तू
काव्य साहित्य | कविता विजय कुमार सप्पत्ति3 May 2012
मैं अक्सर सोचती हूँ
कि,
खुदा ने मेरे सपनों को छोटा क्यों बनाया
करवट बदलती हूँ तो
तेरी मुस्कारती हुई आँखें नज़र आती है
तेरी होठों की शरारत याद आती है
तेरे बाजुओं की पनाह पुकारती है
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है
तेरी क़समें, तेरे वादें, तेरे सपने, तेरी हकीक़त ..
तेरे जिस्म की खुशबू, तेरा आना, तेरा जाना ..
एक करवट बदली तो,
तू यहाँ नही था..
तू कहाँ चला गया..
खुदाया !!!!
ये आज कौन पराया मेरे पास लेटा है...
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं