वन नहीं होंगे अगर
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत बृज राज किशोर 'राहगीर'1 Sep 2022 (अंक: 212, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
वन नहीं होंगे अगर जीवन नहीं होगा।
ऑक्सीजन का जगत में धन नहीं होगा॥
वृक्ष काटे जा रहे हैं बेरहम बनकर।
धूप अब आती नहीं है भूमि पर छनकर।
तापक्रम का कोई अनुशासन नहीं होगा॥
वृक्ष ही हैं जो प्रदूषण से बचाते हैं।
वायुमण्डल श्वास के लायक़ बनाते हैं।
श्वास बिन तो जीव का पालन नहीं होगा॥
प्राकृतिक विध्वंस करके प्रगति के सपने।
हानि का सौदा लगा है हाथ में अपने।
लाभदायक प्रकृति से यह रण नहीं होगा॥
प्रकृति हर आघात का प्रतिशोध लेती है।
आपदा का रूप धरकर त्रास देती है।
क्षुब्ध मन से धैर्य का धारण नहीं होगा॥
हम सभी के वास्ते कल्याणकारी थे।
वनस्पतियों, पेड़-पौधों के पुजारी थे।
लें शपथ, अब अत्यधिक दोहन नहीं होगा॥
वृक्ष हैं सच्चे हितैषी, मित्रता करिए।
वृक्ष कटते देखकर आक्रोश में भरिए।
जागृति बिन कोई परिवर्तन नहीं होगा॥
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