शब्द भी साथ छोड़ देते हैं
काव्य साहित्य | कविता नीरजा हेमेन्द्र15 Mar 2025 (अंक: 273, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
1.
वो लेखिका थी
लिखती थी कविताएँ
शब्द उसकी भावनाओं, संवेेदनाओं को
व्यक्त करने के लिए
उसके निमंत्रण पर शब्द चले आते
किन्तु वो कभी नहीं लिख पायी
अपने आसपास हो रही उन बच्चियों के
यौन शोषण की पीड़ा
जिसे उन बच्चियों के ही
तथाकथित स्वजनों ने किया था।
2.
शब्दों ने तब भी उसका साथ नहीं दिया
जब उसने लिखना चाहा
किशोरावस्था में सहसा
उसके जीवन में आने वाले
एक चतुर और धोखेबाज़ रिश्तेदार के
छल और धोखे को।
वह उसके साथ रहने चली आयी, उम्र भर के लिए
अपना छोटा शहर छोड़ कर, बड़े शहर में
बच्चे पैदा करने, उन्हें पालने का उत्तरदायित्व
निभाते-निभाते उम्र ढलने लगी
ढलती उम्र में उस धोखेबाज़ रिश्तेदर ने
वृद्ध होती पत्नी पर दुश्चरित्रता का लांछन लगाया
इस लांछन का कारण यह था कि
वह पैसे देकर युवा औरतों से
शारीरिक सम्बन्ध बनाने लगा था।
लांछन के साथ अपने प्रेम और विश्वास के
टूटे मलवे में दिन वो अपने व्यतीत करने लगी।
3.
समय करवटें बदलता रहा
पति का शरीर रुग्ण और पुरुषत्व क्षीण हुआ
दिन-रात श्रम करके स्त्री का शरीर लौह
समय ने करवट बदल लिया था
साथ ही स्त्री भी बदल चुकी थी।
अब शब्दों ने उसका ख़ूब साथ दिया
पति के कहे हुए सारे अपशब्द
अंकित थे उसके हृदय पर
अब उन अपशब्दों के प्रत्युत्तर भी उसने
उस कापुरुष को दिये
जीवन की ढलती साँझ को शब्द लेखिका
के साथ थे।
शब्द साथ नहीं छोड़ते
वे रहते हैं हमारे आसपास
आवश्यकता है उन्हें तलाश लेने की।
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