एक मुट्ठी धूप
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत बृज राज किशोर 'राहगीर'15 Jan 2023 (अंक: 221, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
शीत रूपी नृपति सुनिए,
इस बरस पीड़ित जनों पर
कुछ कृपा बरसाइएगा॥
कोहरे के सैनिकों को
साथ लेकर आओगे ही।
सूर्य को बंदी बनाकर
बेड़ियाँ डलवाओगे ही।
जानते हैं, हो निठुर, पर
दयामय शासक सरीखा
आचरण दिखलाइएगा॥
क्रूरता की मूर्ति बनकर
इन दिनों आते रहे हो।
स्वागतोत्सुक याचकों पर
कोप बरसाते रहे हो।
कर रहे हैं यह निवेदन,
न्यूनतम बस एक मुट्ठी
धूप तो दिलवाइएगा॥
व्याप्त होगा भय, नुकीले
तीर सी होगी हवाएँ।
धुँध के विस्तार में, पथ
भूल जाएँगी दिशाएँ।
कँपकँपाती हड्डियों को,
प्राणरक्षक उष्णता की
गूदड़ी पहनाइएगा॥
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