प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा डॉ. एम. वेंकटेश्वर8 Jan 2019
केंद्रीय हिंदी शिक्षण मण्डल के उपाध्यक्ष :
प्रेमचंद साहित्य के समर्पित आचार्य ’डॉ. कमल किशोर गोयनका’
समीक्षित ग्रंथ : प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन
लेखक : डॉ. कमल किशोर गोयनका
प्रकाशक : नटराज प्रकाशन, ए/98 अशोक विहार, फेज़- प्रथम
दिल्ली – 110052
पृष्ठ : 760
मूल्य: 250/-
डॉ. कमल किशोर गोयनका हिंदी साहित्य जगत में प्रेमचंद विशेषज्ञ के रूप में अपनी एक अंतरराष्ट्रीय छवि निर्मित कर चुके हैं। उन्होंने देश विदेश में प्रेमचंद के व्यक्तित्व एवं उनके सम्पूर्ण साहित्य के मर्मज्ञ आलोचक और आधिकारिक विद्वान के रूप में ख्याति अर्जित की है। प्रेमचंद साहित्य की अधिकांश पाण्डुलिपियों के वे संग्राहक एवं संरक्षक हैं। उन्होंने अपना सारा जीवन प्रेमचंद साहित्य के अध्ययन, अध्यापन एवं शोध को ही समर्पित किया है। प्रेमचंद साहित्य के विविध पक्षों पर उनके द्वारा रचित आलोचनात्मक ग्रंथ प्रेमचंद साहित्य को समग्र रूप से समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे एक मात्र ऐसे प्रेमचंद विशेषज्ञ हैं जिन्होंने प्रेमचंद विश्वकोश की पाँच खंडों में रचने की परिकल्पना की और इस चुनौतीपूर्ण कार्य को संपन्न करने का बीड़ा उठाया। इस विश्वकोश के दो खंड प्रकाशित हो चुके हैं शेष तीन खंड प्रकाशनाधीन हैं। निजी कठिन संघर्षपूर्ण प्रयासों से वे अपने जीवन के इस एकीकृत लक्ष्य को साधने में लगे हुए हैं। उनका प्रेमचंद प्रेम, प्रेमचंद साहित्य संबंधी सामग्री के संचयन एवं समर्पित आलोचना दृष्टि से स्वत: सिद्ध हो जाता है। वर्तमान में वे केंद्रीय हिंदी शिक्षण मण्डल के उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं। इस पद पर डॉ. कमल किशोर गोयनका के मनोनयन लिए भारत सरकार विशेष रूप से अभिनंदनीय है।
डॉ. कमल किशोर गोयनका द्वारा प्रेमचंद साहित्य के विविध पक्षों पर रचित विशाल आलोचनात्मक ग्रन्थों की शृंखला में ’प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ एक महत्त्वपूर्ण वृहत्तम विश्लेषणात्मक शोध का परिणाम है। प्रेमचंद की संपूर्ण कहानियों के कालक्रमानुसार अध्ययन का यह एकमेव प्रथम प्रयास है। इससे पूर्व किसी आलोचक ने इस दृष्टि से कहानियों को कालक्रम में पढ़ने तथा परखने की चेष्टा नहीं की है। प्रेमचंद की कहानियों को उनके रचनाक्रम में परखने से तत्कालीन सामाजिक स्थितियों के क्रमिक विकास या ह्रास के प्रति प्रेमचंद की सोच को समझा जा सकता है। समय के साथ-साथ भारतीय ग्रामीण एवं नगरीय जीवन में परिवर्तन होते रहे, जिन्हें प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में प्रसंगानुकूल कथानकों के द्वारा प्रस्तुत किया। प्रेमचंद ने जिस रूप में अपनी कहानियों में ग्रामीण पात्रों को गढ़ा, इसका आकलन रचना काल की पृष्ठभूमि में ही सही रूप में संभव है। प्रेमचंद के मध्य वर्गीय और निम्न वर्गीय पात्रों की परिकल्पना के पार्श्व में ’रचना-समय’ के परिवेश प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। इस सूक्ष्मता की जाँच करने के लिए डॉ. कमल किशोर गोयनका का प्रस्तुत ग्रंथ एक उपयोगी साधन है। निश्चित रूप से हर रचना पर रचना-समय एवं उस रचना के क्षण विशेष में रचनाकार की मानसिकता रचना में प्रतिबिंबित होती है। इसका आकलन प्रस्तुत ग्रंथ का प्रतिपाद्य है जिसे डॉ. कमल किशोर गोयनका ने अपनी विशेष आलोचना दृष्टि से रेखांकित किया है। लेखक की यह स्थापना महत्त्वपूर्ण है कि "प्रेमचंद के ’मानसरोवर’ के आठ खंडों में भी कहानियाँ कालक्रमानुसार संकलित नहीं हैं, अत: किसी भी आलोचक के लिए कालक्रम से कहानियों के अध्ययन की कोई संभावना नहीं रह गई थी। अत: कहानियों पर दिए गए उनके निष्कर्ष एवं आलोचनात्मक अवधारणाएँ भी निर्मूल, निरर्थक तथा भ्रमोत्पादक बनाकर रह जाती हैं।"
’प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ पहला प्रामाणिक अध्ययन है, जो प्रत्येक कहानी को कालक्रम में देखता है और परखता है। यह कहानी के पूर्वापर संबंधों के रहस्यों को उद्घाटित करता है। प्रेमचंद द्वारा रचित प्रत्येक कहानी को प्रस्तुत अध्ययन में समान महत्त्व दिया गया है। प्रस्तुत आकलन में हर कहानी की संवेदना, उसकी आत्मा तथा लेखकीय दृष्टिकोण का विस्तृत विवेचन किया गया है। प्रेमचंद की उपलब्ध 298 कहानियों की रचना-प्रक्रिया, उनकी मूल चेतना, उनके युग संदर्भ, तथा लेखकीय अभिप्रेत की, कहानी के पाठ के आधार पर समीक्षा की गई है तथा इसमें पुरानी मान्यताओं की परीक्षा के साथ कुछ नई अवधारणाएँ प्रमाणों, तथ्यों एवं तर्कों के आधार पर स्थापित की गई हैं। प्रेमचंद कथा साहित्य के अध्येताओं एवं शोधार्थियों के लिए यह ग्रंथ आवधारणात्मक मौलिक दृष्ट प्रदान करता है। यह ग्रंथ सिद्ध करता है कि डॉ. कमल किशोर गोयनका निश्चित ही प्रेमचंद साहित्य के निर्विराम एवं अविश्रांत परिशोधक हैं।
डॉ. कमल किशोर गोयनका
प्रेमचंद के जीवन, विचार तथा साहित्य के अनुसंधान एवं आलोचना के लिए आधी शताब्दी अर्पित करने वाले, देश-विदेश में ’प्रेमचंद –विशेषज्ञ’ के रूप में विख्यात; प्रेमचंद पर 25 पुस्तकें तथा अन्य हिंदी साहित्यकारों पर 23 पुस्तकें : ’प्रेमचंद के उपन्यासों का शिल्प विधान, प्रेमचंद : विश्वकोश (खंड -2), प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य (खंड – 2), प्रेमचंद : चित्रात्मक जीवनी, प्रेमचंद कहानी रचनावली (खंड-6),प्रेमचंद अंछुए प्रसंग, प्रेमचंद :वाद, प्रतिवाद और संवाद आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के लेखक हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त होकर साहित्य साधना में संलग्न।
केंद्रीय शिक्षण मण्डल के उपाध्यक्ष पद प्राप्त के उपलक्ष्य में भास्वर भारत परिवार की ओर से बधाई और अभिनंदन।
एम वेंकटेश्वर
9849048156
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