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तुम कहाँ हो गोधन

 

ऋतुओं का चक्र प्रतिवर्ष की भाँति 
परिवर्तन की ओर अग्रसर हो गया है
वसंत जा चुका है
गर्म हवाएँ पूरी सृष्टि को 
अपनी गिरफ़्त में लेने लगी हैं
निर्माणाधीन बड़ी बिल्डिंग में 
मज़दूरी करने वाला गोधन
कोसों पीछे अपना गाँव छोड़कर कमाने आया है
उसके पास अपने वृद्ध पिता का हाल पूछने 
का कोई साधन नहीं है
न फोन . . . न अक्षर ज्ञान
अपढ़ गोधन ठेकेदार से पैसे मिलने की प्रतीक्षा 
तीन माह से कर रहा है
गोधन का पिता प्रतिदिन गाँव आने वाली
पगडंडी की ओर निहारता रहता है
वह पिता जो अनभिज्ञ है 
अपने उस कर्मठ बेटे की बिल्डिंग की ऊँचाई से 
गिर कर दुनिया में न रहने की ख़बर से। 

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