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पूनम चन्द्रा ’मनु’ – क्षणिकाएँ : 001

1.
बात बयाँ हो कर 
फ़ना कहाँ होती है 
2.
उस राख को कुरेदते रहो 
जो खुरचने से 
ख़ुद पर नज़र आती है
3.
ख़ुमारी उतरे तेरी तो . . .
दुनिया की बात भी करें . . .
तेरी मुहब्बत का दिया ये "मौसम" . . .
कभी बदलता ही नहीं . . .
4.
अच्छा है . . .
जो राहों को तराशने वाले . . .
 . . .बीच में लकीरें खींच देते हैं . . .
अपनी शक्ल पर "उन्हें" पहनते ही . . . वो राह . . .
पलट कर साँसें लेने लगती है . . .
मुझे यक़ीन है . . .ये लकीरें तुम्हें ज़रूर दिखेंगी . . .
मुझे यक़ीन है . . .
5.
ख़ुद की सोच पर जब 
"उसकी" नज़र ठहरी हुई हो . . .  
तो ज़िन्दगी जीने के 
"हज़ार" रास्ते निकलते हैं . . . 
6.
सारी क़ायनात को जो दो आँखों . . .
में उतार दे . . .
ऐसे जादू बस मुहब्बत के काम हैं . . .
7.
क्यों उलझे रहें यूँ ही . . . 
 . . .गिलों में . . .शिकवों में . . .
मुहब्बतों का दिन है . . . 
चलो कुछ मुहब्बतों की बातें करें . . .
8.
बीते वक़्त की परछाई . . . 
जो पिघल जाती है . . . . . 
तेरी बेरुख़ी से . . .
उसे मौसमों  की दस्तक पर 
सिमटते देखा है . . .
अच्छा ही है जो मौसमों ने 
बदलना सीखा है . . . . .
9.
ख़ुद को फिर से "जोड़ने" 
और ज़िन्दगी से "जुड़ने" 
के लिए 
बेहद ज़रूरी होते हैं ये . . . 
ख़ुदा ने कुछ सोच कर ही 
ख़्वाब बनाये होंगे . . .
जो देखते हैं इन्हें 
वो
बेहद ख़ूबसूरत होते हैं . . .
10.
एक बार चाँद की पैरवी की थी तुमने
याद है . . .
तब तुम्हें ही चाँद बना दिया था मैंने . . . 
अब ख़ुद के अक़्स को छुपाने के लिए . . .
इस पर घटाएँ मत ओढ़ा करो . . .  .

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