अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रेरक आलेखों का संग्रह ‘नींव के पत्थर'

समीक्षित कृति: नींव के पत्थर (प्रेरक आलेख) 
लेखक: दीपक गिरकर
मूल्य: ₹225/-
प्रकाशक: इंडिया नेटबुक्स प्रा. लि., नोयडा

मनुष्य प्रेरणाएँ ग्रहण करता है, अपने जीवन में उतारता है और अपने अनुभूत संसार से दूसरों को प्रेरित करने का प्रयास करता है। यह सुहृद-जनों द्वारा की जाने वाली सामान्य प्रक्रिया है परन्तु इसका परिणाम बहुत व्यापक होता है। संसार में जीवात्माएँ नाना दुखों, व्याधियों और पीड़ाओं से त्रस्त रहती हैं। उनके दुख हमेशा भयावह होते हैं, कोई निदान समझ में नहीं आता और जीवन कष्टमय बना रहता है। इसके पीछे हमारा स्वभाव, हमारी सोच और हमारा चिन्तन बहुत हद तक हमारे दुखों को बढ़ाता रहता है। हम दुख को यथार्थतः पहचानने में अक़्सर भूलें करते हैं। हमारा मनोविज्ञान ऐसा है, हम अपना दुख बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं, महसूस करते हैं और दुखी रहते हैं। हमें अपने सचमुच के दुखों को जानना चाहिए। वे तीन ही हैं—रोटी, कपड़ा और मकान। इसके अलावा का सारा दुख हमारे मनोभावों का खेल है जिन्हें हम अपना मनोभाव बदलकर बहुत हद तक सुखी हो सकते हैं। हम रोज़मर्रा के संघर्ष को भी दुख मान लेते हैं और दुखी रहते हैं। हमारा ऐसा चिन्तन हमें सुखी होने नहीं देता। 

प्रायः हमारे धर्म-ग्रंथ, संत-महात्मा और समाज के अनुभवी प्रबुद्ध-जन इस दिशा में ज्ञान का आलोक फैलाते रहते हैं। हम उनसे सीखते-समझते हैं, अपने आचरण में ढालते हैं और सुखी होते हैं। 

ऐसे ही एक अनुभवी प्रबुद्ध-जन श्री दीपक गिरकर जी की पुस्तक ‘नींव के पत्थर’ मेरे हाथों में है। गिरकर जी भारतीय स्टेट बैंक में उच्च पदों पर रहे हैं और उनका जीवन को लेकर व्यापक अनुभव है। किसी के लिए जीवन की जटिलताओं को समझना और उनसे बाहर निकलना तभी सम्भव है, यदि उसने अपनी संभावनाओं और चुनौतियों को यथार्थतः समझ लिया और अपने जीवन में लागू किया है। उलझने रहती हैं और उनके निदान भी हैं। हमें उन उलझनों में उलझे रहने के बजाए, उनसे निकलने के प्रयास में लग जाना चाहिए। ज्यों ही हमारी चिन्तन-दिशा इस ओर मुड़ती है, सारी ईश्वरीय शक्तियाँ सहायता के लिए तत्पर हो उठती हैं और अनायास या कम समय में हमारा सुख सामने आ खड़ा होता है। 

श्री सतीश राठी ने भूमिका के तौर पर अपने लेख ‘जीवन दृष्टि से परिपूर्ण आलेख’ में लिखा है, “निजी जीवन में स्वयं एक सरल, सहज और सौजन्यपूर्ण व्यक्तित्व के साथ जीवन को जीने वाले श्री दीपक गिरकर की जीवन को परखने की दृष्टि बहुत सूक्ष्म है।” इस पुस्तक में बुनियादी मानवीय मूल्य, शिक्षक व शिक्षा, सपने, आत्मविश्वास जैसे जीवन के सूत्र भरे पड़े हैं। राठी जी लिखते हैं, “दृढ़ इच्छाशक्ति, सादगी, सफलता, चरित्र निर्माण, लक्ष्य निर्धारण, नेतृत्व गुण, आत्म निर्भरता, ईमानदारी, एकाग्रता आदि बिन्दुओं पर बड़ी ही सहज और सरल भाषा में जीवन को समझाने वाले आलेख प्रस्तुत किए गए हैं। इस संग्रह में दीपक गिरकर ने कुल 29 महत्त्वपूर्ण लेखों के माध्यम से सफल जीवन-सूत्रों को समझाया है जिन्हें समझकर हर पाठक के लिए जीवन जीना सहज-सुखद हो जायेगा।” 

अपने प्रथम लेख ‘नींव के पत्थर’ में दीपक गिरकर जी लिखते हैं—मज़बूत मीनार गिर सकती है लेकिन नींव का पत्थर कभी नहीं गिर सकता। शिखर तक पहुँचाने में सबसे अधिक योगदान नींव के पत्थर का होता है। जीवन के लिए नींव के पत्थरों के रूप में हमारा चरित्र, अनुशासन, महत्वाकांक्षा, ईमानदारी, परिश्रम, कर्त्तव्य पालन, रचनात्मक दृष्टिकोण, वफ़ादारी, समझदारी, नैतिक व व्यावहारिक बुद्धि, नैतिक साहस, शराफ़त, सृजनशीलता, एकाग्रता, आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास जैसे गुण-सद्गुण होते हैं। जीवन में संतुलन, अपनी भूलों से सीखना और सद्गुणों को जीवन में उतारना जैसे भाव-विचार अनेक महापुरुषों के उदाहरण के साथ गिरकर जी ने प्रस्तुत किया है। ‘जीवनचर्याः जीवन निर्वाह की श्रेष्ठतम शैली’ लेख में गिरकर जी बहुत सही कहते हैं, “मनुष्य को जानने, उसके अन्तर्मन में झाँकने के लिए उसकी दिनचर्या ही सटीक और प्रामाणिक उदाहरण है।” हमारा दैनिक आचरण ही दिनचर्या है। महापुरुषों का जीवन, उनकी दिनचर्या ही हम सबके लिए प्रेरणादायक होती है। यह पुस्तक घर-घर में होनी चाहिए ताकि हमारा जीवन-निर्माण होता रहे। इसमें गिरकर जी ने उन सारी शिक्षाओं को संगृहीत किया है जिसे पढ़कर, जानकर, समझकर हर व्यक्ति आत्मोत्थान कर सकता है। 

गिरकर जी अब्दुल कलाम को याद करते हैं, वे कहा करते थे, “सपने वे होते हैं जो रात में सोने नहीं देते। हमेशा ऊँचे सपने देखो। सपने तब तक देखते रहो जब तक कि वे पूरे न हो जाएँ।” डॉ. एपीजे कलाम का उदाहरण देते हुए उन्होंने सपनों को लेकर महत्त्वपूर्ण चिन्तन दिखाया है और पाठकों को प्रेरित कर रहे हैं। उनका लेख ‘आत्मविश्वास सफलता की पहली सीढ़ी है’ हमारे भीतर आत्मविश्वास जगाता है। गिरकर जी के इन ललित निबंधों में दुनिया भर के महापुरुषों का उदाहरण भरा पड़ा है जिनके व्यक्तित्व से हर किसी का मन प्रभावित होता है। इसमें धैर्य, लगन और साहस की कथाएँ भी हैं। ‘दृढ़ इच्छाशक्तिः सफलता का मंत्र’ लेख हमारे भीतर दृढ़ इच्छाशक्ति का संदेश देता है। देश के कोने-कोने से बहुत लोगों ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर सफलताएँ अर्जित की हैं। गिरकर जी के पास ऐसे अनेक लोगों के उदाहरण हैं। वे लिखते हैं—दृढ़ इच्छाशक्ति, उच्च आत्मबल और समर्पित भाव से अपने लक्ष्य की ओर निरंतर गति से बढ़ने पर निश्चित ही सफलता मिलती है। 

उनका अगला लेख है ‘सादगी और शालीनता’। ये आभूषण हैं जो मनुष्य को आदर और सम्मान दिलाते हैं। उन्होंने प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जी के सादगी और शालीनता भरे प्रसंगों से मार्गदर्शन किया है। वे लिखते हैं, “स्थायी सफलता का आधार है उत्कृष्ट चरित्र।” यही मानव जीवन की कसौटी है। उत्तम चरित्र वाला व्यक्ति समाज के लिए एक बहुत बड़ी सम्पत्ति है। रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में प्रतिभा से भी उच्च है चरित्र का स्थान। गिरकर जी ने अपने हर लेख में विस्तार से गुणों की महत्ता का उल्लेख किया है। उन्होंने अनुशासन को आदर्श जीवन जीने की कला कहा है और श्लोकों, दोहों के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है। वे अगला लेख लिखते हैं ‘संसार की सारी सफलताओं का मूलमंत्रः संकल्प शक्ति’। मेहनत को प्रेरित करने वाला तत्व ‘संकल्प शक्ति’ है। गाँधी जी के अनुसार जिन व्यक्तियों में संकल्प शक्ति है, जो दृढ़ निश्चयी हैं, वे ही जीवन के संग्राम में सफल होते हैं। इस संग्रह का महत्त्वपूर्ण निबंध है ‘लक्ष्य निर्धारण’। उन्होंने लिखा है, “सबसे पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करें, लक्ष्य ऊँचा रखें, चरणबद्ध योजना बनाएँ, संकल्पित हों और हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करें।” अपने लेखों में दीपक गिरकर जी प्रमाण के रूप में दुनिया भर के महान लोगों के कथनों को लिखा और समझाया है। उन्होंने स्वयं बहुत पढ़ा है और जीवन भर के प्राप्त अनुभवों को हम सभी के लिए इस संग्रह में संगृहीत किया है। 

कड़ी मेहनत ही सफल व्यक्तित्व की कुंजी है। कड़ी मेहनत से क़िस्मत का दरवाज़ा खुलता है, मिट्टी सोना बन जाती है और सफलता क़दम चूमने लगती है। गिरकर जी नाना उदाहरण-प्रसंगों से श्रम की सार्थकता सिद्ध करते हैं, बताते हैं कि श्रमशील मनुष्य का समाज में आदर होता है और श्रमशील मनुष्य थकता नहीं बल्कि परिश्रम को मनोरंजन समझता है। ‘अच्छे नेतृत्व के गुण’ लेख में गिरकर जी चाणक्य-चन्द्रगुप्त का उदाहरण देते हैं। अच्छे नेतृत्व के लिए बताते हैं कि जिसकी करनी-कथनी एक हो, जो लक्ष्य को पूरा करे, स्वयं अनुशासित हो, श्रम को पूजा माने, ज़िम्मेदारी उठाए, ग़लतियों को स्वीकार करे और उससे सीखें। यहाँ उन्होंने कलाम साहब के जीवन संघर्षों और कुशल नेतृत्व को रेखांकित किया है। अपनी क्षमताओं पर विश्वास, स्वयं पर विश्वास ‘आत्मनिर्भरता’ है। स्वावलम्बन का मार्ग महानता की ओर ले जाता है। गाँधी जी कहा करते थे, “दुखी वही है जो दूसरों पर निर्भर है।” अब्राहम लिंकन स्वावलम्बन से ही अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे। उन्होंने ईश्वरचंद विद्यासागर के जीवन का प्रसंग लिखा है जब उन्होंने किसी युवक का सामान उठाया था और कहा था, “तुम देश के भविष्य हो, अपना काम स्वयं करो। अगर अपनी अटैची का बोझ नहीं उठा सकते तो देश की ज़िम्मेदारी कैसे उठाओगे?” गिरकर जी ने लिखा है, “जीवन में सफलता ईमानदारी की नींव पर आधारित है।” ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं है। स्वामी रामतीर्थ ने कहा है, “यदि आपका हृदय ईमानदारी से भरा है, तो एक शत्रु क्या, सारा संसार आपके सम्मुख हथियार डाल देगा। उनका अगला लेख है ‘एकाग्रता सिद्धि का सर्वोत्तम उपाय’। न्यूटन, विवेकानन्द के प्रसंगों की चर्चा करते हुए गिरकर जी ने जीवन में एकाग्रता के महत्त्व को समझाया है। उनका लेख ‘कर्त्तव्य पालन’ बहुत ही महत्त्वपूर्ण संदेश देता है। बिड़ला जी, सरदार पटेल, महात्मा गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री जैसे महान लोगों के कर्त्तव्य पालन के दृष्टान्तों से गिरकर जी ने कर्त्तव्य पालन के बारे में लिखा है। 

‘गर्भ संस्कार’ इस संग्रह का महत्त्वपूर्ण लेख है। हमारे हिन्दू धर्म में16संस्कारों की चर्चा होती है जिसमें ‘गर्भ संस्कार’ प्रथम है। यजुर्वेद में इस संस्कार के महत्त्व का उल्लेख है। गर्भवती महिला की दिनचर्या, आहार, प्राणायाम, ध्यान, गर्भस्थ शिशु की देखभाल आदि का चिन्तन इसके अन्तर्गत होता है ताकि शिशु स्वस्थ और श्रेष्ठ मन-भाव का हो। व्यावहारिक जीवन की चर्चा करते हुए दीपक गिरकर जी लिखते हैं, “कामयाब होना है तो बहरा बनो”। इसका आशय यही है कि अपने दिल की सुनो, दुनिया की बातों में मत उलझो। अगला लेख ‘महत्त्वाकांक्षा’ है जिसका मतलब है, कुछ बड़ा, कुछ नया करने का भाव। महत्त्वाकांक्षी होना हमारा स्वाभाविक गुण है। ऐसा व्यक्ति कुछ बड़ा सोचता है, बड़े के लिए कार्य करता है और स्वयं को बड़ा बना लेता है। यह मानव हृदय की शक्तिशाली अभिलाषा है। गिरकर जी ने इसके गुण-अवगुण दोनों पक्षों की विवेचना की है और संतुलन पर बल दिया है। वे जीवन में ‘रचनात्मक दृष्टिकोण’ पर बल देते हैं। गीता में लिखा है—समस्या और समाधान साथ-साथ जन्म लेते हैं। गिरकर जी विस्तार से ‘333की कहानी’ सुनाते हुए रचनात्मक दृष्टिकोण की व्याख्या करते हैं। ‘लगन इंसान के अंदर अपार ऊर्जा भर देती है’ लेख में उन्होंने अनेक उदाहरणों द्वारा ‘लगन’ के गुणों की चर्चा की है और सफलता का मार्ग दिखाया है। ‘संगत का असर’ लेख में उन्होंने जीवन में संगति के महत्त्व को बताया है। सीधी-सी बात है, अच्छी संगति से मनुष्य का जीवन सुखी रहता है और बुरी संगति से हानि होती रहती है। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं, “सठ सुधरहिं सतसंगति पाई, पारस परस कुधात सुहाई।” अनेक उदाहरणों से संगति के महत्त्व की चर्चा अपने इस लेख में दीपक गिरकर जी ने किया है। 

‘आत्म संतोष जीवन का सबसे बड़ा धन’ लेख संदेश देता है कि संतोषी व्यक्ति हर तरह से सदा सुखी रहता है। यह जीवन के मनोविज्ञान का व्यापक पहलू है। चाणक्य पत्नी की सुंदरता, भोजन और धन को लेकर संतोष करने का उपदेश देते हैं और अध्ययन, दान, जप के लिए सर्वथा असंतुष्ट रहने की सलाह देते हैं। संतोष धारण करने की तरह गिरकर जी ‘सकारात्मक सोच’ शीर्षक से जीवन में सकारात्मक सोच की व्यापक महत्ता बताते हैं और विविध उदाहरणों से अपने चिन्तन को प्रमाणित करते हैं। हेलेन केलर का प्रसंग आँखें खोलने वाला सकारात्मक चिन्तन का बेहतरीन उदाहरण है। नकारात्मक सोच वाले दुखी रहते हैं और समस्याओं में घिरे रहते हैं। ‘सफलता का ताला खोलती है संघर्ष की चाबी’ जीवन संघर्ष पर आधारित सुंदर भाव-विचार का लेख है। सारांश यही है—हमारा संघर्ष ही हमें सफलता के शिखर तक पहुँचाता है। कोशिश करने वाला हमेशा सफल होता है। संघर्ष करना, प्रयत्न करते रहना हमारे स्वभाव में होना चाहिए तभी जीवन में सुख-शान्ति हो सकती है। यहाँ भी गिरकर जी ने अनेक लोगों की सफलता के पीछे संघर्ष करने की कथा लिखी है। वैसे ही अगले लेख ‘सहनशीलता मानव का दिव्य आभूषण है’ में सहनशील स्वभाव के लाभों की चर्चा हुई है। सहनशीलता एक तपस्या है। यह मानव का उत्कृष्ट गुण है। सहनशील व्यक्ति धैर्य और संयम से काम लेता है, वह अनुशासित होता है और उसे कोई पराजित नहीं कर सकता। दीपक गिरकर जी अपने लेख ‘सृजनशीलता का महत्त्व’ में लिखते हैं, “सृजनात्मक व्यक्ति जिज्ञासु, साहसी, दृढ़ निश्चयी, संवेदनशील, दूरदर्शी, कल्पनाशील और भविष्यद्रष्टा होता है। उनमें विरोध सहने की अधिक क्षमता होती है और उनके कार्य मौलिक होते हैं।” इस लेख के संदेश पाठकों को चमत्कृत करने वाले हैं। संग्रह के अंतिम लेख ‘मानवीय मूल्यों की शिक्षा’ में गिरकर जी ने जीवन में मानवीय मूल्यों पर विवेचनात्मक चिन्तन किया है। आज शिक्षा में ह्रास हुआ है, हमें मानवीय मूल्यों की समझ नहीं है परिणाम स्वरूप समाज में विघटन अधिक है। विस्तार से गिरकर जी ने मानवीय मूल्यों को लेकर चिन्तन किया है और उनके संदेशों को समझने की आवश्यकता है। 

इस तरह ‘नींव के पत्थर’ गिरकर जी का श्रेष्ठ लेखन है जिसके संदेश मानव जीवन के उत्थान में सहायक होने वाले हैं। उनकी सहज भाषा और संदेशात्मक शैली प्रभावित करने वाली है। यह पुस्तक जन-जन तक पहुँचे और इसकी शिक्षाएँ सभी के जीवन में उतरे। 

विजय कुमार तिवारी
समीक्षक
टाटा एरेना हाउसिंग टावर–4, फ़्लैट-1002, 
पोस्ट-महालक्ष्मी विहार,
भुवनेश्वर-751029

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं