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पूनम चन्द्रा ’मनु’ – क्षणिकाएँ : 002

1.
जितनी देर ठहरती हैं
ये बूँदें . . . 
शाखों पर . . .
पत्तों पर . . .
बस इतनी मुहब्बत काफ़ी है 
एक उम्र गुज़ारने के लिए!
2.
ख़ुशियाँ बहुत हैं मेरे दायरे में . . .
पर मुक़म्मल —
तुम्हारे ख़याल से होती हैं!
3.
यूँ ही चल दें कहीं . . .
कुछ सरगोशियाँ . . .
हाथों में थाम कर . . .
न तुम कुछ कहो 
न हम कुछ कहें 
ख़ामोशियों को ख़ामोशियों के 
दामन से बाँध दें!
4.
मुझे अपनी तरक़्क़ी के लिए बस 
तेरा . . . ज़िक्र करना है।
ख़ुदा ऐसा पेशावर—
सबको बनाये!
5.
उसकी परछाई बहुत गहरी थी मुझपर . . . 
मुझसे मिलकर अब लोग —
उसका हाल पूछते हैं!
6.
वो जब "एक आवाज़"
ख़ुद से बात करे और
ख़ामोश हो . . . तो क्या हो . . .
क्या हो—
उसकी आवाज़ की दस्तक के लिए बेचैन दुनिया का!
7.
किसी को हरा कर जीते भी तो क्या . . .
मुस्कुरा कर हार जाओ . . .
और हमेशा के लिए जीत जाओ!
8.
तेरे शहर के आस्मां से आये हैं वो सारे अब्र
जो आँखों से बरसते हैं,
ये कम नहीं कि 
उन्हें मेरे घर का पता . . .
अब तक याद है!
9.
कहीं कोई ओस नहीं–
जो जम कर बर्फ़ बने,
वक़्त की हर परत  ने–
ख़ुद ब ख़ुद 
बीच के वक़्त को पिघला दिया!
10.
बहुत पास होने पर ही 
लम्हे कुछ ज्यादा तेज़ चलते हैं;
तभी तो 
याद"
उसी वक़्त से 
दस्तक देने लगती है!

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