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करें मत अन्न बरबादी


(दोहा छंद) 
 
बरबादी से अन्न की, हलधर श्रम अपमान। 
झेले मौसम मार वह, उसका करना मान॥
 
सोचो पीड़ा कृषक की, होते वे लाचार। 
बोझिल होती ज़िन्दगी, लगता जीवन भार॥
 
हर दाने की अहमियत, जीवन का यह सार। 
करते क्यों बेकार तुम, हो निर्धन उपकार॥
 
आडंबर के खेल में, बनते अति पकवान। 
जूठन छोड़े थाल में, कैसी है यह शान॥
 
भूखे कितने लोग हैं, उसपर किनका ध्यान। 
भूले क्यों निज धर्म हैं, मुश्किल में है जान॥
 
कूड़े में उच्छिष्ट है, बीने बालक दीन। 
अक़्सर दिखता दृश्य है, अपने में सब लीन॥
 
बिखरी भू पर पतल हैं, फैली होती रोज़। 
मिलकर चाटे दीन हैं, कैसा है यह भोज॥
 
ऊपर रखते स्वाद जो, करते भोजन नष्ट। 
सोचो इस बारे तनिक, क्यों देते हो कष्ट॥
 
परहित का बस शोर है, थोथा देते ज्ञान। 
समझो क़ीमत अन्न की, करना है अब दान॥
 
उत्तमता का भाव हो, निर्धनता अभिशाप। 
भरना सबका पेट ही, आदत यह नायाब॥

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