माँ हिन्दी
काव्य साहित्य | कविता पूनम चन्द्रा ’मनु’15 Nov 2021 (अंक: 193, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
माँ हिन्दी
तुम मात्र मेरी आवाज़ की
अभिव्यक्ति नहीं हो
तुम वो हो
जिसे सुनने के बाद
दुनिया मुझे पहचान जाती है
मैं कौन हूँ
कहाँ से हूँ
ये जान जाती है
जब मैंने काग़ज़ पर
अपनी भावनाओं के रूप में
लिखा तुम्हें
तुमने बढ़ कर मुझे
कवि की संज्ञा दे दी
तुम्हारे ही साँचे में ढल कर
दिनकर और निराला की रचना हुई
साहित्य को साहित्य तुमने ही तो बनाया है
तुम ही वो
जो वीरों की दहाड़ बन कर
सरहदों पर
दुश्मनों को दहलाती है
तुम वो ही हो
जो लोरी बन कर
किसी बालक को
मीठी नींद सुलाती है
जब मन के भीतर
कोई रचना बन कर
टहलती हो तुम
मेरे चेहरे का नूर
कुछ और ही होता है
हिमालय के गर्भ से जन्मी हुई नदी को 'गंगा'
तुमने ही बनाया है
ब्रह्माण्ड स्वर ॐ
जब तुम्हारी सूरत बन कर
जिह्वा पर हो
देवता भी
तभी प्रसन्न होते हैं
माँ के मन से निकली हुई
दुआ हो तुम
पिता का दिया
हर आशीर्वाद हो तुम
पुरातन दर्शन हो
युग परिवर्तन हो
सूर्य को समर्पित
मुनि तपस्वी योगी की अंजुली से
निकलती धारा
तुम ही तो हो
तुम्हें सादर प्रणाम
माँ हिंदी
माँ हिन्दी
तुम मात्र मेरी आवाज़ की
अभिव्यक्ति नहीं हो
तुम वो हो
जिसे सुनने के बाद
दुनिया मुझे पहचान जाती है
मैं कौन हूँ
कहाँ से हूँ
ये जान जाती है
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