अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

विविध हाइकु – पुष्पा मेहरा – 002

1.
लाई सुनामी
मुरादों से आई 
पहली वर्षा। 
2. 
पढ़ी जो पाती
बादलों ने वर्षा की 
भीगी धरती। 
3.
भिड़े बादल 
फूटे जल मटके 
नहाई धरा। 
4.
भिड़े बादल 
थर्रा उठी बिजली 
बरसे आँसू। 
5.
लौटे जो जेठ 
सूरज से मिल के 
जली माँ धरा। 
6.
विंड चाइम 
किलकारी बच्चों की 
भेदे सन्नाटा। 
7.
पहली वर्षा 
धूल भरी पोशाक 
धो रहे वृक्ष। 
8.
वर्षा धोबन 
आ धो गई पेड़ों के
धूसर वस्त्र। 
9.
आया भूचाल 
हरहराई धरा 
काँपे भूधर। 
10.
वक़्त की चाल
सच के सिर काँटे 
झूठ को ताज। 
11.
लौ विश्वास 
जैसे ही तेज़ करी 
अँधेरा छँटा। 
12. 
जल थी नदी 
आत्मवत सिन्धु में 
लीन हो गई। 
13. 
कच्ची थी नींव 
झेल न सकी तूफ़ाँ 
पल में ढही। 
14. 
पढ़ते रहे 
नशा मुक्ति स्लोगन 
नशे में लोग। 
15. 
उतार वस्त्र 
दिगम्बर हो खड़े 
साधक वृक्ष। 
16. 
साधिका धरा 
अनासक्त हो पड़ी 
धूल में सनी। 
17. 
भड़क उठी 
जेठ का ताव देख 
जंगली हवा। 
18. 
जीभ की आरी 
काट गई रिश्तों के 
समूल वन। 
19. 
सिर न पैर 
बन गई दावाग्नि 
थोड़ी सी गल्प। 
20. 
मन-आकाश 
अन्तर्द्वन्द्व से घिरा 
रुका प्रकाश। 
21.
श्वास–प्रश्वास 
सात चक्रों की ऊर्जा 
जीवन तत्व। 
22. 
तन की वीणा 
साँसों के तारों पर 
हुई मुखर। 
23. 
मन परिंदा 
टूटी–फूटी डाल का 
मोह ना छोड़े। 
24. 
थका सूरज 
आम की फुनगी पे 
निढाल पड़ा। 
25. 
झिरी–झिरी से 
आने को अकुलाती 
रोशन झड़ी। 
26. 
भड़क उठी 
जेठ का ताव देख 
जंगली हवा। 
27. 
रात की रानी 
हवाओं में बाँटती
प्रेम अनंत। 
28. 
थकी सी धूप 
पहाड़ की गोद में 
निढाल पड़ी। 
29. 
कीचड़ काँधो
देती वर्षा सौग़ात 
माटी को जान। 
30. 
बीज में भ्रूण 
देख करे श्रावणी 
बेबी शॉवर।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

15 अगस्त कुछ हाइकु
|

आओ मनायें सारे मिल के साथ दिन ये शुभ  …

28 नक्षत्रों पर हाइकु
|

01. सूर्य की पत्नी साहस व शौर्य की माता…

अक्स तुम्हारा
|

1. मोर है बोले मेघ के पट जब गगन खोले। …

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हाइबुन

कविता-मुक्तक

कविता

कविता - हाइकु

दोहे

कविता - क्षणिका

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं