लड़के वालों से क्या कहेंगे कि एक बेटी को उसके ससुराल वालों ने छोड़ दिया है। लड़कियों को ससुराल वाले जब छोड़ देते हैं, तो उपहास लड़की और उसके घर वालों का उड़ाया जाता है। भले ही लड़की निर्दोष हो, किन्तु समाज परित्यक्ता पर ही हँसता है। लड़के वालों पर नहीं। यही हमारे समाज की विडम्बना है और लड़की की नियति। सुदर्शना भी तो ससुराल में जी-जान से सबकी सेवा कर सबको प्रसन्न रखना चाहती है।
किन्तु परिस्थितियाँ दुरूह होती जा रही हैं। छोटेलाल तो उसे मारता ही है, वह उसे अपना पति समझकर उसकी मार सहनकर लेती है। अब उसकी सासू माँ भी उसे मारने से नहीं हिचकतीं। सुदर्शना जानती है इन सबके पीछे एकमात्र कारण मायके से दहेज़ के पैसे मँगवाना है। उस दिन सुदर्शना को रातभर नींद नहीं आयी जब उसकी सास ने उससे कहा कि अपने बाप के घर जाकर पचास हज़ार रुपये लाओ नहीं तो हम छोटेलाल का दूसरा ब्याह कर देंगे। और तो और उसके ससुर बृजलाल भी अपनी पत्नी की हाँ में हाँ मिलाने के लिए सामने खड़े थे।
सुदर्शना सोचती रही कि उसके बाबू ने कितनी धूमधाम से उसका ब्याह किया था। दहेज़ में बरतन, गहने, कपड़े अनाज, नगदी सब कुछ दिया था। दहेज़ की इतनी सारी वस्तुयें देख रिश्तेदारों ने दाँतों तले उँगली दबा ली थीं। उसकी दो अन्य बहनें भी हैं। बाबू खेत बेच देंगे तो खाएँगे क्या? पूरा परिवार भूखा मरेगा, क्योंकि बाबू के पास जो कुछ भी है वो एक विस्वा खेत ही है। इससे ही पूरे परिवार का पालन-पोषण होता है। सुदर्शना बाबू के पास पैसे माँगने कभी नहीं जायेगी। दहेज़ लोभियों का मुँह भरने के लिए ये उपाय सही नहीं है।
दहेज़ का लोभ सुदर्शना के ससुराल वालों के मन में समा चुका था। उनके नेत्रों पर लोभ का आवरण इस प्रकार छा गया था कि उन्हें यह भी भान न था कि उनकी भी दो बेटियाँ हैं। यदि उन्हें भी इसी प्रकार लोभी ससुराल मिली तो वे क्या करेंगे . . .? उनकी दहेज़ की माँग कब तक पूरी करते रहेंगे? अपमान और ज़िल्लत सहन कर-कर के सुदर्शना के दिन रात व्यतीत होते जा रहे थे।
उसके ब्याह को एक वर्ष होने को है। सुदर्शना ने निश्चय का लिया है कि वो अपने बाबू से दहेज़ के पैसे कभी नहीं माँगेगी। दहेज़ लोभियों की पिपासा शान्त करने का ये उपाय सही नहीं है बल्कि वह कोई काम करेगी और आत्मनिर्भर बनेगी। उसने सुना है कि गाँव में एक मैडम आती हैं। वो गाँव की औरतों को सिलाई सिखाती हैं। उनके सिले कपड़े शहर में ले जाकर बेचती हैं। गाँव की अनपढ़ औरतें काम सीख कर कुछ पैसे कमा ले रही हैं, जो उनकी घर गृहस्थी, बच्चों की शिक्षा में काम आ रहा है। सुदर्शना तो फिर भी कक्षा पाँच उत्तीर्ण है। उसके गाँव में कक्षा पाँच में तक ही विद्यालय था अन्यथा वह आगे अवश्य पढ़ती।
एक दिन सुदर्शना सिलाई सीख रही गाँव की एक महिला के साथ सिलाई सिखाने वाली उस मैडम से मिली और काम सीखने की इच्छा प्रकट की। उन्होेंने सहर्ष सुदर्शना को सीखने के लिए आने को कहा। विदाई में माई के दिये नये कपड़े लेकर सुदर्शना दूसरे दिन से सिलाई केन्द्र जाने लगी। सिलाई केन्द्र जाने से पहले वो घर में सबके लिए भोजन बनाकर, चौका बरतन कर के रख देती।
सिलाई सीखने में सुदर्शना का ख़ूब मन लग रहा था। सिलाई सिखाने वाली मैडम उसके काम से अत्यन्त प्रसन्न थीं। सप्ताह भर हुए थे सुदर्शना को काम पर जाते हुए। एक दिन वो सिलाई केन्द्र से लौटी ही थी कि “ तेरी इस कमाई से ट्रैक्टर के पैसे जमा होंगे,” कहते हुए उसका देवर उसकी पीठ पर लात-घूसों से मारने लगा। “गाँव में घूमती है और . . . (गालियाँ) . . . करती है।” उसका पति छोटेलाल दालान में बैठा था। सुदर्शना गालियाँ और मार खाती रही किन्तु वो कुछ नहीं बोला।
अपनी कोठरी में जाकर सुदर्शना फूट-फूट कर रोई। उसका रोना सुनने वाला, उसकी पीड़ा सुनने, समझने वाला वहाँ कोई नहीं था। वह भरपूर रोई, इतना की आँखें सूज गयीं, गला रुँध गया। आँचल से अपने आँसुओं को पोंछा तथा स्वयं को समझाया तथा मन ही मन कुछ निश्चय किया, और शान्त हो गयी।
सुदर्शना के गाँव में पड़ोस में रहने वाले पटवारी काका के घर अख़बार आता था। सुदर्शना प्रतिदिन उनसे माँग कर अख़बार पढ़ती थी। उसमें ही पढ़ा था कि दहेज़ लेना क़ानूनन अपराध है। दहेज़ के लिए बहुओं के साथ मारपीट, गाली-गलौज, बदसुलूकी आदि ससुराल वाले नहीं कर सकते हैं। यह भी कि दहेज़ के लिए कोई पति अपनी पत्नी को नहीं छोड़ सकता। यदि छोड़ता है तो उसे आजीवन पत्नी के भरण-पोषण का ख़र्च देना होगा।
सुदर्शना अपने ससुराल वालों को सद्बुद्धि देने के नियम-क़ानून जानती है, किन्तु वो ये सब नहीं करेगी। सेवा व प्रेम से इनका हृदय जीत लेगी। दिन व्यतीत होते जा रहे थे। गालियाँ तो प्रतिदिन ही सुदर्शना को खाने को मिलती थीं। वह अपनों की गालियों का बुरा नहीं मानती।
आज सुदर्शना प्रतिदिन की भाँति घर के सारे कार्य करने के पश्चात् सिलाई केन्द्र के लिए निकली थी कि घर के बाहर सड़क पर उसका देवर न जाने कहाँ से आया और उसे मारने लगा। वह देवर की मार से बचने का प्रयत्न कर ही रही कि उसकी सासू माँ भी देवर के साथ मिलकर उसको बुरी तरह मारने लगी।
“तेरे से हम सब कहिन रहैं कि अपने बाप के घर से पचास हजार रुपये लेकर आ। वो तो तुमसे हुआ नहीं। अब हमारे खानदान में तू कमाने वाली निकली है,” क्रोध में सुदर्शना की सास बड़बड़ाती जा रही थी। गालियाँ देती जा रही थी।
पूरे गाँव के सामने स्वयं को पिटता देख सुदर्शना लाज से पानी-पानी हो रही थी। पिटाई से बचने के लिए वह अपनी सास व देवर का हाथ पकड़ने का प्रयत्न कर ही रही थी कि उसका ससुर ब्रजमोहन डंडा लेकर चला आया। डंडे की मार से सुदर्शना गिर पड़ी। सुदर्शना को वही छोड़कर सभी घर चले गये।
इतने में सुदर्शना का पति छोटेलाल आया वह भी गिरी-पड़ी सुदर्शना को लात-घूसों से मारने लगा। सुदर्शना मार खाती रही और पीड़ा से चिल्ला-चिल्ला कर आपने माई-बाप को पुकारती रही। पूरा गाँव चारों ओर खड़ा होकर तमाशा देखता रहा था, किन्तु किसी ने भी उन्हें रोकने का साहस न किया। सबके चले जाने के पश्चात् सुदर्शना उठी और सिलाई केन्द्र न जाकर अपनी कोठरी में जाकर रोने लगी। पूरा बदन छिल गया था। डंडे के चिह्नों से पीठ और कलाइयाँ भरी पड़ी थीं।
सहसा सुदर्शना ने एक साहसिक निर्णय लिया जो उसकी ससुराल वालों की सोच से परे था। सुदर्शना ने एक काग़ज़ पर यहाँ के थानेदार के नाम अर्ज़ी लिखी। आज पाँच तक की शिक्षा सुदर्शना के काम आ रही थी। वह सोच रही थी कि उसके माई-बाबू ने यदि उसकी इतनी भी शिक्षा न दिलाई होती तो आज वह अपने लिए इतना भी न सोच पाती।
उसने ससुराल वालों पर दहेज़ के लिए प्रताड़ित करने, मार-पीटकर घर से निकाल देने तथा अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगाते हुए अर्ज़ी लिखी जिसमें सास-ससुर, देवर रोशनलाल व पति को नाम-ज़द किया। दोनों ननदों के नाम उसने छोड़ दिये यह सोच कर कि ये लड़कियाँ हैं। ब्याह कर एक दिन इन्हें ससुराल जाना होगा। ससुराल में जीने और गुज़र-बसर के मार्ग इतने सरल नहीं होते। टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुज़रना पड़ता है।
अर्ज़ी लेकर सुदर्शना घर से निकली। सिलाई केन्द्र वाली मैडम जी से चौकी का पता पूछा व डेढ़ कोस पैदल चलकर दूसरे गाँव में बनी एकमात्र पुलिस चौकी पर जा पहुँची। दरोगा जी को उसने अर्ज़ी दी। दरोगा जी को उसने बाँहों पर पड़े डंडे के नीले निशान भी दिखाये। दरोगा जी ने उसकी रपट लिखी, तथा सब कुछ ठीक करने का आश्वासन देते हुए उसे घर जाने के लिए कहा।
घर आकर सुदर्शना कोठरी में लेट गयी। दिन का तीसरा पहर ढल रहा था। शाम होते-होते दरोगा साहब दरवाज़े पर आ गये। उस समय सभी घर में थे। उन्होंने कड़कती आवाज़ में ससुर बृजलाल, देवर रोशनलाल, सास सवितरा तथा उसके पति को बुलाया।
उन्हें क़ानून की भाषा में समझाया कि तुम लोगों पर दहेज़ के लिए बहू का उत्पीड़न, मार-पीट, उस पर जानलेवा हमला करने तथा दहेज़ के लिए घर से बाहर निकालने का प्रमाण साबित हो गया है। तुम लोगों के विरुद्ध रपट लिख ली गयी है। अब तुम सबको जेल जाना पड़ेगा। सुदर्शना ने देखा कि दरोगा की बात सुनते ही उसे सड़क पर डंडे से पीटने वाला व्यक्ति बृजलाल थर-थर काँप रहा था।
“माई-बाप, हुज़ूर . . . क्षिमा कर दीजिये। दुबारा ऐसी गलती न होगी.” कहते हुए बृजलाल दरोगा के पैरों पर गिर पड़ा। पूरा गाँव दरवाज़े पर खड़ा आज पुनः इस घर का तमाशा देख रहा था।
“हमें क्षिमा कर दो साब!” गिड़गिड़ाते हुए सुदर्शना की सास ने कहा।
‘सुदर्शना को गालियाँ देने वाले छोटेलाल व रोशनलाल की तो जैसे बोलती ही बन्द हो गयी थी। सब हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहे थे। वे सुदर्शना से भी गिड़गिड़ाते हुए क्षमा माँग रहे थे। गाँव के लोग सुदर्शना की प्रशंसा कर रहे थे। वे सभी बृजलाल की दबंगई व लालची स्वभाव से परिचित थे। सुदर्शना ने दरोगा जी विनती की कि इस बार वो इन सबको क्षमा कर दें। दरोगा जी ने उनसे शपथ-पत्र लिखवाया कि यदि दुबारा वे ऐसा ग़लती करेंगे तो उन्हें जेल में डाला जायेगा। गाँव वाले आपस में बातें कर रहे थे कि छोटेलाल की बीवी बहुत पढ़ी-लिखी है। सुदर्शन सोच रही थी कि यदि उसे आगे और पढ़ने के अवसर मिलते तो जीवन की राहें और सुगम हो जातीं।
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