प्रेम-ज्वाला
काव्य साहित्य | कविता गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’1 Nov 2023 (अंक: 240, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
क़दम रुक गए क्यों, थिरकते-थिरकते।
कहाँ आ गए हम, बहकते-बहकते।
कलियों ने हँसकर, है सौरभ लुटाया
कहा है बहुत कुछ, महकते-महकते।
कभी बाँसुरी-स्वर लुभाता हृदय को
कभी भाव विह्वल, सिसकते-सिसकते।
प्रकृति की नहीं, प्रेम-ज्वाला बुझी है
युगों हो गए हैं, दहकते-दहकते।
‘जियो और जीने दो’, संदेश अनुपम
सुनाया विहग ने, चहकते-चहकते।
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