दिल भूल भी जाए तुम्हें
काव्य साहित्य | कविता पूनम चन्द्रा ’मनु’15 Aug 2021 (अंक: 187, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
दिल भूल भी जाए तुम्हें . . .
मेरी जुड़वां पलकें तुम्हें
सजदा करना नहीं भूलतीं . . . .
कभी फड़कती हैं . . .
तो बंद करनी होती हैं . . .
ख़्वाबों में आती तुम्हारी तस्वीरें तैरने लगती हैं . . .
मुझे ख्वाब में भी . . .
तुम्हें धुंध में देखना गवारा नहीं . . .
जब साए गिरते हैं तुम्हारे ज़मी पर . . .
मैंने उन्हीं से . . .
आगे की राह जोड़ी है . . .
ख़्वाब के हर टुकड़े को सँभाल कर रखा है . . .
किसी तितली के पंख की तरह
कि जब भी हक़ीक़त में सामने हो तुम
तुम्हें . . . तुम्हारी ही अमानत सौंप दूँ . . .
दिखा दूँ तुम्हें कि तुम्हें याद करने में . . . मैंने
दो साँसों के बीच का रास्ता भी . . .
ठहराव के लिए नहीं रक्खा
हर लम्हा हर घड़ी याद किया तुम्हें . . .
कहीं कुछ तो होगा तुममें . . .
जो तुम्हें दुनिया से अलग करता होगा . . .
बिना बात ही तो कोई किसी को
"इतना" याद नहीं करता . . .
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