भारतीय नववर्ष
काव्य साहित्य | कविता गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’15 Mar 2024 (अंक: 249, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, प्रथम दिवस नववर्ष।
नवसंवत्सर नाम से, देता अभिनव हर्ष।
ईसवी सन् से जो रहा, वर्ष सत्तावन पूर्व।
विक्रमी संवत का हुआ, श्रीगणेश अपूर्व।
भारतीय नववर्ष है, निज संस्कृति का स्रोत।
मित्रों संग मनाइए, होकर ओतप्रोत।
भारतीय होकर स्वजन, करिए सोच विचार।
नवसंवत को मानिए, खोल हृदय के द्वार।
गणना व्रत-त्योहार की, नवसंवत अनुसार।
छह ऋतुओं के साथ ही, चले प्रकृति व्यवहार।
लेखा-जोखा बजट का, चलता संवत मान।
नए सत्र चालू करें, शिक्षा के संस्थान।
गृहप्रवेश, परिणय, शकुन, सकल मांगलिक कार्य।
नवसंवत की दृष्टि से, शुभ मुहूर्त अनिवार्य।
छाया सारी प्रकृति पर, ऋतु वसंत का राज।
बाँध लिया नववर्ष ने, पुष्पों वाला ताज।
भारत के सम्राट थे, विज्ञ विक्रमादित्य।
विक्रम संवत का उगा, नूतनवर्षादित्य।
रामजन्म, जन्माष्टमी, अन्य दिव्य अवतार।
मना रहे हैं हम सभी, नवसंवत अनुसार।
नवसंवत्सर का रुचिर, वैज्ञानिक आधार।
प्रकृति प्रभावित कर रही, ऋतुओं का आचार।
जागें ब्रह्म मुहूर्त में, करें स्नान, प्रभु ध्यान।
सूरज की पहली किरण, विखराए मुस्कान।
धूप-दीप, नैवेद्य से, पूजें देवस्थान।
निज घर ख़ूब सजाइए, निर्धन को दें दान।
मंगल ध्वनि कर शंख की, हों फेरियाँ प्रभात।
मिलजुल कर सेवा करें, गो, संतों की तात।
स्नेह-बधाई दीजिए, मित्र हों देश-विदेश।
एसएमएस, ई-मेल से, भेजें शुभ संदेश।
भगवा ध्वज, तोरण सजे, कार्यालय, घर, द्वार।
रोली-चंदन तिलककर, सबका हो सत्कार।
नवसंवत अपनाइए, ईसवी सन् को छोड़।
भारतीयता को पुनः, लें संस्कृति से जोड़।
हिंदु संस्कृति से जुड़ा, भारतीय नववर्ष।
तन-मन से स्वागत करें, सभी मनाएँ हर्ष।
आओ! हम नववर्ष में, करें प्रकृति से प्रेम।
जोड़े पर्यावरण से, सम्यक योगक्षेम।
वंदन-अभिनंदन करें, आया नूतन वर्ष।
सकल प्रकृति पर छा गया, नवल रूप, रंग, हर्ष।
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