बूँदों का संगीत
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत बृज राज किशोर 'राहगीर'25 Jun 2017
टिप टिप गिरती
बूँदों का संगीत।
होता है
कानों को सुखद प्रतीत।
झोंके चार
हवा के आकर
चले गए
तन को सहलाकर
भुला न पाए
तपता हुआ अतीत।
आयें बादल
ढोल बजाकर
बरस पड़ें
बिजली चमकाकर
तभी लगेगा
हुई ताप पर जीत।
जीवन में ज्यों
सुख दुख का क्रम
यूँ ही
आते जाते मौसम
सदा सदा से
यही रही है रीत।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
गीत-नवगीत | स्व. राकेश खण्डेलवालविदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
गीत-नवगीत
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं