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विनीत मोहन औदिच्य कृत ‘सिक्त स्वरों के सोनेट’ की गहन भाव-संवेदनाएँ

समीक्षित कृति: सिक्त स्वरों के सोनेट
साहित्यकार: विनीत मोहन औदिच्य
प्रकाशक: सर्व भाषा ट्रस्ट, दिल्ली
मूल्य: ₹250/-

पिछले महीने सुखद संयोग बना, विश्वगाथा पत्रिका के जनवरी-मार्च 2023 अंक में कटक, भुवनेश्वर की रहने वाली सुश्री अनिमा दास द्वारा रचित काव्य विधा के सोनेट पढ़ने को मिले। ध्यान जाना स्वाभाविक था। सोनेट काव्य विधा के बारे में बस इतनी ही जानकारी थी कि हिन्दी के बड़े कवि त्रिलोचन जी ने हिन्दी में सोनेट लिखे हैं। आख़िर यह कैसी काव्य विधा है जिसमें लेखन बहुत कम या नहीं के बराबर हुआ है। कुछ तो कारण रहे होंगे, कवियों का ध्यान सोनेट लेखन की ओर नहीं गया। मुझे साहित्य की लगभग हर विधा की पुस्तकें पढ़ने को मिली और मैंने उन पर समीक्षाएँ लिखी परन्तु अब तक सोनेट पर किसी पुस्तक को पढ़ने, समझने का अवसर नहीं मिला। 

सबसे सहज और सरल था, सुश्री अनिमा दास जी से ही जानकारी प्राप्त करना। जितनी जानकारियाँ मिली, मेरी उत्सुकता बढ़ती गई। उन्होंने सागर, मध्य प्रदेश के विनीत मोहन औदिच्य जी का नाम लिया जिन्होंने हिन्दी में सोनेट लिखा भी है और अन्य भाषाओं से सोनेट का हिन्दी में अनुवाद भी किया है। औदिच्य जी के अनेक काव्य संग्रह, ग़ज़ल संग्रह और सोनेट संग्रह छप चुके हैं। उन्हें अनेकों सम्मानों-पुरस्कारों से सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। सुखद है, उनका सोनेट संग्रह ‘सिक्त स्वरों के सोनेट’ मेरे सामने है जो 2022 में सर्व भाषा ट्रस्ट, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में कुल 118 सोनेट काव्य हैं जिसमें 33 छंदबद्ध सोनेट्स भी सम्मिलित हैं। 

सोनेट इटेलियन शब्द सानेटो का लघु रूप है। यह धुन के साथ गायी जाने वाली चौदह पंक्तियों की कविता है जिसकी शुरूआत इटली से मानी जाती है। बाद में इसे इंग्लैंड ले जाया गया और दुनिया भर में इसका विस्तार हुआ। शाब्दिक रूप से यह एक “छोटा गीत” होता है, परंपरागत रूप से यह एक ही भावना पर प्रतिबिंबित करता है और इसकी समापन पंक्तियों में स्पष्टीकरण या विचार प्रस्तुत किए जाते हैं। हिन्दी भाषा में सोनेट लेखन के जनक त्रिलोचन शास्त्री हैं जिन्होंने अनेक तरह के प्रयोगों के साथ इसका विस्तार किया है। 

अपने ‘प्रकाशकीय’ में केशव मोहन पाण्डेय जी ने लिखा है, “आदरणीय औदिच्य सर ने इस पुस्तक के अस्सी सोनेट में जीवन के हर क्षेत्र और मन के हर भावों को अभिव्यक्ति दी है। यह केवल संग्रह ही नहीं है, साहित्यानुरागियों के लिए एक श्रेष्ठ रचना भी है और सीखने वालों के लिए हिन्दी सोनेट की पाठशाला भी। इस पुस्तक की रचनाओं में शब्दों का चयन हो या भावों की अभिव्यक्ति, दृश्यों का सामान्यीकरण हो या अनुभूतियों का सौन्दर्यबोध, पाठक को निश्चित ही हर दृष्टि से चमत्कार का अनुभव होगा। सोनेटियर औदित्य जी ने अपनी रचनाओं में हिन्दी के पारम्परिक छंदविधाओं का सफल प्रयोग तो किया ही है, अपने सोनेट को विभिन्न विषय से जोड़कर नूतनता और ऊँचाई भी प्रदान किए हैं।”

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने इस संग्रह की प्रस्तावना में लिखा है, “स्वर तभी सिक्त होते हैं जब व्यक्ति अंतःसंवेदनाओं से भीगता है। डॉ. औदिच्य के सोनेट्स में जीवन के अनेक पक्ष हैं: घर, स्त्री, पुरुष, चिड़िया, स्ववेदना एवं परवेदना आदि सभी कुछ है। उनके सोनेट्स की विशेषता यह है कि विदेशी शैली में होते हुए भी देशज स्वरूप की सांद्रता लिए हुए है।” कटक, उड़ीसा की महत्त्वपूर्ण सोनेटियर सुश्री अनिमा दास ने इस संग्रह पर ‘सिक्त स्वरों के सोनेट्स’ शीर्षक से बेहतरीन लेख लिखा है। वे लिखती हैं, “जब शब्दों को मिलती है भावों की पोशाक एवं भाव में प्रतीत होता रूपांतर क्षण भर के लिए—कई काव्यधाराएँ सम्मिलित होती हैं हृदय उपकूल में। मन उपत्यका में संचरित होता है सिक्त सलिल।” उन्होंने औदिच्य जी के इस संग्रह को लेकर लिखा है, “इस सोनेट यात्रा में ‘सिक्त स्वरों के सोनेट’ संकलन एक और कल्पना की तरंग है एवं प्रत्येक सोनेट नव उद्देश्य से रचित है। सामाजिक, पौराणिक एवं प्रामाणिक विषय वस्तु से केंद्रित कई सोनेट्स हमें दर्शन एवं आध्यात्मिक स्तर से जोड़ते हैं—कई सोनेट्स शुद्ध शाश्वत प्रेम में कर द्रवित हमें प्रत्यक्ष रूप में स्वर्गिक आभा से जोड़ते हैं।”

अपनी शुभाशंसा में डॉ. छबिल कुमार मेहेर ने ‘सिक्त स्वरों के सोनेट’ को औदित्य जी की अनुपम कृति कहा है। इसकी भाषा, शैली व लय अप्रतिम है, इसके छन्द, भाव व प्रस्तुति अद्भुत है। स्वयं डॉ. विनीत मोहन औदिच्य ने अपने ‘आत्मकथ्य’ में विस्तार से अपने सोनेट लेखन यात्रा का उल्लेख किया है। उन्होंने पाब्लो नेरुदा के 100 सोनेट्स का हिन्दी में अनुवाद किया है। वे लिखते हैं, “प्रमुखतः प्रेम विषयों पर लिखा जाने वाला सोनेट अब विविध विषयों पर लिखा जाने लगा है। उनके चिन्तन से सहमत होते हुए उद्धृत करना उचित ही होगा, वे लिखते हैं—चौदह पंक्तियों की इस संक्षिप्त कविता में अनुभूति, रस, भाव, अलंकार, बिंब, तुकांत व पदांत योजना आदि तत्वों का सम्मिलित होना अनिवार्य है तभी इसे निकट भविष्य में प्रभावी व लोकप्रिय बनाया जा पाना सम्भव है।”

डॉ. विनीत मोहन औदिच्य ने संग्रह के दूसरे भाग में रूपमाला, शक्ति, मधुमालती, विजात, वाचिक भुजंग प्रयात, रजनी, सीता/गीतिका, हरगीतिका, विधाता, स्नग्वणी, वल्लकी, वृत्त, दिग्पाल, रोला, सार, अवतार, पंचचामर, राधा, भिखारी और कुकुभ छंदों का प्रयोग करते हुए सोनेट्स लिखे हैं। शायद ही आज के कवियों, लेखकों, आलोचकों, समीक्षकों (मुझ सहित) को छंदों का पर्याप्त ज्ञान है। ‘मधुर संगीत जीवन’ सोनेट में कवि को जीवन मधुर संगीत लगता है। साथ ही इसमें आशा का दीपक जलाने, आत्मबल व उत्साह से युक्त होने, काल्पनिक संभावनाओं पर ध्यान न देने, विश्वास के साथ सत्य पथ पर चलने और हार न मानने का संदेश है। ‘अवर्णित पीर’ में गहन भाव है। ‘हुआ फागुनी मन तरल प्रेम में’, मिलन की घड़ी मौन हूँ व्यग्र भी जैसी पंक्तियों के साथ ‘फागुनी मन’ का अंत देखिए:

बसा रूप पिय मन हुई बावरी
पिया अंग लग कर हुई सांवरी। 

डॉ. औदिच्य जी, हमारे उत्सव, त्योहार और देश भक्ति को लेकर जो भावनाएँ व्यक्त करते हैं, पाठक विचित्र अनुभूति करते हैं और चमत्कृत होते हैं। दीवाली, हे ज्ञानदात्री शारदे, रासलीला, भारत बने सुनहरा, माँ भारती, रंग नव घोलो जैसे छांदस सोनेट्स में उनके भाव खुलकर उभरे हैं। राधा, कान्हा सोनेट में अटल प्रेम के भाव हैं। सोनेट वैसे भी प्रेम की भावनाओं से भरे होते हैं, प्रीति, प्रेम है अपना अधूरा, प्रेम की सँकरी गली, निष्काम प्रीति, है मिलन की यह घड़ी जैसे सोनेट्स में औदिच्य जी की अभिव्यक्ति देखते बनती है। प्रेमी की दशा का अनुभव कीजिए:

पुष्प सा महका न जीवन, कष्ट है भारी
नेत्र करके बंद बैठे, रैन भर सारी
धमनियों में रक्त बहता, पर निराशा है
श्वास है अवरुद्ध मेरी, दूर आशा है। 

कवि को प्रेम की सँकरी गली में प्रियतमा का साथ मिलता है, फूल खिल उठते हैं, रूप की झाँकी सजाए नायिका कोई गर्विता लगती है और वह प्रेम भाव में साथ बहना चाहता है। निष्काम प्रीति का यह भाव देखिए:

रात भर श्याम ने नृत्य जी भर किया
प्रीति निष्काम की ज्योति से भर दिया। 

‘है मिलन की यह घड़ी’ में नायिका का मनोभाव देखिए, वह खुलकर निमंत्रण देती है और स्वयं को समर्पित करती है:

आज प्रियतम पास आकर तुम, आलिंगन में समाओ
चूम करके अंग मेरे सब, रात्रि उत्सव मनाओ। 

उन्होंने अपने छांदस सोनेट्स में विविध भावों को लेकर सृजन किया है और ईश्वर से गुहार करते हैं—प्रभु मौन तोड़ो भुजा तुम उठाओ/मुझे पापियों के दमन से बचाओ। यह भाव भी देखिए—प्रेम को भर कर हृदय में स्वप्न तुम बुन लो। पिता को देवता मानने का भाव कवि की उच्चतर अवस्था है:

पथ दिखाया जो मुझे, गर्व से उस पर चलूँगा
कर सुमन अर्पित तुम्हें, ज्ञान की सीढ़ी चढूँगा। 

‘वेदना की राह में’ सोनेट में कवि की पीड़ा द्रवित करती है—भावना का वेग उमड़ा, अश्रु की धारा बही। ‘बंधनों का खेल’ में कवि सुखी-दुखी होने के बारे में बताता है और सद्कर्म करने का संदेश देता है। ‘पाप की गागर’ में उनका मत है, सदैव ईश्वर के न्याय से डरना चाहिए। ‘दिव्यांगता’ में कवि दिव्यांग लोगों के प्रति प्रेम, सहयोग के भाव व्यक्त करता है—विभूषित है गुणों से वो, कभी ना व्यंग्य तुम करना। ‘यही है कामना मन की’ सोनेट में कवि की नायिका के लिए अद्भुत कामनाएँ हैं—धरा पर हो विचरती तुम, धवल सा रूप ले तेरा/यही है कामना मन की, मिलन होगा कभी मेरा। ‘शाश्वत मूल्य’ में कवि ने अपने राष्ट्र, यहाँ की नदियों, यहाँ की हिन्दी भाषा, हमारे वेद, रामायण, गीता के श्लोक, कृष्ण-भक्ति, राम-सीता, कृष्ण-राधा, शिव-शिवा सबको शाश्वत माना है। कवि नूतनता के गीत गाना चाहता है और सुरीली तान छेड़ने को कहता है। ‘जो स्वप्न से जगे नहीं’ सोनेट में कवि सबको सावधान होने का उपदेश देता है अन्यथा वह कर्महीन वासना में डूबा रह जायेगा। कवि अपने मन से कहता है:

हे मन तुम निराश मत होना। ‘उड़ान’ में कवि का भाव देखिए:

विरह-मिलन सहर्ष सह, सदैव प्रेम युक्त हो
शिवत्व भाव उर लिये, विहग उड़ान, मुक्त हो। 

‘त्रस्त पथिक’ में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है—मुझको उबार कर तुम, हे नाथ तुम बचाओ/दे प्रेम की प्रसादी, भव पार तुम लगाओ। ‘हम कह न सके’ सोनेट का संवाद देखिए:

हम कह न सके तुम सुन न सके
साकार सपन, कुछ कर न सके। 

डॉ. विनीत मोहन औदिच्य ने इस संग्रह में छांदस सोनेट्स के अलावा विविध विषयों पर 85 अन्य सोनेट्स का संग्रह किया है। उन्होंने हमारे प्राचीन महापुरुषों-श्रीराम, सीता, सौमित्र, हनुमान, भरत, जगदम्बे, हरि-हर, आदर्श भक्त आदि पर अद्भुत सोनेट्स लिखा है। साथ ही रात्रि, श्रावण की शुष्कता, उद्विग्न आकाश, बसंत ऋतु, प्रेम चातक, नेह का दर्पण, काल, धूप, पावस ऋतु, कलिकाल, निर्मोही काल, साँझ की बेला जैसे मौसम, समय या ऋतुओं पर भी लिखा है। अन्य सभी सोनेटियर की तरह औदिच्य जी के बहुतेरे सोनेट्स प्रेम से पगे हुए हैं। प्रेम की अभिव्यक्ति यहाँ भी उनके सोनेट्स का मूल है। प्रेम तो वैसे भी सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है, कवि का उसमें रम जाना स्वाभाविक ही है। प्राण सुधा, प्रेम अमिय, प्रेम पथ, मधुरिम सुर, प्रणय याचना, प्रणय तरु की वल्लरी, प्रेमांकुर जैसे सोनेट्स उन्होंने प्रेम को आधार बनाकर ही लिखा है। 

औदिच्य जी के लेखन में जीवन नाना प्रसंगों में उभरता है। ‘जीवन’ शीर्षक के सोनेट में कवि के लिए जीवन को परिभाषित करना सहज नहीं है:

कैसे समझाऊँ इस जीवन की, अति दुरुह परिभाषा
धूप छाँव से सुख दुख रहते और आशा निराशा। 

कवि के लिए ‘शून्यता’ अत्यन्त प्रिय है क्योंकि जीवन में शून्यता आते ही भौतिक विचार कम होते जाते हैं, सांसारिक वासनाओं का क्रंदन रुक जाता है और शून्यता की दिव्यता में प्रभुत्व उभरने लगता है। कवि स्वयं को पंखहीन चिड़िया की तरह अनुभव करता है और ईश्वर पर विश्वास करता है। ‘नारी’ सोनेट में औदिच्य जी ने सम्पूर्ण नारी जाति के लिए गहन अनुभूति की है और यथार्थ चित्रण किया है। ‘मैं, नदी, सागर’ में उनका प्रश्न है-कौन हूँ मैं? कहाँ से आया हूँ? कहाँ जाना है? और अंत में निष्कर्ष देखिए:

मैं, नदी, महासागर की पहेली, चैन न मुझको लेने देती
ईश्वर के ब्रह्माण्ड की रचना नव स्वरूप नित नित ही लेती। 

उन्होंने ग्राम्य जीवन, रुक्ष वृक्ष, यमुना तीर, प्रभु से मेल, बेटी, जीवन तरिणी, मंगलामुखी, दिव्य युगल सरकार, पाषाण शिला, स्वर्ग नर्क, चातक मैं, याचक, व्यथित मन, पूर्ण विराम, मधुवन जैसे जीवन से जुड़े नाना प्रसंगों, स्थितियों, भावनाओं को सोनेट के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति का आधार बनाया है। इस क्रम में नीलांबरी, सौन्दर्य स्वामिनी, तापसी, सुरसरि, अप्सरा, कादंबरी जैसे सोनेट्स हमारे मन में अद्भुत भाव जगाते हैं। यह कवि की उड़ान है और प्रकृति के रहस्योद्घाटन का कोई अभिनव चिन्तन भी। डॉ. विनीत मोहन औदिच्य बार-बार स्वयं को लघु प्रमाणित करते हैं, सर्वत्र कोई शक्ति महसूस करते हैं और ईश्वर की ओर उन्मुख होते हैं। ‘जीवन का उत्तरार्ध’ मार्मिक भाव का सोनेट है जिसमें अपनी सहधर्मिणी को सौन्दर्य शिखर पर अनुभव करते हुए विगत सम्पूर्ण जीवन को याद करते हैं और उनके साथ प्रतिपल जीते हैं। ‘एक प्रश्न’ में कवि अनेकों प्रश्न करता है परन्तु अंत में स्वीकार करता है:

तुम्हीं वही अदृश्य सी मेरी प्रेरणा हो
मोहासक्त जीवन की अवधारणा हो। 

कवि के जीवन में भटकाव है, मोह है, आसक्ति है और नाना प्रश्न हैं। यह सम्पूर्ण सृष्टि ऐसे ही है। कवि उस सत्य को अनुभव करता है और स्वीकार करता है। कोई ‘अज्ञात भय’ रहता है कवि के जीवन में:

इन दिनों मैं विवश सा अज्ञात भय में जी रहा हूँ
रह सशंकित हर घड़ी अपना लहू ही पी रहा हूँ। 

औदिच्य जी ‘वैराग्य’ अनुभव करते हैं अपने भीतर, ‘शाश्वत सत्य’ को पहचानते हैं और यह संसार उन्हें ‘मृग मरीचिका’ सा लगता है। ये सभी सोनेट्स उनकी उच्चतर मनःस्थिति का परिचय देते हैं। ‘समाधियाँ’ इसी दिशा में उनका महत्त्वपूर्ण सोनेट है जिसके भाव किसी को भी विह्वल कर सकते हैं। औदिच्य जी सदैव उच्चतर मनःस्थिति में रहते हैं और उनके सोनेट्स इसका संदेश देते हैं। 

देश और देश भक्ति को लेकर उन्होंने अनेक सोनेट्स लिखे हैं, जिसमें पन्द्रह अगस्त, भारत वर्ष, स्वर्णिम भारत के साथ-साथ युद्ध, वीर जवान जैसे सोनेट्स भी हैं। ‘युद्ध’ की विभीषिका से पूरी दुनिया त्रस्त है और यह मानवता के लिए श्राप है। ‘पन्द्रह अगस्त’ में कवि को जंग जारी रहने, जनसंख्या वृद्धि, भ्रष्ट व्यवस्था और दुखियारी जनता जैसे प्रसंग विचलित करते हैं। ‘भारत वर्ष’ में कवि के भाव निराले हैं:

दैविक, भौतिक संतापों से, मुक्त हों भारत के वासी
रहें प्रफुल्लित सब जन गण कभी न छाये यहाँ उदासी। 

अंत में वे लिखते हैं:

मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर से, गूँजे बस एक ही नारा
प्रेम की भाषा बोल एक है, भारत वर्ष हमारा प्यारा। 

‘आशा की किरण’ और ‘दर्पण में’ जैसे सोनेट में कवि अपनी प्रियतमा को अनेक रूपों में याद करते हुए आशा की किरण की उम्मीद करता है:

हर सुबह लाती है अपने साथ आशा की किरण
कौन जाने किस बहाने हो रहे अपना मिलन। 

‘स्वप्न नगर’ में कवि का मन पीड़ित है, सबकी आँखों में स्वप्न नगर बसा हुआ है, ग़रीब की आँखों में सूनापन है, युवा रोज़गार खोज रहा है, ग़रीब लड़कियाँ अनब्याही हैं, नेता को सत्ता की कुर्सी दिखाई दे रही है। जितनी आँखें, उतने सपने हैं परन्तु किसी की आँख में कल का हिन्दुस्तान दिखाई नहीं दे रहा है। 

‘शिक्षक’ में आज के शिक्षकों की स्थिति पर कवि को दुख है और वह गुरुकुल परम्परा को याद करता है। ‘शिक्षा’ आज मात्र उदर पूर्ति का माध्यम बन गई है। शिक्षक में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास नहीं है। कहाँ से एकलव्य, आरुणि, कर्ण, अर्जुन और विवेकानन्द जैसे योग्य शिष्य पैदा होंगे? 

डॉ. विनीत मोहन औदिच्य के सोनेट लेखन का व्यापक विस्तार हुआ है, जीवन का शायद ही कोई क्षेत्र अछूता हो। ‘ऊँचाई’ और ‘पाप-पुण्य’ में उनका उपदेशात्मक चिन्तन समझने योग्य है। पद-प्रतिष्ठा, धन-दौलत पाकर किसी को अभिमान नहीं करना चाहिए। ऊँचे पेड़ कहाँ किसी को छाया दे पाते हैं? उनका संदेश है, पाप-पुण्य का लेखा-जोखा हर व्यक्ति को करते रहना चाहिए। ‘अस्तित्व’ सोनेट का भाव-चित्रण झकझोरने वाला है:

राष्ट्रीय प्रतीकों की सुगंध में खोज रहा दुर्भाग्यशाली मैं अस्तित्व
प्राण का उत्सर्ग किया जिसने कहाँ वह वीर व उसका कृतित्व? 

ऐसी ही भाव-चेतनाओं से भरे सोनेट्स-निर्वाण, अस्मिता, एकात्म, अहं, स्रोतस्विनी, हृदय क्रंदन और जीवन सार पाठकों को चमत्कृत करने वाले हैं। ‘नारी शक्ति’ में उन्होंने माँ को प्रथम कवयित्री कहा है, जो नवजात शिशु को लोरी गाकर सुलाती है। उन्होंने देश की अनेकों महान नारियों को याद किया है और अपनी श्रद्धा समर्पित की है। अपनी मनोदशा और स्थिति पर विह्वल भाव से उन्होंने ‘अभिशप्त हूँ मैं’ सोनेट लिखा है। जीवन की ऐसी समझ और स्वीकारने की शक्ति विरले कवियों में मिलती है। 

संग्रह का ‘सिक्त स्वरों के सोनेट’ के नाम पर ही इस पुस्तक का औदिच्य जी ने नामकरण किया है। प्रकृति चित्रण अनुपम है, भाव-संवेदनाएँ झकझोरती हैं और कवि ने अपने सम्पूर्ण प्रेम को कृष्ण को समर्पित किया है:

सिक्त स्वरों के सोनेट से मिटती है हृदय की अन्तिम तृष्णा
मानो होते बृज कुंज प्रफुल्लित जब बजाता बाँसुरी कृष्ण। 

‘सिक्त स्वरों के सोनेट’ को पढ़ते हुए औदिच्य जी की साहित्यिक प्रतिभा की गहराई अनुभव होती है। वे अनेक विधाओं में सृजन करते हैं। उनकी भाषा और शैली प्रभावित व आकर्षित करती है। उन्होंने सोनेट लेखन में दक्षता हासिल की है। उनके सोनेट्स गीत, लय, अलंकार और छंद से युक्त हैं। उनके लेखन में प्रवाह है और सहज, सरल शब्दों में वे स्वयं को अभिव्यक्त करते हैं। उनके कथ्य में गहराई है परन्तु वे स्वयं को सामान्य भाव से ही देखते हैं। इस तरह उन्होंने हिन्दी साहित्य को सोनेट विधा में लेखन करके समृद्ध किया है। 

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