अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच और सिनेमा के चहेते कलाकार सईद जाफ़री की स्मृति में
आलेख | सिनेमा और साहित्य डॉ. एम. वेंकटेश्वर23 Feb 2019
सत्यजित रे की फ़िल्म "शतरंज के खिलाड़ी" (1977) के मीर रोशनअली को कौन भूल सकता है? ठेठ लखनवी नवाबी अंदाज़ में हुक्का गुड़गुड़ाते हुए, सिर पर रूमी टोपी, एक मखमली शाल ओढ़े, शहरी कोलाहल से दूर गोमती के किनारे किसी उजड़े मस्जिद के वीराने में छिपकर मिर्ज़ा सज्जादअली (संजीव कुमार) के साथ शतरंज की बाजी में मस्त, हर दाँव पर एक दूसरे से झगड़ते, पान की गिलौरियाँ मुँह में रखे, शह और मात की पैंतरीबाज़ी में मग्न, मीर रोशनअली की उस छवि को सईद जाफ़री ने ही अमरत्व प्रदान किया। प्रेमचंद के मीर रोशनअली की शक्ल में सईद जाफ़री ने नवाब वाजिदअली शाह के अवध को जीवित कर दिया।
राजकपूर की "राम तेरी गंगा मैली’ के कुंज बिहारी के विद्रोही तेवर को क्या कोई भुला सकता है? सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका में लॉर्ड एटनबरो की महान फ़िल्म "गाँधी’ में सईद जाफ़री ने अपने अभिनय कौशल से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की। सईद जाफ़री अभिनय कला के जादूगर थे। रेडियो, टीवी, सिनेमा और रंगमंच सभी माध्यमों का उन्होंने गहन अध्ययन किया था। भारतीय, ब्रिटिश और अमेरिकी सिनेमा, रंगमंच, टीवी और रेडियो के वे अत्यंत लोकप्रिय और चहेते कलाकार थे। हॉलीवुड और ब्रिटिश सिनेमा में भी उन्होंने अपने अभिनय के जौहर से एक ख़ास मुक़ाम हासिल किया था जो अन्य किसी भारतीय कलाकार को आज तक हासिल न हो सका। हिंदी में उन्होंने लगभग सौ फ़िल्मों में चरित्र अभिनेता के रूप में अपार ख्याति अर्जित की। हिंदी सिनेमा में एक सशक्त चरित्र अभिनेता के रूप में साईद जाफ़री का एक विशिष्ट स्थान रहा है। उर्दू, अंग्रेज़ी, हिंदी के साथ फ्रेंच भाषा पर भी उनका विशेष अधिकार था। उनके संवाद की शैली पात्रोचित हुआ करती थी ख़ासकर रंगमंच के अनुभव से वे संवादों की गति और उसके आरोह और अवरोह को पूरी तरह से नियंत्रित कर एक विशेष प्रभाव पैदा करते थे।
सईद जाफ़री भारत में जन्मे ब्रिटिश कलाकार थे। छ: दशकों तक वे अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच और सिनेमा जगत में कद्दावर अभिनेता के रूप में प्रतिष्ठित रहे। उनमें छोटे से छोटे सी भूमिका में प्राण फूँक देने की अद्भुत कलात्मकता मौजूद थी। हॉलीवुड की मशहूर फ़िल्म रुडीयार्ड किपलिंग कृत "द मैन हू वुड बी द किंग" (1975) में बिली फिश नामक एक गोरखा अनुवादक की भूमिका में सईद जाफ़री ने अपनी विशेष छाप छोड़ी थी। इस फ़िल्म में उन्होंने हॉलीवुड के दिग्गज अभिनेताओं, शॉन कॉनरी और माइकेल केन के साथ मिलकर अपने अभिनय कौशल को प्रमाणित किया। इस भूमिका के लिए सईद जाफ़री को हॉलीवुड में आज भी याद किया जाता है। सईद जाफ़री अपनी खनकदार, रौबीली, गूँजेवाली मोहक आवाज़ के लिए पहचाने जाने थे। उर्दू, हिंदी और अंग्रेज़ी के उच्चारण का उनका अपना एक मोहक और प्रभावशाली अंदाज़ और लहजा हुआ करता था। बीबीसी रेडियो के वे ख्यातिप्राप्त संवादक, निवेदक और पार्श्ववाचक थे। उन्होंने "द आर्ट ऑफ लव" (कामसूत्र) और विक्रम सेठ कृत अंग्रेज़ी उपन्यास "सूटेबल बॉय" का वाचन बीबीसी रेडियो के लिए अपनी दमदार आवाज़ में किया। सूटेबल बॉय उपन्यास के रेडियो रूपान्तरण के लिए सईद जाफ़री ने उपन्यास के 86 पात्रों का वाचकाभिनय भिन्न-भिन्न आवाज़ों में कर दिखाया जो आज भी बीबीसी रेडियो, लंदन की धरोहर है। 1980 से 1990 के दशक के बीच वे ब्रिटेन के सर्वोच्च प्रतिष्ठित एशियाई अभिनेता थे। उस दशक में "जेवेल इन द क्राऊन" (1984), "तंदूरी नाइट्स" (1985-87) और "लिटिल नेपोलियन" (1994) टीवी धारावाहिकों ने सईद जाफ़री को ब्रिटेन में अपार ख्याति प्रदान की। हॉलीवुड के जेम्स आइवरी और इस्माइल मर्चेन्ट जैसे दो विख्यात निर्माता, निर्देशकों को जोड़ने का गुरुतर प्रयास कर, उनकी फ़िल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं।
हिंदी फ़िल्मों में सईद जाफ़री का प्रवेश सन् 1977 में सत्यजीत रे द्वारा प्रेमचंद की कहानी शतरंज के खिलाड़ी के फ़िल्मी रूपान्तरण से हुआ। इस फ़िल्म में उन्हें अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ सहनायक का फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड प्राप्त हुआ। फ़िल्म "चश्मे बद्दूर" (1981) में पानवाले की छोटी सी भूमिका से उन्होंने दर्शकों के दिलों में स्थायी स्थान बना लिया। राजकपूर निर्मित राम तेरी गंगा मैली (1985), और हेना (1991) की अपार सफलता में सईद जाफ़री के अभिनय का महत्वपूर्ण योगदान है। सईद जाफ़री ऐसे प्रथम एशियाई कलाकार हुए जिन्हें ब्रिटेन और कैनेडा के सिनेमा जगत में अभूतपूर्व सम्मान प्राप्त हुआ।
सईद जाफ़री का जन्म पंजाब के मलेरकोटला में 8 जनवरी 1929 को हुआ। उनके नाना अंग्रेज़ों के अधीन मलेरकोटला रियासत के दीवान थे। सईद के पिता डॉ. हमीद हुसैन जाफ़री अंग्रेज़ सरकार के अधीन भारत के संयुक्त प्रांत के स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टर थे। डॉ. हमीद जाफ़री का तबादला अकसर संयुक्त प्रांत के विभिन्न शहरों में होता रहता जिस कारण उनका समूचा परिवार भी उनके साथ इन शहरों में जा बसता था। इस सिलसिले में सईद को मुजफ्फरपुर, लखनऊ, मिर्ज़ापुर, कानपुर, अलीगढ़, मसूरी, गोरखपुर और झांसी जैसे शहरों में रहने का मौका मिला। सन् 1938 में सईद जाफ़री ने अली
गढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मिंटो सर्कल स्कूल में दाख़िला लिया। यहाँ वह नाट्यकला के प्रति आकर्षित हुआ। वह स्कूल के नाटकों में भाग लेने लगा। स्कूल में खेले गए औरंगज़ेब नाटक में उसका दाराशिकोह का अभिनय काफ़ी सराहा गया। अलीगढ़ में ही सईद जाफ़री ने उर्दू में प्रवीणता हासिल की। वहाँ के सिनेमा घरों में सईद का परिचय हिंदी फ़िल्मों से हुआ। उसे बचपन से ही फ़िल्मों का शौक था। उस समय के विख्यात अभिनेताओं में पृथ्वीराज कपूर, निडर नाडिया, कानन बाला, दुर्गा खोटे, नूर मोहम्मद और मोतीलाल, सईद जाफ़री के प्रिय अभिनेता बन गए।
सन् 1941 में मसूरी के चर्च ऑफ़ इंग्लैंड के वाइनबर्ग एलेन स्कूल में सईद को प्रवेश मिला जहां वह ब्रिटिश शैली की अंग्रेज़ी और उसके लहजे को सीखने के लिए काफ़ी परिश्रम किया। मसूरी के उस स्कूल में वह अंग्रेज़ी नाटकों में भाग लेने लगा जिसमें उसे बहुत सफलता मिली। तत्पश्चात सईद को सेंट जॉर्ज कॉलेज मसूरी में अध्ययन का अवसर प्राप्त हुआ, यहाँ भी उसने अंग्रेज़ी रंगमंच से निकटता स्थापित की। सईद जाफ़री ने सन् 1948 में इलाहाबाद विश्वविद्यालाय से बी.ए. और सन् 1950 में एम.ए. की डिग्री हासिल की। 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ तो दिल्ली तथा पंजाब में बसे सईद जाफ़री का परिवार तमाम रिशतेदारों सहित पाकिस्तान में शरण लेने के लिए मजबूर हो गया।
सईद जाफ़री ने अपनी आजीविका सन् 1951 में दिल्ली के ऑल इंडिया रेडियों में उद्घोषक, कार्टूनिस्ट और लेखक के रूप में आरंभ की। इसी वर्ष दिल्ली में ही उन्होने यूनिटी थियेटर नामक एक नाट्य मंडली की स्थापना की जिसमें उन्होने कई अंग्रेज़ी नाटक प्रस्तुत किए। यहाँ मधुर बहादुर नामक अभिनेत्री से उनका परिचय हुआ जो प्रकान्तर से प्रेम में परिवर्तित हुआ। मधुर बहादुर सन् 1953 में मिरान्डा हाऊस दिल्ली से स्नातक डिग्री प्राप्त कर ऑल इंडिया रेडियो में काम कर रही थी। वह भी रंगमंच की प्रख्यात अभिनेत्री के रूप में जानी जाती थीं। मधुर और सईद ने दिल्ली में कई अंग्रेज़ी नाटकों में साथ अभिनय किया। मधुर 1955 में इंग्लैंड के रॉयल एकेडेमी ऑफ ड्रेमेटिक आर्ट में नाट्यकला का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चली गई। इसके बाद उसी वर्ष सईद जाफ़री को भी अमेरिका का प्रतिष्ठित फुलब्राइट फ़ेलोशिप प्राप्त हो गया और वे भी नाट्यकला के अध्ययन के लिए अमेरिका चले गए। सईद जाफ़री ने अमेरिका के कैथलिक यूनिवर्सिटी से सन् 1957 में "नाट्य विधा’ में द्वितीय स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की। इसके साथ ही सईद जाफ़री वाशिंगटन में शेक्सपियर के नाटकों के मंचन के लिए अमेरिका की एक नाट्य मंडली के स्थायी सदस्य बनकर देशाटन करने लगे। सईद जाफ़री ऐसे प्रथम भारतीय थे जिन्होंने अमेरिका के विभिन्न शहरों में शेक्सपियर के नाटकों को वहाँ के राष्ट्रीय कलाकारों के साथ मिलकर मंचन किया और उन नाटकों में स्वयं अभिनय किया। अमेरिका में "रोमियो जूलियट" और "टेमिंग ऑफ द श्रू" नाटकों में सईद जाफ़री के अभिनय को सराहा गया। सन् 1958 में सईद जाफ़री और मधुर बहादुर विवाह सूत्र में बँध गए। किन्तु ये दोनों 1966 में अलग हो गए। सईद जाफ़री ने तलाक़ ले लिया। सईद और मधुर के तीन बेटियाँ हैं – मीरा, ज़िया और सकीना। सकीना जाफ़री एक मशहूर अभिनेत्री हैं जिन्होंने पिता सईद जाफ़री के साथ एक केनेडियन फ़िल्म "मसाला" (1992) में अभिनय किया।
सईद जाफ़री इंग्लैंड, अमेरिका और भारत के बीच यात्राएँ करते रहे और वे लंदन के ब्रॉडवे से लेकर अमेरिका के प्रख्यात थियेटरों में अपने नाट्य कौशल से रंगमंच की दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करते रहे। अभिनय कला उनकी आत्मा में रच-बस गई थी। थियेटर, सिनेमा और टीवी, तीनों प्रारूपों में वे नित नवीनता लिए प्रस्तुत होते थे। उन्हें उर्दू शेरो-शायरी से प्रेम था, फ़ारसी भाषा के वे जानकार थे। उनके प्रिय शायर मिर्ज़ा ग़ालिब थे जिसका ज़िक्र वे अक्सर करते थे। सईद जाफ़री का जीवन अनेक विषमताओं से भरा रहा है उनके जीवन में काफ़ी उतार-चढ़ाव आए। वे प्रकृति और प्रवृत्ति दोनों से यायावरी स्वभाव के थे, रंगमंच और अभिनय के लिये किसी भी सीमा तक जा सकते थे। इसी कारण कई बार उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों से भी गुज़रना पड़ा। आर्थिक कठिनाइयाँ भी झेलनी पड़ीं। उनके बिखरे एकाकी जीवन को स्थिरता प्रदान करने में जेनिफर सोरेल का महती योगदान है, उन्होंने जेनिफर सोरेल से सन् 1980 में विवाह कर लिया। जेनिफर के साथ सईद जाफ़री का दांपत्य जीवन अंत तक सुमधुर बना रहा। जेनिफर एक मुक्त पत्रकार और सिनेमा जगत से जुड़ी हुई ख्यातिप्राप्त निर्देशिक भी हैं।
सईद जाफ़री की चर्चित और उल्लेखनीय हॉलीवुड फ़िल्मों में द मैन हू वुड बी द किंग (1975), गाँधी (1982), ए पैसेज टु इंडिया, फार पेवेलियन्स (1984), द रेज़र्स एड्ज (1984), माई ब्यूटीफुल लांड्रेट (1985) आदि हैं।
सईद जाफ़री की आत्मकथा "सईद : एन एक्टर्ज़ जर्नी" सन् 1998 में प्रकाशित हुई जिसमें उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष और सफलता की यात्रा को उकेरा है। टीवी, सिनेमा और रंगमंच के इस महान कलाकार ने 86 वर्ष की आयु में लंदन में 15 नवंबर 2015 को इस संसार को अलविदा कह दिया।
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