दृढ़ता की दौड़
काव्य साहित्य | कविता राजीव डोगरा ’विमल’1 Apr 2020
तुम झरना सीखो
या फिर
कुछ करना सीखो।
झर जाओगे
तो जलते
ही रह जाओगे।
कर जाओगे
तो बहुत कुछ
जीवन में
पा जाओगे।
हिम्मत कर
पंथ पे चल
अपने हौंसलों से
जलती घृणा की
इस दीवार को
तोड़ दो।
क़िस्मत के बदलते
रुख़ को
भी अब मोड़ दो।
हिम्मत कर
पंथ पे दौड़
हौसलों की
बुलंद तलवार से
संदेह भरे
घने कानन को
अब चीर दो।
दृढ़ हो
पंथ पे दौड़
अपने मुक़ाम से यूँ
मुख मत मोड़।
पंथ में पड़े
दुविधा के
इस पाषाण को
ठोकरों से अपनी
अब तोड़ दो।
बस हिम्मत कर
आगे बढ़
क़िस्मत के मुख
को अब मोड़ दो।
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