जानता हूँ मैं किसी की लानतें अच्छी नहीं
शायरी | ग़ज़ल बृज राज किशोर 'राहगीर'15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
जानता हूँ मैं किसी की लानतें अच्छी नहीं
पर सुनूँ कब तक कि मेरी आदतें अच्छी नहीं
दोस्तों के साथ कुछ पीना-पिलाना क्या हुआ
बड़बड़ाए लोग ऐसी दावतें अच्छी नहीं
फूल में गूँथा हुआ दिल जब उन्हें भेजा गया
ये कहलवाया तुम्हारी हरकतें अच्छी नहीं
होश से कर बेदख़ल मजनू बना दे आपको
मान लेना आजकल वे चाहतें अच्छी नहीं
बस मुहब्बत की हुकूमत ही सदा क़ायम रहे
आदमी की आदमी से नफ़रतें अच्छी नहीं
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
गीत-नवगीत
सजल
ग़ज़ल
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं