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कथाकार शेखर जोशी के निधन से साहित्य ‘जगत स्तब्ध'

“तुम्हीं सो गए दास्तां कहते-कहते”

 

हिन्दी साहित्य के ख्यातिलब्ध कथाकार शेखर जोशी ने 04 अक्तूबर, 2022 को गाजियाबाद के एक प्राइवेट अस्पताल में अपने जीवन की अन्तिम श्वास ली। वे इस नश्वर संसार को छोड़कर अनन्त यात्रा पर रवाना हो गए। उनके आकस्मिक निधन के समाचार से साहित्य जगत में शोक की लहर छा गई है। 

शेखर जोशी का जन्म 10 सितम्बर 1932 को अल्मोड़ा ज़िले के सोमेश्वर गाँव में हुआ था। सोमेश्वर को पहाड़ी भाषा में ओलिया भी कहते थे। उनके पिता एक साधारण किसान थे। इसलिए उनका बचपन अभावों में बीता। 

शेखर जोशी की शिक्षा अजमेर और देहरादून में हुई थी। इण्टरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान ही उनका चयन सुरक्षा विभाग में ई.एम.ई. अप्रेन्टिसशिप के लिए हो गया। 1996 तक वे एक सैनिक औद्योगिक प्रतिष्ठान में सेवारत रहे। इसके बाद उन्होंने स्वैच्छिक रूप से त्यागपत्र दे दिया और स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में जुट गए। 

उनकी रुचि कहानी लेखन में थी इसलिए उन्होंने कहानियाँ लिखना प्रारम्भ कीं। आम आदमी को केन्द्र मानकर पारिवारिक एवं सामाजिक ताने-बाने पर बुनी उनकी कहानियाँ बहुत लोकप्रिय हुईं। उनकी कहानियों की प्रसिद्धि देश की सीमाओं को पार कर विदेशों तक जा पहुँची और उनकी गणना हिन्दी के अग्रिम पंक्ति के कहानीकारों में होने लगी। अपनी साहित्य यात्रा के दौरान उन्होंने ‘कोशी के घटवार’, ‘दाज्यू’, ‘बदबू’, ‘मेटल’, ‘पेड़ की याद’, ‘नौरंगी बीमार है’ तथा प्रतिनिधि कहानियाँ जैसी अमर कृतियों की रचना की। 

उनको विशेष प्रसिद्धि ‘कोशी के घटवार’ से मिली। उनकी कुछ कहानियों का अनुवाद अँग्रेज़ी, चेक, पोलिश एवं रूसी भाषाओं में भी हुआ। उनकी एक कहानी ‘दाज्यू’ पर बाल फ़िल्म भी बनी। 

उन्होंने कई उपन्यास भी लिखे। ‘अथ मूषक उवाच’, ‘हलवाला’, ‘साथ के लोग’, ‘मेरा पहाड़’, ‘चींटी के पर’ आदि शामिल हैं। मगर उन्हें विशेष प्रसिद्धि कहानीकार के रूप में मिली। 

उनकी कहानियों में पहाड़ी जीवन, पहाड़ी संस्कृति एवं पहाड़ी परिवेश की झलक स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। उनका जन्म एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था इसलिए उनकी कहानियों में ग़रीबी, उत्पीड़न, नारी संघर्ष, तथा पहाड़ी ग्रामीण समाज में फैली रूढ़ियों का सजीव चित्रण मिलता है। उन्होंने पहाड़ी जीवन के कठोर यथार्थ को अपनी कहानियों के माध्यम से समाज तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया है। इसलिए उनकी कहानियाँ जीवन्त प्रतीत होती हैं। 

शेखर जोशी को उनकी कालजयी कहानियों के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत किया गया। सन् 1987 में उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से महावीर प्रसाद द्विवेदी साहित्य सम्मान से समादृत किया गया। 

सन् 1995 में साहित्य का अति प्रतिष्ठित सम्मान साहित्य भूषण प्रदान किया गया। सन् 1997 में उन्हें ‘पहल’ सम्मान व ‘मैथिलीशरण गुप्त’ सम्मान से समादृत किया गया। अभी कुछ समय पूर्व उन्हें ‘श्री लाल शुक्ल सम्मान’ भी दिया गया। 

आज वे इस नश्वर संसार से विदा हो गए। मगर अपनी कालजयी रचनाओं के रूप में वे सदैव अमर रहेंगे। उनकी कृतियाँ हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। उनके बारे में यही कहना सटीक होगा: 

“बड़े शौक़ से सुन रहा था ज़माना, 
तुम्हीं सो गए दास्ता कहते-कहते।” 

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