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गाथा वीर अभिमन्यु की

 

छल-प्रपंच के युद्ध में कौरवों ने जाल बिछाया
रणनीति बना कान्हा-पार्थ को दूर भिजवाया। 
पांडवों में कौन बिन उनके व्यूह-भेद पाएगा
आज ही हमें विजयश्री-उपहार मिल जाएगा॥
 
पर अभी अभिमन्यु का कीर्ति-गान था अशेष
शौर्य की अद्भुत-गाथा से बनना था उसे विशेष। 
कौरव-सेना को निज पराक्रम दिखलाना था
स्वर्णिम अक्षरों में अभी नाम लिखवाना था॥
 
गर्भ में ही चक्र-भेदन विधि पितृ मुख से सुनी
माँ के सोने पर बाहर आने की कला न जानी। 
समझाया था धर्मराज ने नहीं यह कोई खेल
बड़े-बड़े महारथियों को कैसे पाओगे झेल॥
 
लेकिन वाक्जाल से पांडवों को मना लिया
नेतृत्व में उसके युद्ध-क्षेत्र ओर कूच किया। 
लेकिन पांडवों में कोई उसका साथ न दे पाया
बड़े-बड़े महारथियों मध्य रह एकाकी गया॥
 
अमर्यादित युद्ध को फिर भी जीतने वह चला
अनभिज्ञ था कैसे नियम-भंग से जाएगा छला। 
सोलह वर्ष की आयु में ही अद्वितीय वीर था
एक-एक करके अरि दल को रहा वह चीर था॥
 
विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों से अनवरत रहा लड़ता
अर्जुन-सुभद्रा सुत बढ़ चला सबको हराता। 
शिथिल हुआ, पर पीछे न हटा अभिमन्यु वीर 
तेज़ आँधी सम मार-काट मचा रहा था धीर॥
 
अकेला ही कौरव-सेना पर पड़ रहा था भारी
किसी भी पल डरा नहीं था महा धनुर्धारी। 
बाधा छह द्वारों की उसने कर ली थी पार
रक्तिम हो चली काया, पर मानी न थी हार॥
 
अंतिम द्वार की ओर अब बढ़ चला वह वीर
प्राणों को हथेली पर रख भुलाकर सब पीर। 
बहते रक्त-धार से भी विचलित हुआ न मन
यद्यपि थकान से निढाल हो चुका था तन॥
 
कौरव सेना को नज़र आने लगी थी अब हार
सोचा, छल से ही इससे पा सकते हैं हम पार। 
धोखे से कौरव सेना के होने लगे उसपर वार
अश्व और रथ-सारथी को दिया उन्होंने मार॥
 
उसके धनुष को दिया महारथी कर्ण ने काट
बाणों की तेज़ वर्षा से हो रहे थे उसपर घात। 
सभी महारथियों ने एक साथ किया था वार
ढाल-तलवार से तब उसने किया था प्रहार॥
 
अन्याय से टुकड़े हो गई ढाल और तलवार
निस्तेज न हुई थी अभी भी वीरता की धार। 
अंतिम अस्त्र तब उसने रथ-चक्र को बनाया
चक्र के नष्ट होने पर भी किंचित न घबराया॥
 
विशाल गदा से प्रांरभ किया तब उसने संहार
चहुँओर से उसपर पर हो रहे थे वार पर वार। 
अचानक छल से दुशासन-पुत्र ने प्रहार किया
अचेत अभिमन्यु का मिलकर वध कर दिया॥
 
ओह, युद्ध-नियमों के भंग से आया अवसान
कर्त्तव्य की ख़ातिर हो गया था वह क़ुरबान। 
इतिहास में उसने किया था अद्भुत ही काम
नील अंबर के तले अब किया चिर-विश्राम॥

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