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पुराना डायरी का पन्ना

 

और वो दिन आ ही गया जिसका इंतज़ार था। कल शाम से ही नहीं बल्कि पिछले सप्ताह से वो उससे मिलने की उत्सुकता में लबरेज़ था। सुबह के सात बज गये पर वो तो रात को भी ढंग से सोया नहीं इसी से वो आज जल्दी उठ गया था। बालकानी की सफ़ाई करते हुए वो कुछ गुनगुना रहा था शायद वही पंजाबी गीत जो अक़्सर गुनगुनाया करता था। गली में चहल-पहल होने लगी थी अब तक और मौसम का तो कहना ही क्या—मंद-मंद समीर से सामने खड़ा वृक्ष भी जैसे नाच रहा हो। कल शाम बूँद के छींटों से कुछ शीतलता आ गयी थी जो अब तक है। शाम को सात बजे उन्हें आना है पर लगता है कुछ ही देर बची हो। ये विमला भी अभी तक नहीं आई, “ममा ये कितने बजे आती है?” 

“बेटा आठ बजे तक,” आँखों पर चश्में को लगाते हुए ममा ने जवाब दिया। “अरे बेटा शाम को सात बजे उन्हें आना है तुम क्यों इतनी जल्दी उठ गये।” 

संजु जाने कितनी बार अपने फोन को देख चुका है पर अभी तक किसी दोस्त का कोई मैसेज नहीं आया। चाचा जी ने शुभ दिन सुप्रभात भेजा है पर शुभ दिन तो तभी होगा जब सात बजेंगे शाम को। वो पिंक सूट में आयेगी या नीले गाऊन वाली ड्रैस में? वो स्वीटी की पुरानी तस्वीरें देखता हुआ बोलता है, “ममा अब चाय पिला भी दो।” हालाँकि अब तक वो दादा जी के साथ दो चाय ले चुका था। चाय पीने के बाद वो पुनः सफ़ाई में जुट गया। वो काम में तल्लीन था। 

अब तक बारह बज गये फिर डेढ़ बजा सूरज की तपन बढ़ती ही जा रही है। बाहर उजाले में देखने से सब कुछ आँखों में जैसे कौंध रहा है। समय है कि बीत रहा है पर जता रहा है कि उसे इंतज़ार है।

दिन के तीन बज चुके हैं तेज़ धूप में सारी उम्मीदें धराशायी होने लगीं—शायद इतनी उमस में वो लोग न निकलें। सफ़ाई करते-करते संजु अब थक चुका है आँखों में नींद आ जा रही है पर फिर भी शाम की तैयारियों जुटा है। लगता है तस्वीरें बोल रही हों, आकाश भी पूरा तपा हुआ है। 

“स्वीटी से बात हुई क्या?” सामने से गुज़रते हुए ममा ने पूछा।

“नहीं, वो फोन नहीं ले रही ममा; मैंने तीन बार मिला लिया पर कोई रिप्लाई नहीं आया अभी तक,” चप्पल से पैर निकालते हुए संजु वहीं खड़ा हो जाता है और गंभीरता से ममा की ओर देखता है।

ममा को चिंता हुई, “सब ठीक तो है ना?” बालों को गाँठ लगाते हुए बोलकर साथ ही सोफ़े पर हाथ टिकाकर बैठ जाती है।

सोनू बोला, “हाँ, ठीक ही होगा।” और फिर गहरा सन्नाटा . . . ऊपर मंद-मंद पंखा घूम रहा है बीच-बीच में कररर ऽऽ कररर ऽऽ की आवाज़ आ रही है। 

सात भी बज गये पर अभी तक कोई जवाब नहीं, न फोन आया और न ही कोई मैसेज। सारा परिवार जवाब क्यों नहीं दे रहा? हर ओर सन्नाटा पर खिड़की पर्दे हिल रहे हैं। 

ममा से नहीं रहा गया, “अरे सोनू फिर ट्राई कर। स्वीटी न सही किसी और को ही मिला कर देखो।”

सोनू गंभीर होकर बोला, “ममा कुछ तो बात है,” बात पर ज़ोर देते हुए ममा को फिर से देखकर कहा, “कोई भी पिक नहीं कर रहा।” घड़ी की सुइयों की टकटक गूँजती हुई हर ओर मंद-मंद संगीत अब बजने लगा था पर उसे तुरंत ही बंद कर दिया। 

रात के आठ बज चुके हैं पर सब ओर ख़ामोशी पर सबके दिलों में हलचल है, मानो कुछ अनहोनी का संकेत हो। सहसा संजू का फोन बजा . . . ‘हूँ’ की आवाज़ करता हुआ स्वीटी का फोन आया। अकेले में कुछ बोलता हुआ।

दूसरी ओर से स्वीटी की आवाज़ निकलती है, “ओह साॅरी हम आज नहीं पहुँच सके। हम दोपहर से ही बिल्डिंग की लिफ़्ट में फँसे थे। अभी-अभी बाहर निकले हैं। प्लीज़ सॉरी टू ऑल। हम कल आयेंगे शाम सात बजे। अभी थके हैं बुरा हाल है बाद में बात करती हूँ ओके बाय . . .” 

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