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आ रहा है गाँधी फिर से

सुनकर  चीख   दुखांत   विश्व  की
तरुण  गिरि  पर  चढ़कर  शंख  फूँकती


चिर  तृषाकुल  विश्व  की  पीर  मिटाने
गुहों में, कन्दराओं में बीहड़ वनों से झेलती
सिंधु   शैलेश  को   उल्लासित  करती
हिमालय   व्योम  को  चूमती, वो देखो!
पुरवाई  आ  रही  है स्वर्गलोक से बहती 

 

लहरा  रही  है  चेतना, तृणों के मूल तक
महावाणी उत्तीर्ण हो रही है, स्वर्ग से भू पर
भारत माता चीख रही है, प्रसव की पीर से
लगता  है  गरीबों   का  मसीहा  गाँधी
जनम  ले  रहा   है, धरा  पर  फिर  से 

 

अब   सबों  को  मिलेगा स्वर्णिम घट से
नव  जीवन  का जीवन-रस,  एक  समान
क्योंकि  तेजमयी  ज्योति बिछने वाली है
जलद  जल  बनाकर  भारत   की  भूमि
जिसके  चरण  पवित्र  से  संगम  होकर
धरती होगी हरी, नीलकमल खिलेंगे फिर से

 

अब नहीं होगा खारा कोई सिंधु, मानव वंश के अश्रु से
क्योंकि  रजत  तरी  पर  चढ़कर, आ  रही है आशा
विश्व -मानव के हृदय गृह को, आलोकित करने नभ से
अब  गूँजने  लगा  है  उसका निर्घोष, लोक गर्जन में
विद्युत  अब  चमकने  लगा  है, जन-जन  के मन में

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