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विश्व कथा साहित्य की अनमोल धरोहर "ले मिज़रेबल्स"

फ्रांसीसी कथाकार "विक्टर ह्यूगो" कृत "ले मिजरेबल्स" को 19 वीं शताब्दी का महानतम उपन्यास कहलाने का श्रेय प्राप्त है। इसे विश्व के पाँच सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में स्थान प्राप्त है। "विक्टर मारिए ह्यूगो" (1802-1885) फ्रांसीसी स्वच्छंदतावादी युग के विश्वविख्यात कवि, नाटककार और उपन्यासकार थे। विश्व में उन्होंने एक अप्रतिम फ्रांसीसी साहित्यकार के रूप में ख्याति अर्जित की। फ्रांस में ह्यूगो की ख्याति मूलत: कवि के रूप में व्याप्त है किन्तु विश्व में वे अपने उपन्यासों एवं नाटकों की विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने सौ से अधिक ग्रन्थों की रचना की जिसमें नाटक, उपन्यास और काव्य बड़ी संख्या में विद्यमान हैं। उनकी अनेक रचनाएँ मरणोपरांत भी प्रकाशित हुईं। उनका समस्त साहित्य, अंग्रेज़ी और इतर भाषाओं में अनूदित हुआ है और आज भी विश्व भर में इन्हें बड़े चाव से पढ़ा जाता है। प्रारम्भ में वे विचारों से राजतंत्र के पक्षधर थे। किन्तु कालांतर में उनके विचारों में परिवर्तन हुआ और वे लोकतंत्रीय विचारधारा के प्रबल समर्थक बन गए। उनका साहित्य सम-सामयिक राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों को निर्भीकता से प्रतिबिम्बित करता है। विक्टर ह्यूगो का बचपन तत्कालीन राजनीतिक उथल-पुथल के मध्य गुज़रा। उसके जन्म के दो वर्षों बाद ही "नेपोलियन" फ्रांस का सम्राट घोषित किया गया। ह्यूगो के पिता नेपोलियन की सेना में उच्च सैनिक अधिकारी थे।

ह्यूगो का पहला उपन्यास "नाट्रेडेम डि पेरिस" (अंग्रेज़ी में - हंच बैक ऑफ नाट्रेडेम) सन् 1831 में फ्रांस में प्रकाशित हुआ और शीघ्र ही वह अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनूदित होकर साहित्य प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बना। यह उपन्यास फ्रांस के ह्रासोन्मुख कलाओं के प्रति फ़्रांसीसियों की उदासीनता को व्यक्त करता है। इस उपन्यास ने फ्रांस में उपेक्षित और लुप्त होती भवनों की भव्यता को कलात्मक रूप से पुनर्जीवित करने में प्रेरक की भूमिका निभाई। इसके पश्चात ह्यूगो ने फ्रांसीसी समाज में व्याप्त सामाजिक अन्याय और राजनैतिक दमन और अत्याचार का जीवंत चित्रण करने के उद्देश्य से एक कालजयी वृहत्काय उपन्यास लिखने की योजना बनाई। "ले मिज़रेबल्स" वह ऐतिहासिक उपन्यास है जिसे ह्यूगो ने सन् 1815 में लिखना शुरू किया और जो उसके सत्रह वर्षों के कठिन परिश्रम और दार्शनिक चिंतन का परिणाम है। फ्रांस की निम्न और मध्य वर्गीय सामाजिक दुर्दशा का व्याख्यान प्रस्तुत करने वाला यह उपन्यास अपने वृहत्तम स्वरूप में सन् 1862 में दुनिया के सामने "ले-मिज़रेबल्स" के नाम से प्रकट हुआ। ह्यूगो ने इस उपन्यास को लिखने के लिए अपना सारा जीवन दांव पर लगा दिया। वे इसे एक महान रचना के रूप में साकार करना चाहते थे। विश्व साहित्य में विक्टर ह्यूगो को सर्वाधिक ख्याति इन दो औपन्यासिक कृतियों से ही प्राप्त हुई।

"ले मिजरेबल्स" तत्कालीन फ्रांसीसी इतिहास, संस्कृति, राजनीति और समाज की व्याख्या करने वाला ऐतिहासिक उपन्यास है जिसमें एक समूचा युग समाया हुआ है। ह्यूगो ने इस कृति में तत्कालीन राजनैतिक अराजकता, निरंकुशता का विरोध, नैतिकता संबंधी दार्शनिक दृष्टि, न्याय और धर्म आदि के परिप्रेक्ष्य में मानवीय संवेदनाएँ, पारिवारिक-जीवन, त्याग और सेवा जैसे मानवीय मूल्यों के इतिहास को रचा है।
ह्यूगो ने उपन्यास की भूमिका में मनुष्यता के प्रति अपने हृदय के उद्गार इस प्रकार व्यक्त किए हैं – "जब तक कानून या परंपरा के कारण सामाजिक बहिष्कार और निंदा, जो पृथ्वी को नरक बनाकर सभ्यता के चेहरे को कलंकित करती है, जो मनुष्य की नियति को जटिल बनाती है; जब तक हर युग में तीन समस्याओं -- मनुष्य का गरीबी के कारण पतन, भूख से स्त्री का विनाश, और शारीरिक और मानसिक वेदना से ग्रस्त किसी के बचपन को रौंद देने की अमानवीयता - का समाधान नहीं मिलता है, और जब तक पृथ्वी पर अज्ञानता और कृपणता मौजूद है तब तक ऐसी कृतियाँ निरर्थक नहीं हो सकतीं।"

"ले मिज़रेब्ल्स" उपन्यास मूलत: "ज्यां वालज्यां" नामक एक ऐसे पुराने कैदी की मार्मिक कहानी है जो ईमानदार व्यक्ति बनकर, भलाई की मिसाल बनता है किन्तु अपने आपराधिक अतीत से वह पीछा नहीं छुड़ा पाता। यह विशालकाय उपन्यास है जिसका मूल संस्करण पाँच जिल्दों के 48 खंडों, 365 अध्यायों और लगभग 1500 पृष्ठों (अंग्रेज़ी संस्करण) में रचा गया। इसके फ्रांसीसी संस्करण के पृष्ठों की संख्या 1900 है। इसके कई संक्षिप्त संस्करण सभी भाषाओं में मिलते हैं। इस उपन्यास का अनुवाद हिंदी में "विपत्ति के मारे" शीर्षक से किया गया है। विक्टर ह्यूगो ने इस उपन्यास के माध्यम से बलपूर्वक कहा है कि मनुष्य के प्रति दासता और अत्याचार का व्यवहार किसी भी समाज के लिए अक्षम्य और अस्वीकृत है। ऐसे सामाजिक अत्याचारों की कोई भौगीलिक सीमाएँ नहीं होती और दुनिया के मानचित्र की रेखाएँ इस अमानवीय दुराचार के लिए कोई मायने नहीं रखतीं। मनुष्य जाति के घाव जो सारी दुनिया में अपने निशान छोड़ती हैं, ये किसी सीमा रेखा से थमती नहीं हैं। जहाँ मनुष्य की अज्ञानता और असहायता है, जहाँ औरतें पेट भरने के लिए अपना तन बेचती हैं, जहाँ बच्चों को शिक्षा के लिए पुस्तकें नहीं नसीब होतीं, जहाँ ठंड से बचने के लिए उन्हें थोड़ी सी गर्मी नहीं मिलती, ऐसे हर दरवाज़े पर "ले मिज़रेबल्स" दस्तक देता है और कहता है - "खुल जाओ, मैं तुम्हारे लिए यहाँ हूँ।"

"ले मिज़रेबल्स" उपन्यास के नायक "ज्यां वालज्यां" ह्यूगो के जीवन से जुड़े एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के चरित्र पर आधारित है। वह व्यक्ति "यूजीन फ्रेंकोई विडोक" नामक एक धनी, बलवान कारोबारी था जो अतीत में एक सज़ा याफ़्ता मुजरिम था और जो कालांतर में कई कारखानों का मालिक बनकर गरीबों की सहायता में लग गया था। "यूजीन विडोक" के जीवन की घटनाओं को ह्यूगो ने उपन्यास के नायक "ज्यां वालज्यां" के जीवन में ढाल दिया। ऐसे ही इस उपन्यास के कुछ अन्य पात्र भी ह्यूगो के जीवन से जुड़े हैं। सन् 1841 में ह्यूगो एक वेश्या को गिरफ्तारी और पुलिस जुर्म से बचाकर उसकी सहायता करता है। उपन्यास में "फेंटीन" को पुलिस के अत्याचार से बचाकर अपने संरक्षण में लेने की घटना, ह्यूगो ने अपने जीवन की इसी घटना से ली है जिसका ज़िक्र स्वयं उन्होंने किया है। सन् 1832 के पेरिस विद्रोह को ह्यूगो पेरिस की सड़कों पर देखा था। विद्रोह और मुठभेड़ के ऐसे दृश्य उपन्यास में साकार बने हैं। इस उपन्यास का फ़लक अति विशाल और अति विस्तृत है, जो मुख्यत: फ्रांस की सभ्यता और संस्कृति को तत्कालीन सामाजिक - राजनीतिक परिवेश में व्यापक धरातल पर प्रस्तुत करता है। इसमें मूल कथा के साथ अनेकों अंतर्कथाएँ साथ-साथ चलती हैं, जिसका निर्वाह लेखक ने कलात्मक ढंग से किया है। उपन्यास का कथानक बहुत ही सशक्त है जो तद्युगीन चेतना और भावबोध को तीव्रता से व्यक्त करता है। लेखक ने एक पुराने कैदी के प्रतिशोधात्मक मानसिकता में खोई हुई मानवीय संवेदनाओं को जगाकर, क्रूरता और कुटिलता के स्थान पर दया, ममता और करुणा के भाव पैदा कर मनुष्यता की परिभाषा गढ़ी है।

उपन्यास का प्रारम्भ सन् 1815 के फ्रांसीसी उपनगरीय वातावरण में होता है। "ज्यां वालज्यां" 19 वर्षों की सज़ा काटकर पेरोल पर छूटकर जेल से बाहर आता है। उसे अपनी बहन के भूखे बच्चों के लिए रोटी चुराने के अपराध में पाँच साल की सज़ा हुई थी, लेकिन इस दौरान जेल से चौदह बार भागने के जुर्म में उसकी सज़ा चौदह साल और बढ़ा दी जाती है। मूसलाधार बारिश की घनी अंधेरी रात में वह ठंड और भूख से बिलखता हुआ गाँव के हर दरवाज़े पर दस्तक देता है किन्तु उसे कोई सहारा नहीं देता। उस हाल में उसे एक अजनबी गाँव के पादरी का दरवाज़ा खटखटाने को कहता है। पादरी उसके लिए अपना दरवाज़ा खोलकर उसे सुस्वादु भोजन कराकर गरम बिछौना सोने के लिए मुहैया कराते हैं। बरसों से जेल की कठोरता झेलने वाले उस भूखे को अचानक भरपेट भोजन और सोने के लिए गर्म बिछौना उसे स्वर्गिक सुख का अनुभव कराते हैं। किन्तु उसके भीतर छिपी हुई प्रतिशोधात्मक प्रवृत्ति उसे उस रात एक बार फिर अपराध करने के लिए बाध्य करती है। वह पादरी के घर से चाँदी की वस्तुएँ चुराकर भाग खड़ा होता है, लेकिन सुबह होते ही पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है। पुलिस उसे सामान सहित पादरी के समक्ष पेश करती है। गिरफ्तारी से पहले पुलिस पादरी से पूछताछ करती है। किन्तु पादरी रात के उस भूखे मुसाफिर को पुलिस के हाथों में सौंपने के बदले, उसको घर के भीतर से चाँदी की अन्य वस्तुओं को भी लाकर देते हुए कहते हैं कि वह उन वस्तुओं को रात को ले जाना भूल गया था। पादरी उसे यह कहकर विदा करते हैं कि "उसकी रक्षा ईश्वर ने अच्छे कर्मों के लिए की है इसलिए निश्चित ही वह एक नया मनुष्य बनेगा।"

"ज्यां वालज्यां" पादरी के व्यवहार से हतप्रभ हो जाता है। उसी क्षण उसके भीतर की आत्मा जाग उठती है। यह घटना समूचे उपन्यास की कथावस्तु को नियंत्रित तथा संचालित करती है। उपन्यास का कथ्य ज्यां वालज्यां के इसी चारित्रिक गुण पर आधारित है।

"ज्यां वालज्यां" को कानून के अनुसार नियत समय पर पुलिस को हाज़िरी देनी थी किन्तु वह इस नियम को तोड़कर एक नया जीवन शुरू कर देता है। कुछ वर्षों के बाद वह "मोंशेयर मेडेलाइन" के नाम से एक धनी कारख़ाना मालिक के रूप में अपनी नई पहचान बनाकर उभरता है। वह अपने परोपकारी विनम्र स्वभाव से उस कस्बे वालों का चहेता बन जाता है। वह हर गरीब की सहायता करने वाला एक दानी और समाज सेवी व्यक्ति बनाकर सुखी जीवन व्यतीत करने लगता है। लेकिन नियति उसे इस तरह चैन से नहीं रहने देती। उपन्यास में उसका प्रतिद्वंद्वी "यावर्ट" नामक एक क्रूर, कानून का अंधभक्त पुलिस अधिकारी जो "ज्यां वालज्यां" की जेल में निगरानी करता था, वह उसी नगर में पुलिस अधिकारी बनकर आता है। उसे पहले ही दिन से "ज्यांज वालज्यां" पर शक होता है लेकिन उसे "मोंशेयर मेडेलाइन" के नए रूप में वह स्वीकार कर लेता है। मेडेलाइन के कारखाने में "फेंटीन" नामक एक गरीब औरत अपनी बेटी को पालने के लिए निकट के गाँव में एक परिवार को सौंपती है। क्योंकि वह एक अविवाहित माँ थी इसलिए वह चोरी से अपनी असलियत छिपाकर उस कारखाने में काम करती है। लेकिन साथ की औरतें उस पर अनैतिक और कुलटा होने का प्रचार कर उसे काम से निकलवा देती हैं। वह किसी प्रकार बेटी की सुरक्षा के लिए पैसे जुटाकर अपना निर्वाह करने का प्रयास करती है। शरीर का सौदा करते करते वह बीमार होकर एक दिन अत्याचारी पुलिस अधिकारी "यावर्ट" के हाथों पड़ जाती है। "मोंशेयर मेडेलाईन" मेयर होने के नाते न्यायिक अधिकार भी रखते थे इसलिए वह फेंटीन को यावर्ट के चंगुल से छुड़ा कर अपने संरक्षण में ले लेता है। उसे फेंटीन की दर्द भरी कहानी मालूम होती है। उसकी नन्ही सी बेटी "कॉसेक" एक अत्याचारी "थेनेर्डियर्स" दंपति के हाथों बंधक बनी रहती है। "फेंटीन" किसी तरह अपनी बच्ची "कॉसेक" को थेनेर्डियर्स के बंधन से छुड़ाने की गुहार मोंशेयर मेडेलाइन (ज्यां वालज्यां) से करती है। वह फेंटीन को वचन देता है कि वह कॉसेक को उसे सौपेगा। लेकिन ठीक इसी समय घटनाचक्र एक नया मोड़ लेता है। "ज्यां वालज्यां" के नाम का एक अन्य फरार कैदी के पकड़े जाने की खबर मेडेलाइन और यावर्ट दोनों को मिलती है। यावर्ट इस खबर को मेडेलाइन तक पहुँचाता है और मेडेलाइन के संबंध में उसके मन के संदेह को गलत बताकर माफी माँगता है। किन्तु मेडेलाइन किसी निर्दोष व्यक्ति को उसके बदले में सज़ा मिलने की संभावना को देखकर उसे बचाने के लिए पड़ोस के शहर में जाकर भरी अदालत में स्वयं को फरार "ज्यां वालज्यां" कबूल कर लेता है जिसका परिणाम घातक होता है। फौरन पुलिस अधिकारी "यावर्ट' उसे फिर से जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिए गिरफ्तार करने के लिए मेडेलाइन की हवेली पहुँचता है। इसी बीच परिस्थिति को अपने वश में करने के लिए ज्यां वालज्यां मृतप्राय सी फेंटीन को उसकी बेटी "कॉसेक" को थेनेर्डियर से छुड़वाकर उसके पालन-पोषण का दायित्व स्वीकार करने का वचन देकर वहाँ से निकल जाता है। "यावर्ट' उस स्थिति में भी मृतप्राय सी "फेंटीन" को गिरफ्तार कर जेल ले जाने की कोशिश करता है लेकिन इससे पहले फेंटीन इस दुनिया से चल बसती है। अपनी संपत्ति अपने विश्वासपात्र अनुचर को सौंपकर, आवश्यक धन लेकर ज्यां वालज्यां, थेनेर्डियर को बड़ी रकम देकर नन्ही सी "कॉसेक" को छुड़ाकर उसे अपने साथ लेकर पेरिस की ओर रवाना हो जाता है। इधर "यावर्ट' अपने दलबल के साथ "ज्यां वालज्यां" को खोज निकालने के लिए राज्यव्यापी अभियान शुरू कर देता है। उपन्यास की मुख्य कहानी ज्यां वालज्यां द्वारा कदम-कदम पर जोखिम उठाते हुए, यावर्ट के षडयंत्रों से बचते बचाते बरसों एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने कॉसेक को लेकर भटकता रहता है। वह कॉसेक के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए छिपकर अपने पुराने दोस्त की सहायता से लड़कियों के एक ईसाई कान्वेंट में बागबान का काम करते हुए "कॉसेट" को पढ़ा लिखाकर बड़ी करता है। कॉसेट युवावस्था में पहुँच जाती है किन्तु वह अपने जन्म और माता-पिता की जानकारी से वंचित रहती है। वह ज्यां वालज्यां को ही पिता मान लेती है। "ज्यां वालज्यां" भी उसे अपना सर्वस्व निछावर कर माता-पिता का समस्त प्यार देकर उसकी रक्षा करता है। इसी बीच 1832 का फ्रांसीसी आंदोलन छिड़ जाता है। पेरिस नगर में हर तरफ विद्रोही युवा वर्ग राजशाही को उखाड़ फेंकने के लिए सशस्त्र आंदोलन में कूद पड़ते हैं। "मेरियस" नामक एक उत्साही युवा नेता मित्रों के संग मिलकर जनता को राज सैनिकों के विरुद्ध संघर्ष के लिए तैयार करता है। इन्हीं घटनाओं के बीच "कॉसेक" नाटकीय स्थितियों में "मेरियस" के संपर्क में आती है। "ज्यां वालज्यां" से छिपकर वे दोनों एक दूसरे से मिलते हैं। "यावर्ट' किसी तरह अपने गुप्तचरों से पेरिस में नवागंतुक समाज-सेवी अमीर व्यक्ति की पहचान ज्यां वालज्यां के रूप में कर लेता है और उसे पकड़ने के लिए अपना जाल फैलाता है। इसी बीच अनेक घटनाएँ एक साथ घटती हैं जिनमें "यावर्ट" युवा आन्दोलंकारियों की गिरफ्त में आ जाता है, उसे आंदोलनकारी गोली मारने के लिए आगे बढ़ते हैं। ठीक उसी समय ज्यां वालज्यां वहाँ पहुँचकर "यावर्ट" को उग्र आंदोलनकारी समूह से छुड़ाकर उसे जीवन दान देता है। लेकिन बदले में यावर्ट उसके प्रति कोई नरमी का रुखनहीन अपनाता और उसे गिरफ्तार करने के लिए उसका पीछा करता है। उन्हीं स्थितियों में मेरियस सैनिकों की गोली से जख्मी हो जाता है। जख्मी और बेहोश मेरियस को कंधे पर लादकर "यावर्ट" से बचने के लिए पेरिस की सड़कों के नीचे बने तहख़ानों में से होकर किसी तरह बाहर निकलता है। ठीक वहीं पर उसकी प्रतीक्षा करता हुआ यावर्ट उसे घेर लेता है और गिरफ्तार करने के लिए उसकी ओर बढ़ता है।

ज्यां वालज्यां मेरियस को कॉसेक के पास पहुँचाने के लिए उससे केवल दो घंटों की मोहलत माँगता है उसके बाद वह "यावर्ट" को स्वयं को सौपने के लिए तैयार हो जाता है। "ज्यां वालज्यां" मेरियस को कॉसेक को सौंपकर उसके उपचार की व्यवस्था कर, कॉसेक को अपनी असलियत बताकर वह हमेशा के लिए कॉसेट से विदा हो जाता है। वह कॉसेट को उसकी माँ "फेंटीन" की दर्द भरी कहनी भी सुना देता है। कॉसेक अवाक् होकर आँसुओं में डूब जाती है। ज्यां वालज्यां जब लौटकर "यावर्ट" के पास आता है तो "यावर्ट" अपनी डायरी में दर्ज करता है कि वह आजीवन कानून की रक्षा करता रहा और अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाता रहा। लेकिन आज उसकी स्थिति भिन्न है। उसके कर्तव्य (ड्यूटी) से एक नेक इंसान को जेल जाना पड़ेगा इसलिए कानून के उल्लंघन करने के जुर्म में वह अपने प्राण छोड़ रहा है। ज्यां वालज्यां के ही सम्मुख, "यावर्ट" सामने बहती 'सीन' नदी में कूदकर अपनी जान दे देता है।

उपन्यास के अंतिम भाग में "ज्यां वालज्यां" अपनी सारी संपत्ति कॉसेक को सौंपकर अलग से एकांत में शेष जीवन व्यतीत करता है। यह उपन्यास की केंद्रीय कथा वस्तु है। इसके साथ अनेकों अंतर्कथाएँ साथ चलती हैं , जिसमें अनेकों गौण पात्र भी हैं जो मूलकथा को गति प्रदान करते हैं। अनेक घटनाएँ, फ्रांसीसी क्रान्ति से संबंधित घटित होती हैं। ज्यां वालज्यां के पलायन के मार्ग में उसके कई पुराने मित्र और साथी उसकी जिस तरह से मदद करते हैं उनका कथात्मक वर्णन रोचक है। इस उपन्यास को पढ़ना अपने आप में एक अनुभव और इतिहास से गुज़रने का रोमांच है। ज्यां वालज्यां का चरित ही प्रधान रूप से चर्चा का विषय है जिसमें संसार के सारे दर्शन और मानवीय मूल्य एक साथ समाहित हैं। निश्छल, निश्वार्थ त्याग और परोपकार का ऐसा अद्भुत उदाहरण शायद ही कहीं मिलेगा। आजीवन किसी अनजान व्यक्ति के लिए अपना जीवन जोखिम में डालकर उसके लिए ही अपना जीवन उत्सर्ग कर देने वाला महान चरित्र है ज्यां वालज्यां, हमेशा हमेशा भी याद किया जाएगा। मानवीयता की यह बेजोड़ मिसाल अमर रहेगी।

ऐसे महान उपन्यास को विश्व भर में नाटक, टीवी धारावाहिक और फिल्म में हर पीढ़ी में रूपांतरित किया जाता रहा है। फ्रांस और इटली में इस उपन्यास के कई फिल्मी और नाट्य संकरण बने। हॉलीवुड ऐसी महान कृतियों के फिल्मी पर्दे पर उतारने के लिए सबसे आगे रहता है। सन् 1909 में पहली बार हॉलीवुड में इसे मूक फिल्म के रूप में ऐतिहासिक नाटक बनाकर प्रस्तुत किया गया। इसके बाद इस उपन्यास पर फिल्मों के निर्माण का एक लंबा सिलसिला फ्रांस, इटली, अमेरिका (हॉलीवुड), इंग्लैंड में लगातार चलता रहा। आज तक इस उपन्यास के एक दर्जन से भी ज़्यादा फिल्मी संस्करण विभिन्न भाषाओं में निर्मित हो चुके हैं। भारत में सन् 1955 में इस उपन्यास पर हिंदी में "सोहराब मोदी" ने "कुन्दन" नाम से फिल्म बनाई जो आज तक सराही जाती है। इस फिल्म में कहानी को भारतीय परिवेश में चित्रित किया गया। इसमें "ज्यां वालज्यां" के चरित्र को "कुन्दन" के रूप में परिवर्तित किया गया है, जिसकी भूमिका में स्वयं सोहराब मोदी ने अभूतपूर्व अभिनय किया था। फेंटीन और कॉसेक की भूमिका में निम्मी ने अभिनय किया था। सख्त जेलर की भूमिका, उस ज़माने के मशहूर चरित्र अभिनेता "उल्हास" ने निभाई थी। थेनेर्डियर बने थे "ओमप्रकाश" (साथ में मनोरमा), "मेरियस" के पात्र को सुनील दत्त ने निभाया था। हिंदी में यह फिल्म बहुत लोकप्रिय हुई। हिंदी की यादगार फिल्मों में "कुन्दन" का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतीय दर्शकों के अनुकूल फिल्म की कहानी में थोड़ा सा बदलाव किया गया था।

हॉलीवुड में 1998 में बनी "ले मिज़रेबल्स" आज तक के संस्करणों में सर्वोत्तम मानी जाती है। इसके निर्माता "साराह रेडक्लिफ और जेम्स गोरमेन" तथा निर्देशक "बिली आगस्ट" हैं। इसकी सशक्त पटकथा हॉलीवुड के प्रख्यात पटकथा लेखक "राफेल येग्लेसियस" ने लिखी है। समूचे उपन्यास की मूलकथा को अढ़ाई घंटे की सशक्त फिल्म में रूपांतरित किया गया है जो दर्शकों को बाँधे रखती है। हॉलीवुड के ख्यातिप्राप्त अभिनेताओं ने इस फिल्म के विभिन्न पात्रों को जीवंत कर दिया। नायक "ज्यां वालज्यां" की चुनौतीपूर्ण भूमिका को "लियाम नीसन", कठोर कर्तव्यनिष्ठ फ्रांसीसी पुलिस अधिकारी "यावर्ट" का अभिनय "जेफ्री रष", युवा "कॉसेक" की भूमिका में "क्लेयर डेन्स", फेंटीन का अभिनय "उमा थरमेन" और कॉसेक का प्रेमी युवा विद्रोही "मेरियस पोन्टमेरी" की भूमिका को "हेन्स मेथसन" ने प्रशंसनीय ढंग से निभाया है। इनके अलावा उपन्यास के अन्य सभी प्रमुख और गौण पात्र दर्शकों की चेतना को झकझोरने में सफल हुए हैं। फिल्म में सन् 1830 के समय के इतिहास को बहुत ही सुंदर दृश्यों में प्रस्तुत किया गया है। 1832 की क्रान्ति, ज्यां वालज्यां का कॉसेक को लेकर पलायन और यावर्ट से बचने के प्रयास, पेरिस में मोर्चाबंदी, मेरियस और कॉसेक के प्रेम प्रसंग का संवेदनशील दृश्यांकन, अंत में यावर्ट की सीन नदी में कूदकर आत्महत्या का जीवंत छायांकन दर्शकों की भावनाओं को उद्दीप्त करने में सफल हुआ है।

फिल्म का अंत बड़ा ही करुण और मार्मिक है जब यावर्ट ज्यां वालज्यां से कहता है कि "यह दयनीय है कि कानून मुझे, तुम्हें माफ करने का अधिकार नहीं देता है। मैंने अपना सारा जीवन कानून को बिना तोड़े जीने का प्रयास किया है।" इतना कहकर वह अपने हाथों को स्वयं हथकड़ियों में जकड़कर सीन नदी के बहाव में कूद जाता है। फिल्म को यहीं तक सीमित कर दिया गया है। इसके बाद ज्यां वालज्यां स्वतंत्र हो जाता है। उपन्यास के अंतिम हिस्से को फिल्म में शामिल नहीं किया गया है। फिल्म में दृश्यानुरूप रंगीन परिदृश्य आकर्षक और मोहक हैं। ज्यां वालज्यां दर्शकों के दिलों को छू लेता है। उसका चरित्र मानवीयता की पराकाष्ठा को प्रस्तुत करता है। वह एक साथ संत, त्यागी, तपस्वी, नि:स्वार्थ परोपकारी, निष्कपट, अनुरागी मनुष्य के रूप में दर्शकों के लिए चिरस्मरणीय बन जाता है। "ले मिज़रेबल्स" एक युगांतरकारी उपन्यास है जिसे हर पीढ़ी पढ़ना चाहेगी और यह फिल्म भी एक कालजयी फिल्म बनकर लोगों के दिलों में बसी रहेगी।

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