आँख उनसे मिली तो सजल हो गई
काव्य साहित्य | कविता डॉ. तारा सिंह14 Oct 2007
आँख उनसे मिली तो सजल हो गई
प्यार बढ़ने लगा तो ग़ज़ल हो गई
रोज़ कहते हैं आऊँगा आते नहीं
उनके आने की सुनके विकल हो गई
ख़्वाब में वो जब मेरे क़रीब आ गये
ख़्वाब में छू लिया तो कँवल हो गई
फिर मोहब्बत की तोहमत मुझ पै लगी
मुझको ऐसा लगा बेदख़ल हो गई
वक़्त का आईना है लबों के सिफ़र
लब पै मैं आई तो गंगाजल हो गई
'तारा' की शाइरी किसी का दिल हो गई
ख़ुशबुओं से तर हर्फ़ फ़सल हो गई
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