हिस्से का चाँद
काव्य साहित्य | कविता पूनम चन्द्रा ’मनु’1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
ले
मैंने अपने हिस्से के चाँद में से
आधा चाँद तुझे दे दिया
अब इस आईने का
एक टुकड़ा तेरे हाथ में है
एक मेरे हाथ में
कुछ इस तरह रखें
अपने अपने हाथों में
कि
दूर से ही
एक दूसरे को पढ़ सकें
जो कुछ भी तुझे लिखना होगा
इस चाँद पर ही लिख देना
चाँद पर तेरी लिखाई उतरेगी
तो
साफ़ साफ़ नज़र आएगी मुझे
इस किताब की दूरी
आँखों के सामने
उतनी ही होगी
जितनी पढ़ने के लिए
ज़रूरी होती है
ज़्यादा पास से
ये धुँधली नज़र आती है
और वैसे भी
तेरी लिखाई अब तक याद है मुझे
सो दिक़्क़त नहीं होगी मुझे
तुझे भी नहीं होगी न?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आँखों में छुपा रखा है
- एक गाँव था मेरा
- कृष्ण संग खेलें फाग
- कैकयी तुम कुमाता नहीं हो
- तुम योद्धा हो—फिर से जन्म लो
- दर्द का लम्हा
- दिल भूल भी जाए तुम्हें
- पन्द्रह अगस्त नया सफ़हा
- पहर को पिघलना नहीं सिखाया तुमने
- पिता हो तुम
- बारिश का ख़त
- माँ हिन्दी
- मेरे होने का दस्तावेज़ है तू
- ये फ़िज़ा महक जाएगी
- साँवरी घटाएँ पहन कर जब भी आते हैं गिरधर
- हिस्से का चाँद
- ख़ूबसूरत बेचैनी
कविता - क्षणिका
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं