नहर में बहती लाशें
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा डॉ. एम. वेंकटेश्वर4 Feb 2019
पुस्तक : नहर में बहती लाशें (कहानी संग्रह)
लेखक : राजू शर्मा
प्रकाशन : 2013, राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड,
7/31, अंसारी मार्ग दरियागंज, नई दिल्ली 110002
पृष्ठ : 260, मूल्य : 350/-
"नहर में बहती लाशें" चर्चित कथाकार राजू शर्मा का नवीन कहानी संग्रह है। वे लीक से हटकर लिखने वाले ऐसे रचनाकार हैं जो प्रचलित परिपाटियों, मुहावरों, आशयों से सुविधाओं से वीतराग दूरी बनाते हुए अभिव्यक्ति के बेपहचाने बीहड़ रास्ते तलाश करते हैं। "हलफ़नामे" और "विसर्जन" -दो उपन्यास तथा "शब्दों का खाकरोक" और "समय के शरणार्थी" - कहानी संग्रहों की रचना के अतिरिक्त कथाकार राजू शर्मा के विशेष रुझान के क्षेत्र, रंगकर्म और फ़िल्म-स्क्रिप्ट लेखन भी हैं।
प्रस्तुत कहानी संग्रह में क्रमश: "नहर में बहती लाशें, आई टी ओ क्रासिंग, जलन, कहानीकार और यूक्लीड और दावौस : एक घटता हुआ अफ़साना" शीर्षक से पाँच लंबी कहानियाँ संग्रहीत हैं। ये कहानियाँ विस्तृत कथानक, जटिल शिल्प और विशिष्ट भाषा-शैली की दृष्टि से लघु-उपन्यास का कलेवर लिए हुए हैं।
राजू शर्मा इन कहानियों के द्वारा यथार्थ का उत्खनन करते हैं। इस प्रक्रिया में वे धारणाओं, विमर्शों और निष्कर्षों से टकराते हैं। जटिल रचनात्मक जद्दोजेहद के बाद वे किसी वृत्तान्त के बहाने समय का अप्रत्याशित चेहरा प्रकट करते हैं। इन कहानियों को "निरी साहित्यिक संरचना" कहना संभवत: इनकी सार्थकता को सीमित करना होगा। राजनीति, अर्थशास्त्र, संस्कृति, प्रशासन, परंपरा और आधुनिकता की प्रखर समझ के कारण राजू शर्मा अपनी कहानियों में वैयक्तिक और सामुदायिक संघर्षशील चेतना को विकसित करने में सफल हुए हैं।
"नहर में बहती लाशें" कहानी संग्रह की प्रतिनधि लंबी कहानी है जो नेहरू युग के हरित क्रान्ति के सपने को पूरा करने की दिशा में निर्मित विश्वविख्यात "भाखड़ा नंगल बाँध" (दुनिया का दूसरा सबसे ऊँचा कंक्रीट ग्रेविटी बाँध) के निर्माण काल की घटनाओं से जुड़ी है। एक कथा में अनेकों अंतर्कथाएँ इसमें गुँथी हुई हैं। कथावाचक श्यामल घोष का यात्रा वृत्तान्त अनेक रोचक कथाओं को जन्म देता है। इस कहानी का कोई केंद्र नहीं है। भाखड़ा नंगल बाँध का एक मोनोग्राफ़ कथावाचक के हाथों लगता है और उसमें से अनेक रहस्य खुलते जाते हैं। "उस रोज़ रात में मोनोग्राफ़ वह दो बार पढ़ गया। एक दुर्लभ, दिल से लिखा, निजी दस्तावेज़ था वो; भाखड़ा के मानो गर्भ से निकला स्मरण : अनेक वृत्तान्त, संस्मरण और अचरज भरी तकनीकी जानकारियाँ। एक ऐसा व्यक्ति अपनी यादें छोड़ रहा था जिसने ज़िंदगी की साँझ में असंभव बीड़ा उठाया और उस पर क़ायम रहा।" (पृ. 15) नेहरू जी द्वारा भाखड़ा नंगल बाँध के निर्माण की ज़िम्मेदारी वैज्ञानिक, डॉक्टर सचज्ञान को सौंपने की घटना कहानी का मुख्य हिस्सा है। मोनोग्राफ़ में सचज्ञान ने नेहरू के साथ कई आत्मीय और कामकाजी मुलाक़ातों का ज़िक्र किया था। यह मोनोग्राफ़ इस कहानी को आगे बढ़ाता है।
सतलुज को बाँधने के लिए भाखड़ा की परिकल्पना तो 1908 में शुरू हो गई थी। इरादे और योजना की निरंतर कशमकश चालीस वर्ष चलती रही। भाखड़ा नंगल की निर्माण अवधि 1951 से 1963 कही जाती है। सबसे बड़ा योगदान सचज्ञान का यह था की उसके साहसी और अभिनव प्रस्ताव पर बाँध बनाने से पूर्व ही भाखड़ा की नहर प्रणाली बनाकर तैयार हो गई। किसानों को अपने खेत सींचने का फ़ायदा पहले दिन से मिला। इस बाँध से निकली नहर के साथ जगसिंह और जगवीरा की मार्मिक प्रेम कहानी जुड़ी है। जब से होश सँभाला और पैरों पर खड़ा हुआ, जगसिंह नहरों का बेशक़ीमती रखवाला था। उसके जैसा गोताखोर और मेकैनिक पूरे हलक़े में नहीं था। जगसिंह के बाद सुक्खा गोताखोर उस इलाक़े में मशहूर होता है। सुक्खा और कमलकौर की एक और प्रेम कहानी का ख़ुलासा होता है। सुक्खा का कमलकौर के प्रति त्यागमय प्रेम "उसने कहा था" के लहनासिंह की याद दिलाता है। सुक्खा, नहर में डूबे कमलकौर के आदमी की लाश ढूँढ निकालने के लिए जान की बाज़ी लगा देता है किन्तु निकाल नहीं पाता है। सुक्खा फ़कीर का यह ख़ुलासा चौंका देने वाला है - "हमारे पंजाब में किसी भी वक़्त नहरों में सैकड़ों लाशें लावारिस बह रही हैं। बस इतनी सी बात है : जो नसीब वाले हैं, उन्हें अपनों की लाशें मिल जाती हैं और जिनके नसीब फूटे हैं उन्हें थाह नहीं मिलती।" (पृ. 36) श्यामल को यह सुनकर आश्चर्य होता है की लाशें नहर की पूरी लंबाई बह जाती हैं, सौ मील की दूरी, उन्हें कोई नहीं रोकता, न देखता है, यह रोज़ का टंटा है, बदबू से बचाने के लिए नाक पर रूमाल ज़रूरी है और कनाल के कारिंदे जाली के गेट उठा लेते हैं ताकि लाश उनके इलाक़े से रुख़सत हो। सुक्खा सिर्फ़ इन नियामक सिद्धांतों का व्यवहारिक पक्ष बता रहा था जब उसने कहा की नहरों के किनारे पुलिस की हैसियत तमाशबीन की है, तभी पीड़ित परिजन अगर खोज कराते हैं तो भरोसेमंद गोताख़ोरों की। नहरों के भी अपने मोड़ और मिज़ाज है। कई जगहें हैं जहाँ पहुँचकर लाशें ख़ुद-ब-ख़ुद फँस जाती हैं या किनारे लग जाती हैं। ऐसे गाँव अब मुरदों के डेरे के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसी तरह इस संग्रह की अन्य सभी कहानियों के कथानकों की बुनावट जटिल और अनेक परतों में ढली है।
इस संग्रह की कहानियों में आश्वस्तकारी वैविध्य है। यह विविधता उस एकरूपता-एकरसता का निषेध है जिससे कई बार हिंदी कहानी आक्रांत हो उठती है। नेहरू युगीन संकल्पों-स्वप्नों के मोहभंग से लेकर एकांत में स्पंदित आसक्तियों के संगीत तक इन रचनाओं का विस्तार है। इनमें प्रेम और आकर्षण के अद्भुत चित्र हैं। सर्वोपरि यह है कि राजू शर्मा भाँति-भाँति से उस सार्थकता का अनुसंधान करते हैं जो व्यक्ति, समाज और व्यवस्था में विलुप्तप्राय सी हो गई हैं।
राजू शर्मा की इन कहानियों का भाषा-पक्ष अति-विशिष्ट है। कथानुकूल संप्रेषणीय भाषा संयोजन, उनके अपने गढ़े मुहावरों और अभिव्यक्तियों के साथ पठनीयता को सरस बनाए रखता है, इसीलिए भाषा भी राजू शर्मा की रचनात्मक उपलब्धियों का एक आयाम है। अभीप्सित अर्थ के सर्वाधिक निकट पहुँचती, गद्य की अद्भुत लय से संपन्न और सर्जनात्मक दार्शनिकता से युक्त कथा-भाषा, प्रस्तुत कहानी संग्रह को विशेष महत्त्व प्रदान करती है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"कही-अनकही" पुस्तक समीक्षा - आचार्य श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी
पुस्तक समीक्षा | आशा बर्मनसमीक्ष्य पुस्तक: कही-अनकही लेखिका: आशा बर्मन…
'गीत अपने ही सुनें' का प्रेम-सौंदर्य
पुस्तक समीक्षा | डॉ. अवनीश सिंह चौहानपुस्तक: गीत अपने ही सुनें …
सरोज राम मिश्रा के प्रेमी-मन की कविताएँ: तेरी रूह से गुज़रते हुए
पुस्तक समीक्षा | विजय कुमार तिवारीसमीक्षित कृति: तेरी रूह से गुज़रते हुए (कविता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
शोध निबन्ध
पुस्तक समीक्षा
- अबलाओं का इन्साफ़ - स्फुरना देवी
- चूड़ी बाज़ार में लड़की
- थर्ड जेंडर : हिंदी कहानियाँ
- दर्द जो सहा मैंने
- नवजागरण के परिप्रेक्ष्य में रवीन्द्रनाथ ठाकुर का कालजयी उपन्यास "गोरा"
- नहर में बहती लाशें
- पुरुष तन में फंसा मेरा नारी मन : मानोबी बंद्योपाध्याय
- प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन
- फरिश्ते निकले - नारी शोषण का वीभत्स आख्यान
- फाइटर की डायरी : मैत्रेयी पुष्पा
- शव काटने वाला आदमी
- साक्षी है पीपल
- स्त्री जीवन के भोगे हुए यथार्थ की कहानी : 'नदी'
साहित्यिक आलेख
- अज्ञेय कृत "शेखर - एक जीवनी" का पुनर्पाठ
- कृष्णा सोबती हशमत के जामे में
- छायावाद के सौ वर्ष
- निराला की साहित्य साधना और डॉ. रामविलास शर्मा
- पुरुष के जीवन में स्त्री की पात्रता
- प्रवासी कथा साहित्य में स्त्री जीवन की अंतर कथा
- प्रवासी कथा साहित्य में स्त्री जीवन की अंतर कथा
- भारतीय साहित्य में अनुवाद की भूमिका
- भारतीय सिनेमा को तेलुगु फिल्मों का प्रदेय
- मुक्तिबोध की काव्य चेतना
- मुड़-मुड़के देखता हूँ... ... और राजेन्द्र यादव
- विश्व के महान कहानीकार : अंतोन चेखव
- वैश्वीकरण के परिदृश्य में अनुवाद की भूमिका
- सामयिक चुनौतियों के संदर्भ में नई सदी के हिंदी उपन्यास
- स्वप्न और आत्म संघर्ष की आत्माभिव्यक्ति : "अँधेरे में"
- हिंदी कथा-साहित्य में किन्नर स्वर
सिनेमा और साहित्य
- अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच और सिनेमा के चहेते कलाकार सईद जाफ़री की स्मृति में
- अपराजेय कथाशिल्पी शरतचंद्र और देवदास
- अमेरिकी माफ़िया और अंडरवर्ल्ड पर आधारित उपन्यास: गॉड फ़ादर (The Godfather)
- इंग्लैंड के महान उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस की अमर कृति "ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स"
- एमिली ब्राँटे का कालजयी उपन्यास : वुदरिंग हाइट्स
- ऑस्कर वाईल्ड कृत महान औपन्यासिक कृति : पिक्चर ऑफ़ डोरिएन ग्रे
- खेतिहर समुदायों के विस्थापन की त्रासदी : जॉन स्टाईनबैक की अमर कृति "ग्रेप्स ऑफ़ राथ"
- गॉन विथ द विद - एक कालजयी उपन्यास और सिनेमा
- चीन के कृषक जीवन की त्रासदी
- टॉलस्टाय की 'अन्ना केरेनिना' : कालजयी उपन्यास और अमर फिल्म
- डी एच लॉरेंस की विश्वविख्यात औपन्यासिक कृति : लेडी चैटरलीज़ लवर
- तेलुगु की सर्वकालिक लोकप्रिय पौराणिक फ़िल्म ‘मायाबजार‘
- दासप्रथा का प्रथम क्रांतिकारी विद्रोही - ‘स्पार्टाकस’
- द्वितीय महायुद्ध में नस्लवादी हिंसा का दस्तावेज़ : शिन्ड्लर्स लिस्ट
- फ्रांसीसी राज्य क्रान्ति और यूरोपीय नवजागरण की अंतरकथा : ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़
- बेन-हर (BEN-HUR) - रोम का साम्राज्यवाद और सूली पर ईसा मसीह का करुण अंत
- बोरिस पास्टरनाक की अमर कृति 'डॉ. ज़िवागो'
- भारतीय सिनेमा और रवीन्द्रनाथ टैगोर
- भारतीय सिनेमा में 'समांतर' और 'नई लहर (न्यू वेव)' सिनेमा का स्वरूप
- भूमंडलीकरण और हिन्दी सिनेमा
- युद्धबंदी सैनिकों के स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम की अनूठी कहानी : "द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई"
- विश्व कथा साहित्य की अनमोल धरोहर "ले मिज़रेबल्स"
- विश्व की महान औपन्यासिक कृति ‘वार एंड पीस‘ (युद्ध और शांति)
- शॉर्लट ब्रांटे की अमर कथाकृति : जेन एयर
- स्त्री जीवन की त्रासदी "टेस - ऑफ द ड्यूबरविल"
- फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की की अमर औपन्यासिक कृति "द ब्रदर्स कारामाज़ोव"
यात्रा-संस्मरण
अनूदित कहानी
सामाजिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं