ख़ुदा का ख़ौफ़ लोगों के दिलों में क्यूँ नहीं दिखता
शायरी | ग़ज़ल बृज राज किशोर 'राहगीर'15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
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ख़ुदा का ख़ौफ़ लोगों के दिलों में क्यूँ नहीं दिखता?
सफ़र ईमान का था, मंज़िलों में क्यूँ नहीं दिखता?
कई दुश्वारियाँ जब पेश आती हैं शरीफ़ों को,
गुनाहों का मुसाफ़िर मुश्किलों में क्यूँ नहीं दिखता?
बड़ी मासूम प्यारी एक बच्ची थी, जिसे मारा
ज़रा सा भी रहम इन क़ातिलों में क्यूँ नहीं दिखता?
समन्दर आएगा तूफ़ान लेकर तो निपट लेंगे,
कभी ऐसा इरादा साहिलों में क्यूँ नहीं दिखता?
मुसीबत ने किसी को भी नहीं छोड़ा ज़माने में,
तनिक सा हौसला फिर बुज़दिलों में क्यूँ नहीं दिखता?
डिनर की प्लेट को लेकर मचा है एक हंगामा,
सलीक़ा आदतन अब महफ़िलों में क्यूँ नहीं दिखता?
ढिंढोरा पीटकर ख़ुद को बड़ा शायर बताते हैं,
अदब का कुछ सिला इन जाहिलों में क्यूँ नहीं मिलता?
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