नदी समय है या . . .
काव्य साहित्य | कविता नीरजा हेमेन्द्र15 Sep 2025 (अंक: 284, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
समय नदी है
या नदी समय
हम बह रहे हैं समय की नदी में
देख रहे हैं नदी साँसें लेती है
समय नहीं
ऋतुएँ किसी के लिए नहीं रुकतीं
अभी-अभी आया था वसंत
अब पतझड़-सा सन्नाटा
नदी बह रही है समय के साथ
समय और नदी मिल कर बह रहे हैं
पतझड़ ठहर गया है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंकुरण
- आग
- कोयल के गीत
- कोयल तब करती है कूक
- गायेगी कोयल
- चादरों पर बिछे गये सपने
- जब भी ऋतुओं ने ली हैं करवटें
- जीवित रखना है सपनों को
- तुम कहाँ हो गोधन
- दस्तक
- धूप और स्त्री
- नदी की कराह
- नदी समय है या . . .
- नीला सूट
- पगडंडियाँ अब भी हैं
- परिवर्तन
- पुरवाई
- प्रतीक्षा न करो
- प्रेम की ऋतुएँ
- फागुन और कोयल
- भीग रही है धरती
- मौसम के रंग
- यदि, प्रेम था तुम्हें
- रंग समपर्ण का
- रधिया और उसकी सब्ज़ी
- लड़कियाँ
- वासंती हवाएँ
- विस्थापन
- शब्द भी साथ छोड़ देते हैं
- संघर्ष एक तारे का
- सभी पुरुष ऐसे ही होते हैं क्या?
कहानी
कविता-माहिया
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं