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विवशता

 

आज पिता जी को आने में देर हो गई थी। बच्चे बहुत ही बेसब्री से पिता जी का इंतज़ार कर रहे थे। इस दिवाली पर पिताजी ने बोनस मिलते ही उन्हें नए कपड़े दिलवाने का वायदा किया था। पिताजी को आने में देरी करते देख माँ के कहने पर बच्चे सोने चले गए। 

काफ़ी देर इंतज़ार के बाद थके-हारे वर्मा जी घर लौटे तो उनके चेहरे पर ख़ुशी की जगह मायूसी देखकर पत्नी शुभा को लगा, शायद बोनस नहीं मिला। 

पूछने पर उन्होंने कहा, “बोनस तो मिला था, पर मैंने चपरासी को दे दिया।” 

“पर क्यों?” 

“मुझसे उसकी मजबूरी नहीं देखी गई। मैंने उसे फोन पर किसी से बात करते सुना, उसकी माता जी बहुत बीमार हैं। पैसों की बहुत ज़रूरत है पर वह किसी से माँगना नहीं चाहता। इसलिए मैंने उसे बोनस के सारे पैसे दे दिए। उसने बहुत मना किया। बहुत मुश्किल से लिए।” 

“आपने बहुत अच्छा किया। पर बच्चों को क्या जवाब देंगे“! 

विवशता से वर्मा जी की आँखें भर आई। वे सोचने लगे, कैसे वे अपने किए वादे को पूरा करें! 

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