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राम 

 

हे ईश्वर! प्राणाधार राम। 
विनती कर लो, स्वीकार राम। 
 
कुछ ज्ञात न आदि, न मध्य-अंत
जीवन-क्षण के विस्तार राम। 
 
सर्वत्र समान रम रहा जो
वह निराकार-साकार राम। 
 
जिस नाम से पत्थर तैर गए
वह शब्द-शक्ति-भंडार राम। 
 
दुख सागर में अवलंब तुम्हीं
मेरे तन-मन, संसार राम। 
 
पूजा, जप, तप, हठयोग, यज्ञ
हो भक्ति-मुक्ति के सार राम। 
 
अंशज-वंशज सब दीन-दुखी
सुखनिधि कर दो उद्धार राम। 
 
प्रभु रोम-श्वास में बस जाओ
कर दो सुशांति, संचार राम। 
 
चहुँदिश अशांति, बढ़ गए पाप
धरती पर लो अवतार राम। 
 
एक-सा प्रभावी नाम-रूप
पावन 'विनम्र' उद्गार राम। 

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