नवसंवत नववर्ष
काव्य साहित्य | कविता गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’15 Feb 2025 (अंक: 271, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
नवसंवत नववर्ष मनाएँ।
हिन्दु संस्कृति के गुण गाएँ।
करें विगत की सहज समीक्षा
आगत की हो सफल परीक्षा
वर्तमान का दमके भास्वर
मंगलमय प्रकाश फैलाएँ।
निज को समझें, भीतर झाँकें
मूल्य समय का श्रम से आँकें
हर्षोल्लास उमंग पर्व है
पुष्पों-सा जग को महकाएँ।
एक भी व्यर्थ न जाए पल-क्षण
ज्ञान-बोध से चमके कण-कण
सत्यं-शिवं-सुन्दरं पोषित
जनगण के सपने मुस्काएँ।
नवांकुरों को धूप मिले शुचि
कलियाँ जागें, ले स्नेहिल रुचि
भारतीयता उर में व्यापे
नवविकास का अलख जगाएँ।
नवसंवत नववर्ष मनाएँ।
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