मोहब्बत
काव्य साहित्य | कविता विजय कुमार सप्पत्ति4 Aug 2014
तुम अपने हाथों की मेहँदी में
मेरा नाम लिखती थी और
मैं अपनी नज़्मों में तुझे पुकारता था जानां;
लेकिन मोहब्बत की बाते अक्सर किताबी होती हैं
जिनके अक्षर
वक़्त की आग में जल जाते हैं
किस्मत की दरिया में बह जाते हैं;
तेरे हाथों की मेंहदी से मेरा नाम मिट गया
लेकिन मुझे तेरी मोहब्बत की क़सम,
मैं अपने नज़्मों से तुझे जाने न दूँगा...
ये मेरी मोहब्बत है जानां !!
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