रंगमंच
काव्य साहित्य | कविता मनोज शर्मा1 Nov 2023 (अंक: 240, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
एक मंच कुछ कलाकार
आकृति, रंगीन पर्दे, दीवारें, लाइट्स
ध्वनि एवम् मूक कला
सामने कुर्सियों से आज रूबरू हुई
अधर में अटका शब्द
रह रह के निकलता
अन्तर्मन से फिर बीच-बीच में
कुछ अभिनय, मनःस्थिति
हवा में लहराते हाथ
बोलती आँखें ताकती नज़रें
नेपथ्य शान्ति हर ओर
मध्यांतर पुनः कुछ बातें
पाॅपकाॅर्न! कुर्सी की अदला बदली
गहन अंधकार से गुज़रता
एक गहरा अट्टहास
चीखता बिलखता अभिनय
एक लोकगीतऔर खंजड़ी बजाते
कुछ पात्र मधुर मुस्कान
हृदयों में उतर गये क्या यही रंगमंच है
हाँ शायद यही रंगमंच है।
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