वासंती हवाएँ
काव्य साहित्य | कविता नीरजा हेमेन्द्र1 Apr 2023 (अंक: 226, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
ऋतुएँ बदलने लगी हैं
वसंती हवाएँ चलने लगी हैं
गोरी के गालों को हौले से छूकर
हँसती हैं मीठी ध्वनि सरसराहट सर्र . . . सर्र
सरसों के पुष्पों से, आम्र कर मंजरियों से
करती हैं मदन रस भीगी-सी बातें
थोड़े ग़ुरूर में, हल्के सुरूर में
वृक्षों के पत्तों पर कटती हैं रातें
कोयल के कूक संग जगती है भोर जब
भोरों से लेकर प्रेम भरे संदेश
उड़ जाती है . . . पुनः किसी दूर देश
गाँव कर गोरी-सी
शहर की छोरी-सी
हवा ये वसंत की
अल्हड़ है . . . चंचल है
मादक है . . . रसीली है
कुछ सीली . . . सीली है।
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