अरमां है, तुम्हारे दर्दे ग़म की दवा हो जाऊँ
शायरी | नज़्म डॉ. तारा सिंह27 Jun 2007
अरमां है, तुम्हारे दर्दे ग़म की दवा हो जाऊँ
कभी फूल, कभी शोला, कभी शबनम हो जाऊँ
तुम्हारी आँखों में रचूँ- बसूँ, तुम्हारे दिल में रहूँ
तुमसे दूर होने की सोचूँ, तो तनहा हो जाऊँ
तुम अब यह न कहना कि अधूरा हूँ मैं
मुझे बाँहों में भरो, तमन्ना करो कि मैं पूरा हो जाऊँ
हर मुहब्बत दुलहन बने, जरूरी तो नहीं
इश्क इबादत है मेरी, कैसे मैं ख़ुदा हो जाऊँ
मुझसे हँस-हँस के लोग पूछते हैं नाम तुम्हारा
ख़ुदा का नाम बता दूँ और रुसवा हो जाऊँ
तुम्हारा प्यार समंदर है, डूबी जा रही हूँ मैं
रोक लो मुझको इससे पहले मैं फ़ना हो जाऊँ
तुम मेरी जान हो, ज़हर दे दो, मगर यह न कहो
यह कैसी बात है, तुम्हारी बात पे ग़ुस्सा हो जाऊँ
ग़म ने खुद आके दिया है सहारा मुझको
मैंने कब माँगा था हाय कि मैं उसकी हो जाऊँ
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