नाम भारत का जगत में
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत बृज राज किशोर 'राहगीर'1 Aug 2022 (अंक: 210, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
नाम भारत का जगत में जगमगाते देखने की।
चाह है माँ भारती को मुस्कुराते देखने की॥
पक्षपाती लेखनी इतिहास लिखवाती रही है।
हम अहिंसा से हुए आज़ाद, बतलाती रही है।
कोटि जीवन हो गए बलिदान उस भीषण समर में,
एक ही इंसान को पर श्रेय दिलवाती रही है।
झूठ पर लटके हुए पर्दे हटाते देखने की।
चाह है माँ भारती को मुस्कुराते देखने की॥
नौनिहालों को नई बातें बताने का समय है।
राष्ट्र-नायक, नायिकाओं से मिलाने का समय है।
क्रूरता के रक्तरंजित सत्य का प्रकटीकरण कर,
फिर महाराणा, शिवाजी को पढ़ाने का समय है।
स्वाभिमानी शीश को ऊँचा उठाते देखने की,
चाह है माँ भारती को मुस्कुराते देखने की॥
देश का प्राचीन वैभव पुस्तकालय से निकालें।
संस्कारों की धरा में उन्नयन के बीज डालें।
सूर्य की संतान हैं हम, सभ्यता के जन्मदाता,
संस्कृति की सनातन गरिमामयी सत्ता सम्भालें।
विश्वगुरु की भूमिका फिर से निभाते देखने की।
चाह है माँ भारती को मुस्कुराते देखने की॥
उठ खड़ा होगा नया भारत नए संकल्प लेकर।
जीत लेंगे हम लड़ाई हौसले अपने बड़े कर।
साधनों की भी कमी बाधा नहीं बन पाएगी अब,
लाँघ जाएँगे समंदर हाथ से किश्तियाँ खेकर।
हर असम्भव लक्ष्य को सम्भव बनाते देखने की।
चाह है माँ भारती को मुस्कुराते देखने की॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
गीत-नवगीत | स्व. राकेश खण्डेलवालविदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
गीत-नवगीत
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं