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सरहद

 

शाम का धुँधलका धीरे-धीरे चारों ओर छाने लगा था। बार्डर पर तैनात बी.एस.एफ़. के सूबेदार ने सरहद की ओर देखा था। दूर-दूर तक फैले कँटीले तार भारत-पाक सरहद के गवाह थे। रघुराज सिंह पिछले दस सालों से सरहद पर तैनात है। इन दस सालों में सरहद पर कुछ नहीं बदला है। दूर-दूर तक फैली रेत, गर्मियों में लू के थपेड़े, रेत के अंधड़ और दोनों देशों के बीच लोगों की आवाजाही सब कुछ वैसा ही है, जैसा दस साल पहले था। 

दुनियाँ जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गई है मगर सरहद पर परिवार वालों की कुशल-क्षेम जानने का ज़रिया आज भी डाक से आने वाले पत्र ही हैं। मोबाइल हैं परन्तु यहाँ नेटवर्क नहीं मिलता। आज दोपहर रघुराज की पत्नी का पत्र आया था, तब से रघुराज बहुत उदास है। एक पेज के उस पत्र को रघुराज कई बार पढ़ चुका था। वह जब-जब पत्र को पढ़ता था उसके मन में एक टीस सी उठती थी। 

दीपावली का त्योहार आने में अब पाँच-छह दिन ही बचे थे। इस बार उसने काफ़ी पहले से ही अपनी छुट्टी मंज़ूर करा ली थी। और वह अपने बच्चों के साथ दीपावली मनाना चाहता था। मगर सर्जीकल स्ट्राइक के बाद सीमा पर बढ़े तनाव के कारण सीमा पर तैनात सभी जवानों की छुट्टियाँ रद्द कर दी गईं थी। इसलिए इस बार भी रघुराज दीपावली पर घर नहीं जा पाएगा। उसे दीपावली यहीं सरहद पर ही मनानी पड़ेगी। 

दस साल पहले रघुराज की तैनाती यहाँ की बी.एस.एफ़. में हुई थी। तब से उसने एक भी त्योहार परिवार वालों के साथ नहीं मनाया था। होली हो या दीपावली, रक्षाबन्धन हो या भाई-दूज रघुराज ने यह सारे त्योहार यहाँ सरहद पर ही अपने साथी जवानों के साथ मनाए थे। मगर रघुराज इतना उदास कभी नहीं हुआ था जितना आज था। उसे रह-रह कर अपने घर की याद सता रही थी। 

इस बार रघुराज ने अपने मन में घर पर दीपावली मनाने की पूरी योजना बना डाली थी। उसने सोचा था कि इस बार बच्चों के साथ मिलकर अपने घर को ख़ूब सजाएगा। सबके साथ पूजा करेगा, पटाखे चलायेगा और सबके साथ बैठकर मिठाई खायेगा। उसने बच्चों के लिए नए कपड़े और पत्नी तथा माँ के लिए नई साड़ी भी ख़रीद कर रख ली थी। अपने पिताजी के लिए वह जैसलमेर से एक रेडीमेड कोट लेकर आया था। मगर अचानक छुट्टी रद्द हो जाने के कारण उसके सारे मंसूबे धरे के धरे रह गए थे। 

रघुराज एक ज़िम्मेदार सिपाही है। देश के प्रति अपने फ़र्ज़ को वह अच्छी तरह समझता है। वह जानता है कि वह एक फ़ौजी है और उसका पहला फ़र्ज़ अपने वतन की सीमाओं की रक्षा करना है। इसलिए उसे अपनी छुट्टी रद्द होने का कोई मलाल नहीं था। परन्तु पता नहीं क्यों उसे आज अपने घर की याद कुछ ज़्यादा ही आ रही थी। 

एक बार फिर उसने अपनी पत्नी का पत्र निकाला और वह पढ़ने लगा था पत्र में लिखा था:

प्रिय प्राणनाथ, 

भगवान से आपकी लम्बी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करती रहती हूँ। दीपावली पर आपके आने की ख़बर पढ़कर पार्वती और रोहित ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे। दोनों चहकते फिर रहे थे कि इस बार दीपावली से पहले पापा के साथ बाज़ार जाएँगे और ढेर सारा सामान खरीदेंगे। दोनों ने अपने-अपने सामान की लिस्ट भी बना ली थी। रोहित तो अपने दोस्तों को भी यह ख़बर सुना आया था कि इस बार वह भी अपने पापा के साथ दीपावली मनाएगा। पापा और मम्मी भी काफ़ी ख़ुश थीं। उनकी आँखों में मैंने ख़ुशी की एक अनोखी चमक देखी थी। मैं अपनी क्या कहूँ मेरे प्राण तो हर समय आप में ही अटके रहते हैं। 

आपकी छुट्टी रद्द होने की ख़बर सुनकर बच्चों के चेहरे बुझ से गए हैं। हम लोग भगवान से रोज़ प्रार्थना करते हैं कि सीमा पर जल्दी तनाव ख़त्म हो और आप जल्दी से घर आएँ बच्चे आपको प्रणाम कहते हैं। 

आपकी अपनी, 
यशोदा 

पत्र पढ़कर रघुराज ने जेब में रख लिया था। उसके चेहरे की उदासी और गहरी हो गई थी। कुछ सोचते-सोचते उसकी आँखों की कोरें गीली हो गई थीं। 

तभी शाम के खाने का साइरन बज उठा था। अरे सात बज गए, वह हड़बड़ा कर उठा था। मेस में सभी के साथ उसने खाना खाया था। खाने के बाद पोस्ट पर तैनात जवानों की इमर्जेन्सी मीटिंग हुई थी। यह पोस्ट पाकिस्तान बार्डर पर भारत की आख़िरी पोस्ट थी। इसलिए इस समय यह बी.एस.एफ़. की बहुत संवेदनशील पोस्ट थी। मीटिंग में जवानों को बताया गया कि आज सरहद के उस पार पाकिस्तानी रेंजर्स की हलचल अचानक बढ़ गई है। पाकिस्तानी रेंजर्स के साथ कुछ ख़तरनाक आतंकवादियों को भी देखा गया है। इसलिए मीटिंग में पोस्ट के सभी जवानों को रात में अलर्ट रहने और हर ख़तरे का सामना करने के लिए तैयार रहने का आदेश दिया गया था। 

मीटिंग ख़त्म होते-होते दस बज गए थे। सभी जवान अपने-अपने बिस्तर पर लेट गए थे। सीमा पर तनाव से बेख़बर रघुराज का मन पंछी उड़ता हुआ अपने गाँव जा पहुँचा था। यू.पी. का एक छोटा सा गाँव भोजपुर जहाँ रघुराज का जन्म हुआ था। पिता की पाँच सन्तानों में रघुराज सबसे छोटा था। सबसे बड़ी दो बहिनें थीं जिनकी कई साल पहले शादी हो चुकी थी और वे अपनी-अपनी ससुराल में अपनी-अपनी गृहस्थी में मगन थीं। रघुराज से बड़े दो भाई थे। वे गाँव में रहकर खेती करते थे। दोनों की शादी हो चुकी थी और दोनों अपने पिता से अलग रहते थे। 

बूढ़े माता-पिता की ज़िम्मेदारी रघुराज के कन्धों पर आ गई थी। ग्रेजुएशन करने के बाद रघुराज का चयन बी.एस.एफ़. के लिए हुआ था और उसकी पहली पोस्टिंग जैसलमेर बार्डर पर हुई थी। तब से वह यहीं सरहद पर तैनात है। 

रघुराज की शादी तभी हो गई थी जब वह इंटर में पढ़ता था। रघुराज के दो बच्चे थे पार्वती और रोहित पार्वती इस वर्ष इण्टर में थी। इण्टर में उसने पी.सी.एम. ग्रुप लिया था। पावर्ती पढ़ने में बहुत तेज थी। रघुराज पार्वती को इण्टर के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराना चाहता था। उसका सपना पार्वती को इंजीनियर बनाना था। 

उसका छोटा बेटा रोहित पास के ही क़स्बे में पब्लिक स्कूल में कक्षा चार में पढ़ता था। रोहित अपने पापा का बहुत दुलारा था। छुट्टियों में रघुराज जितने दिन भी घर रहता था, रोहित एक क्षण के सलिए भी उससे अलग नहीं होता था। रघुराज के साथ ही खेलना, उसी के साथ घूमने जाना, उसी के साथ खाना खाना और रात को रघुराज के सीने से ही चिपक कर सोना रोहित को बहुत पसन्द था। इसलिए जब रघुराज छुट्टियाँ बिताकर सरहद पर वापस लौटता था उसे कई दिन तक रोहित की याद बहुत सताती थी। 

तभी रघुराज को सरहद पर कुछ आहट सी सुनाई पड़ी थी। उसने उठकर चारों तरफ़ देखा, मगर सरहद पर दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था। उसने सोचा कि शायद यह उसके मन का भ्रम था। उसने वाटरकूलर में से थोड़ा सा पानी निकाल कर पिया और दुबारा बिस्तर पर लेट गया। विचारों की कड़ियाँ फिर जुड़ने लगी थीं। 

रघुराज की आँखों के सामने उसकी पत्नी यशोदा का चेहरा साकार हो उठा था। आज से पन्द्रह साल पहले रघुराज की शादी यशोदा से हुई थी। उस समय रघुराज की उम्र अठारह वर्ष थी और यशोदा सोलह सामल की अल्हड़ किशोरी थी। रघुराज की शादी के दो साल बाद ही उसके दोनों भाई अपने बीवी बच्चों के साथ अलग हो गए थे। इसलिए माता-पिता की ज़िम्मेदारी रघुराज और यशोदा पर आ गई थी। रघुराज की माँ अक़्सर बीमार रहती थी और पिता जी का एक पैर कमज़ोर था जिससे वे अधिक चल-फिर नहीं सकते थे। यशोदा दोनों की बड़ी अच्छी तरह से देखभाल करती थी और उन्हें किसी प्रकार की परेशानी नहीं होने देती थीं उसने उन दोनों को अपने माता-पिता से भी अधिक सम्मान और प्यार दिया था। रघुराज के माता-पिता अपनी बहू की तारीफ़ें करते नहीं थकते थे। 

इन पन्द्रह सालों में रघुराज का तो अधिकांश समय तो सरहद पर ही बीता था मगर यशोदा ने घर को बहुत अच्छी तरह से सँभाल लिया था। घर और बाहर के सारे कामों की ज़िम्मेदारी वह अकेली ही उठाती, मगर उसने कभी कोई शिकायत नहीं की थी। रघुराज ने सोचा कि और बीवियों की तरह यशोदा ने ना तो कभी गहनों की फ़रमाइश की और न महँगी साड़ियों की। उसके पास जो था वह उसी में ख़ुश थी। सुन्दर, सुशील और समझदार यशोदा ने रघुराज के घर को स्वर्ग बना दिया था। रघुराज जब भी छुट्टियों में घर जाता तो उसके घर में हँसी के ठहाके ही गूँजते रहते। 

रघुराज इन्हीं विचारों में खोया हुआ था कि अचानक ख़तरे का साइरन बज उठा। पोस्ट के सारे जवान इकट्ठे हो गए। उन्हें बताया गया कि उनकी पोस्ट पर पाकिस्तानी रेंजर्स ने हमला कर दिया है। इसलिए सभी लोग अपनी पोजीशन ले लें। आदेश का तत्काल पालन हुआ था और सभी जवानों ने अपनी पोजीशन सँभाल ली थी। 

रघुराज पेट के बल लेटा हुआ शत्रु के हमला करने का इंतज़ार कर रहा था। उसके मस्तिष्क में अपने परिवार का चित्र एक बार फिर भूल गया था। माँ-बाप, यशोदा, रोहित और पार्वती का चेहरा एक-एक करके उसकी आँखों के सामने साकार हो उठा था। तभी सामने से गोलियाँ बरसने लगीं थीं। उसकी पोस्ट के जवानों को भी फ़ायर करने का आदेश हुआ था। दोनों तरफ़ से गोलियाँ बरस रही थीं। 

रघुराज के मनोमस्तिष्क से अब परिवार के सभी सदस्यों के चेहरे एक-एक करके धुँधले होते जा रहे थे। अब उसके मनोमस्तिष्क में से एक चेहरा तेज़ी से उभरा रहा था और वह चेहरा था भारत माता का। उसने धरती की मिट्टी को माथे से लगाकर भारत माता की सीमा की रक्षा करने की सौगन्ध ली और शत्रुओं पर गोलियाँ बरसाने लगा था। 

उसकी पोस्ट पर कुल दस जवान तैनात थे जबकि हमलावरों की संख्या पचास से अधिक थी मगर इससे रघुराज और उसके साथियों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई थी। मौत से बेख़बर वे तड़ातड़ गोलियाँ बरसाए जा रहे थे। इस बीच रघुराज की पोस्ट के दो जवान गोलीबारी में शहीद हो चुके थे। इन लोगों ने भी दस-बारह पाकिस्तानी रेंजर्स को मार गिराया था। 

तभी सामने से आई एक गोली रघुराज के बाएँ हाथ में लगी थी और उसका बायाँ हाथ शरीर से कटकर दूर जा गिरा था। मगर रघुराज के जोश में इससे कोई कमी नहीं आई थी। उसके दाएँ हाथ की उँगलियाँ असाल्ट राइफ़ल के ट्रिगर पर पहले से भी तेज़ गति से चल रही थी। 

रघुराज की पोस्ट के आठ जवान अब तक शहीद हो चुके थे। उन्होंने तीस-पैंतीस पाकिस्तानी रेंजर्स को मार गिराया था। अब रघुराज और उसका एक साथी जवान ही पोस्ट पर जीवित बचा था। सामने शत्रुओं की संख्या दस-पन्द्रह के क़रीब रह गई थी। तभी एक गोली रघुराज के सीने में आकर लगी थी। रघुराज ने अपने साथी से पीछे की पोस्ट को वायरलैस पर सूचना देने का निर्देश दिया था और वह राइफ़ल लेकर खड़ा हो गया था। अब उसे सामने से बरस रही गोलियों की परवाह नहीं थी। 

उसने भारत माता की जय का उद्घोष किया था और तड़ातड़ गोलियाँ बरसाना शुरू कर दी थीं। उसकी राइफ़ल से आग उगलतीं गोलियों ने आठ-दस पाकिस्तानी रेंजर्स को ढेर कर दिया था। शेष बचे पाँच-छह पाकिस्तानी रेंजर्स जान बचाकर भागे थे। भागते-भागते उन्होंने रघुराज पर ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसाई थीं। रघुराज का पूरा शरीर गोलियों से छलनी हो गया था। वह ज़मीन पर गिर गया था। 

उसने भारत माता का उद्घोष करते हुए अंतिम श्वास ली थी। उसे इस बात का गर्व था कि उसने देश की सरहद पर आँच नहीं आने दी थी। अपने परिवार से न मिल पाने की पीड़ा उसके चहरे से साफ़ झलक रही थी। उसकी पथराई आँखें मानो किसी को ढूँढ़ रही थीं। 

सरहद पर दोनों ओर ताज़ा लहू बिखरा पड़ा था और चारों तरफ़ पहले की तरह गहरा सन्नाटा पसर गया था। 

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