अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

फ्रांसीसी राज्य क्रान्ति और यूरोपीय नवजागरण की अंतरकथा : ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़

विश्व के महान साहित्यकारों में इंग्लैंड के चार्ल्स डिकेंस ( 1812 – 1870) का महत्वपूर्ण स्थान है। डिकेंस की अद्भुत औपन्यासिक कला इंग्लैंड के विक्टोरियन युग की वैभवशाली साहित्यक धरोहर मानी जाती है। उनकी एक दर्जन से ज़्यादा उपन्यासों में उस युग का इंग्लैंड का समूचा समाज समाया हुआ है। उनके उपन्यास युगीन सामाजिक चेतना के प्रतीक हैं। ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स, एडवेंचर्स ऑफ़ ऑलीवर ट्विस्ट, एडवेंचर्स ऑफ़ निकोलस निकल्बी, पिकविक पेपर्स, डेविड कॉपरफील्ड और ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़ उनके कालजयी उपन्यास हैं। चार्ल्स डिकेंस इंग्लैंड के प्रतिनिधि साहित्यकार एवं सामाजिक-चिंतक के रूप में विश्व साहित्य में चिरस्थाई पहचान बना चुके हैं। (फ्रांस), यूरोपीय सभ्यता और संस्कृति के दो गढ़ थे जहाँ युगांतरकारी घटनाएँ घटित हुईं। यह वह दौर था जब दोनों देशों में राजनीतिक और सामरिक प्रतिद्वंद्विता अपने चरम पर मौजूद थी। फ्रांस और इंग्लैंड दोनों अपने राजशाही शासनतंत्र के अधीन था। फ्रांसीसी और अँग्रेज़ दोनों ही जातियाँ में अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत के प्रति गौरव और स्वाभिमान का जुनून व्याप्त था। 

"ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़" जो कि फ्रांसीसी राज्यक्रांति के दौरान लंदन और पेरिस महानगरों के जनजीवन की रोचक कथा है। इस उपन्यास को धारावाहिक रूप में सर्वप्रथम सन् 1859 में अप्रैल से नवंबर के बीच स्वयं लेखक डिकेंस ने अपनी नई पत्रिका ‘ऑल द इयर राऊण्ड’ में प्रकाशित किया। प्रस्तुत उपन्यास तदयुगीन फ्रांसीसी सामंती एवं राजसी शोषण से उत्पीड़ित एवं हतोत्साहित किसानों के उस संघर्ष को चित्रित करता है जो कालांतर में भीषण राज्यक्रांति का रूप धारण कर लेता है। इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप दमन और शोषण के शिकार, किसान और जनसामान्य फ्रांस के राजघरानों और सामंती अभिजात वर्ग को ध्वस्त कर उन्हें फ्रांस की धरती से मिटा देने की मुहिम चलाते हैं। फ्रांस की राज्यक्रांति विश्व पटल पर मध्यकालीन सामंती युगबोध को आधुनिक जनतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्था और सामंती शोषण से मुक्त समाज दर्शन को स्थापित करने कि दिशा में बढ़ाया गया पहला क़दम था। फ्रांस के दार्शनिकों वालटेयर और रूसो ने मनुष्य को जन्म से मूलत: स्वतंत्र घोषित किया किन्तु बाह्य समाज व्यवस्था जिस तरह उसे दासता की जंज़ीरों में बाँधकर उसे बंधक बना देती है, उस बंधन से मुक्त होने की प्रेरणा इन दार्शनिकों ने प्रदान की। फ्रांस से ही विश्व समुदाय में समानता तथा सद्भावनायुक्त समाज की परिकल्पना की गई। फ्रांस की राज्यक्रांति में फ्रांस के किसानों और सामान्य जन समुदाय ने फ्रांस के राजवंश को ख़त्म कर, अभिजात वर्ग को नेस्तनाबूद करने के लिए गृहयुद्ध छेड़ा। फ्रांस में राजवंश से सत्ता छीनकर लोकतन्त्र को स्थापित करने के जनसामान्य के इस प्रयास में समूचा यूरोप इसके परिणामों से प्रभावित हुए बिना नहीं बच सका। पड़ोसी देश इंग्लैंड में भी फ्रांस के इस विप्लव-क्रान्ति की दस्तक सुनाई देने लगी। बहुत सारे फ्रांस के अभिजात वर्ग के लोग क्रांतिकारियों से जान बचाने के लिए भेस बदलकर इंग्लैंड पलायन कर गए। जो नहीं भाग सके उनका बहुत ही बुरा हाल क्रांतिकारियों ने किया। अभिजात और सामंत वर्ग के परिजनों को पेरिस के चौराहे पर, सरेआम "गिलोटिन" से सर काटकर धड़ को अलग कर देने का दंड दे दिया जाता। डिकेंस यूरोपपीय नवजागरण काल के समाज वैज्ञानिक थे। ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़ उपन्यास का परिदृश्य द्विआयामी है। इसका कथानक पेरिस मे उत्पन्न विप्लव-क्रान्ति के इतिहास को प्रस्तुत करता है और इसके साथ ही लंदन में इसके परिणामों से उत्पन्न राजनीतिक व सामाजिक उथल-पुथल का भी चित्रण प्रस्तुत करता है। यह उपन्यास एक साथ यूरोप के दो राजनीतिक व सांस्कृतिक चिंतन के केन्द्रों के बीच छिड़े संग्राम को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से सशक्त कथानक के माध्यम से करता है। डिकेंस की किस्सागोई बहुत ही अलग तरह की प्रवाहमान रोचकता को लिए हुए कथानक को उद्घाटित करती है। डिकेंस की औपन्यासिक कला में दार्शनिकता का प्राचुर्य प्रत्यक्ष दिखाई देता है। ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आदर्श प्रेम और दांपत्य जीवन की कहानी है जिसका परिदृश्य एक ओर अभिजात वर्ग का है तो दूसरी ओर अभिजात वर्ग के प्रति क्रांतिकारियों के उबलते आक्रोश और प्रतिहिंसा का है। उपन्यास के कथानक का केंद्र निरंतर पेरिस और लंदन के मध्य स्थानांतरित होता रहता है। विक्टोरियन युग की प्रेमकथाओं में त्याग और बलिदान के प्रसंग अंग्रेज़ी समाज में मौजूद नैतिक मूल्यों की पुष्टि करते हैं।

‘ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़’ का कथानक जटिल और उलझा हुआ है क्योंकि इसमें अनेक अंतरकथाएँ मूल कथा वस्तु के समानान्तर सक्रिय रहती हैं। चार्ल्स डार्ने नामक पात्र उपन्यास का नायक और लूसी मेनेट नायिका है।

डिकेंस उपन्यास कि अंतर्वस्तु को दो भिन्न परिवेशों में अभूत ही सूझबूझ के साथ विभाजित करते हैं। कथानक एक हिस्सा फ्रांस के पेरिस शहर में घटित होता है तो दूसरा हिस्सा इंग्लैंड के लंदन में। फ्रांसीसी क्रान्ति और विप्लवकारी तत्वों द्वारा अभिजात वर्ग पर आक्रमण और उनकी संपत्ति को छीनकर उन्हें कारावास में डाल देने के प्रकरण पेरिस के फ्रांसीसी परिवेश में इतिहास-दर्शन के माध्यम से डिकेंस चित्रित करते हैं तो इस विप्लव से उत्पन्न स्थितियों की अनुगूँज को लंदन में सुनाई देती है जिसके कारण कथानायक चार्ल्स डार्ने का जीवन नष्ट हो जाता है। क्रान्ति से पूर्व इंग्लैंड और फ्रांस में सौमनस्य और सद्भावना का जो वातावरण मौजूद था वह फ्रांस की राज्यक्रांति से नष्ट हो जाता है। दोनों समाजों में परस्पर एक दूसरे के लिए अविश्वास और घृणा का भाव संचरित होने लगता है। लंदन में बसे प्रवासी फ्रांसीसी अभिजात परिवारों को फ्रांसीसी क्रांतिकारी अवसर पाकर उन्हें पेरिस में सूली (गिलोटिन) पर चढ़ा दिया जाता है। 

उपन्यास का प्रारम्भ पेरिस में लंबे अरसे से क़ैद मनोरोग से ग्रस्त वृद्ध डॉक्टर आलेक्जेंडर मेनेट को पेरिस की काल कोठारी से आज़ाद कर अपने साथ लंदन ले जाने के लिए लूसी मेनेट पेरिस पहुँचती है। लूसी के साथ वृद्ध डॉ. मेनेट का पुराना बैंकर मित्र मिस्टर लॉरी भी पेरिस आता है जिसे मुश्किल से डॉ. मेनेट पहचान पाता है। डॉ. मेनेट क़ैदखाने के अँधेरे में अपनी याददाश्त खो बैठता है किन्तु वह बचपन में बिछुड़ी पुत्री लूसी को उसकी नीली आँखों और ख़ूबसूरत बालों से पहचानने में सफल हो जाता है। लूसी और बैंकर लॉरी डॉक्टर मेनेट को लेकर जहाज़ से लंदन के लिए रवाना हो जाते हैं। 

पाँच वर्ष बाद जॉन बारसद और रोजर क्लाइ नामक दो ब्रिटिश जासूस चार्ल्स डार्ने नामक एक प्रवासी फ्रांसीसी पर देश द्रोह का आरोप लगाकर उस पर लंदन में मुक़दमा कर देते हैं। चार्ल्स डार्ने पर आरोप लगाया जाता है की वह ब्रिटिश सेना से संबंधित गुप्त सूचनाएँ फ्रांसीसियों को मुहैया कराता है। किन्तु चार्ल्स डार्ने बचाव पक्ष के वकील सिडनी कार्टन के प्रयास से निर्दोष के रूप में आरोप से बरी हो जाता। इस प्रकरण में चार्ल्स डार्ने (प्रवासी फ्रांसीसी) और सिडनी कार्टन (ब्रिटिश) के हमशकल होने का संयोग पाठकों को चौंका देता है। 

इधर पेरिस (फ्रांस) में राजनीतिक घटनाएँ तेज़ी से बदलने लगती हैं। राज-परिवार के साथ साथ सामंती और अभिजात वर्ग के प्रति आम जनता में रोष और क्रोध धीरे-धीरे जन-आंदोलन का रूप धारण करने लगता है। रईसों की विलासी जीवन शैली ग़रीबों के हृदय की ज्वाला किसी भी क्षण विप्लवकारी विध्वंस रचने के लिए तत्पर दिखाई देती है। मार्क्वीज़ सेंट एवरमोंड नामक एक घमंडी ज़मींदार अपनी बग्घी पर सवार होकर तेज़ रफ़्तार से पेरिस की सड़क पर भीड़ को चीरकर निकलता है। उस बग्घी के पहियों से गास्पर्ड नामक एक किसान का बालक कुचला जाता है और वहीं दम तोड़ देता है। मार्क्वीज़ बग्घी रोक कर मुआवज़े के रूप में भीतर से एक सिक्का भीड़ में उछालकर चला जाता है। इस घटना से एकत्रित समूह में अभिजात वर्ग के प्रति प्रतिकार की ज्वाला धधक उठती है। उस भीड़ में डिफ़ार्ज और उसकी पत्नी मैडम डिफ़ार्ज नामक एक दंपति उग्रवादी भीड़ का नायकत्व करते हुए अपने आक्रोश और क्रोध को व्यक्त करते हैं और मार्क्वीज़ द्वारा फेंके हुए सिक्के को वापस उछालकर उसकी बग्घी में फेंक देते हैं। यह आगामी क्रांतिकारी घटनाओं की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति थी जिसे डिकेंस ने अन्योक्तिपरक अभिव्यक्ति प्रदान की है। डिफ़ार्ज और उसकी पत्नी मैडम डिफ़ार्ज जन आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले पात्र हैं। मैडम डिफ़ार्ज एक झगड़ालू, कर्कश, कठोर स्वभाव वाली महिला है जो अभिजात वर्ग की कट्टर विरोधी और हिंसा से प्रेरित पात्र है। वह किसी भी अभिजात वर्ग के व्यक्ति को माफ़ नहीं करती। उपन्यास में इन दोनों पात्रों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण और निष्कर्षात्मक सिद्ध होती है।

अपने भव्य प्रासाद में मार्क्वीज़ लौटकर पक्षियों के शिकार करने का लुत्फ़ उठाता रहता है। उससे भेंट करने के लिए आगत भतीजे डार्ने को अपने विचारों से अवगत कराता है। मार्क्वीज़ के अनुसार "दमन और अत्याचार ही उसका जीवन दर्शन है, गुलामी और भय के कोड़ों की मार से ही कुत्तों को काबू में रख सकते हो, जब तक इस प्रासाद का छत सूरज की रोशनी को रोक सकता है तब तक ग़ुलामी और भय का अंधकार बना रहेगा।" 

मार्क्वीज़ सामंती चेतना का प्रतीक है जो दमन और अत्याचार से फ्रांस में अराजकता और अशांति को जन्म दे रहा था। लेखक चार्ल्स डिकेंस ने फ्रांस की राज्य क्रान्ति के कारणों को उपन्यास में वर्णित वर्ग भेद संबंधी व्याख्याओं के द्वारा स्पष्ट किया है। 

उस रात बग्घी दुर्घटना में मृत बालक का पिता गास्पर्ड मार्क्वीज़ के प्रासाद में घुसकर मार्क्वीज़ की निद्रावस्था में हत्या कर फरार हो जाता है। नौ महीनों बाद उसे पकड़कर फांसी दे दी जाती है। उन दिनों पेरिस के चौराहों पर देशद्रोह के अपराधियों को सार्वजनिक फांसी और गिलोटिन (सूली) से गर्दन उड़ा देने की घटनाएँ आम हो चुकी थीं। हर वह व्यक्ति जो अभिजात वर्ग का पक्षधर हुआ करता था वह जनता के लिए देशद्रोही घोषित कर दिया जाता था। 

लंदन में चार्ल्स डार्ने और डॉ. मेनेट की पुत्री लूसी परस्पर एक दूसरे के प्रेम में डूब जाते हैं। डार्ने डॉ. मेनेट से लूसी से विवाह करने की अनुमति माँगता है। किन्तु दूसरी ओर सिडनी कार्टन भी लूसी के सम्मुख अपने प्रेम को व्यक्त करता है। किन्तु जब उसे लूसी और डार्ने के प्रेम का पता चलता है तो वह अपनी प्रेमिका और उसके परिजनों की ख़ुशी के लिए हर तरह त्याग करने का संकल्प करता है। 

डार्ने, लूसी से विवाह के दिन उसके पिता डॉ. मेनेट को अपना और अपने परिवार का असली नाम आदि विस्तार से उद्घाटित करता है, क्योंकि इससे पहले जब भी उसने अपने जीवन की पूर्वकथा डॉ. मेनेट को बताने की कोशिश की थी तो डॉ. मेनेट ने उसे मना कर दिया था। डार्ने और लूसी का विवाह संपन्न हो जाता है। डार्ने का पारिवारिक परिचय जानकर डॉ. मेनेट एकाएक उद्विग्न होकर पुन: अपनी पुरानी विक्षुब्ध मानसिक अवस्था में पहुँच जाता है। डॉ. मेनेट के मन में डार्ने के परिवार से जुड़ी कुछ रहस्यमय यादें दबी रहती हैं जो डार्ने से मिलकर ताज़ा हो जाती हैं। लेकिन डॉ. मेनेट और डार्ने के बीच के पूर्व संबंधों का रहस्य अंत तक बना रहता है। 

डिकेंस ने 14 जुलाई 1789 में पेरिस में क्रांतिकारी आंदोलनकारियों द्वारा फ्रांस के राजप्रासाद और कारागार "बेस्टिल" पर हमले की घटना का विशद वर्णन किया है। इसी घटना से फ्रांस की राज्यक्रांति आरंभ होती है जो कि आगे चलकर यूरोपीय नवजागरण का महत्त्वपूर्ण सोपान बनती है। पेरिस का कारागार "बेस्टिल" अन्याय, अत्याचार और शोषण का प्रतीक बन चुका था। इसी कारण जब आम जनता राजतंत्र के अत्याचारों को सहते-सहते थक जाती है तब उनका आक्रोश अत्याचार के उस गढ़ को ध्वंस करने के लिए उमड़ पड़ता है। डिफ़ार्ज दंपति के नेतृत्व में आम उग्र आंदोलनकारी जन समूह और फ्रांस के सैनिकों के बीच घमासान छिड़ जाता है। बड़ी संख्या में आंदोलनकारी हताहत होते हैं किन्तु आंदोलनकारियों का जन समूह राजघराने का ख़ात्मा कर राजप्रासाद को अपने अधीन करने में सफल हो जाते हैं। पेरिस की सड़कों पर और फ्रांस के अन्य हिस्सों में भी क्रान्ति की उन्माद फैल जाता है। राजघराने और अभिजात वर्ग के सदस्यों को ढूँढ-ढूँढ कर बंदी बनाकर काल कोठरियों में दाल दिया जाता है। जनता की खुली अदालतों में आरोपियों को मृत्यु दंड की घोषणा की जाती है। आंदोलनकारियों के क़ैदखानों में हज़ारों की तादाद में सामंत और अभिजात वर्ग के स्त्री-पुरुष घोर यातनाओं का शिकार हो जाते हैं। डिकेंस ने फ्रांस की राज्यक्रांति की ऐतिहासिक घटनाओं के मध्य इस उपन्यास का कथानक बुना है। फ्रांस की राज्यक्रान्ति और विद्रोह मूलत: वर्ग संघर्ष का ही वृहत रूप था। राजप्रासाद को अपने अधीन करने के उपरांत डिफ़ार्ज राजप्रासाद के उत्तरी बुर्ज में स्थित कुख्यात क़ैदखाने के एक सौ पाँच नंबर की कोठरी में प्रवेश कर किसी गोपनीय सबूत की तलाश करता है। इसी कोठारी में बरसों पहले डॉ. मेनेट को क़ैद करके रखा गया था। डिफ़ार्ज उस कागज़ के पुर्जे की तलाश में था जिसमें डॉ. मेनेट ने अपनी सज़ा के बारे लिख रखा था। 

लंदन में लूसी और डार्ने अपनी नन्ही पुत्री के साथ सुखी पारिवारिक जीवन व्यतीत करते रहते हैं। लूसी-डार्ने की सुविस्तृत आवासीय कोठी में डॉ. मेनेट, लॉरी, सिडनी कार्टन तथा लूसी से विवाह का इच्छुक अभिजात वर्ग का पात्र, स्ट्राइवर आदि अक्सर दिखाई देते हैं। छोटी लूसी को सिडनी कार्टन से विशेष लगाव हो जाता है। 

अचानक चार्ल्स डार्ने के जीवन में एक ऐसा तूफ़ान आता है जो उसके सुखी जीवन में भूचाल पैदा कर देता है। पेरिस में उसका एक पुराना विश्वासपात्र सेवक जिसे आंदोलनकारी अन्यायपूर्वक क़ैद कर लेते हैं, इनसे स्वयं को छुड़ाने के लिए डार्ने की मदद माँगता है और उसे पेरिस बुलाता है। डार्ने अपने सेवक को छुड़ाने के लिए पेरिस जाने का निश्चय पत्नी लूसी को बताता है। लूसी पेरिस की स्थितियों से अवगत होने कारण डार्ने की इस यात्रा से चिंतित हो जाती है। चार्ल्स डार्ने पेरिस में व्याप्त क्रांतिकारियों के हिंसात्मक आंदोलन के बीच पहुँचता है। पेरिस में उसे फ्रांस से भागा हुआ अभिजातवर्गीय फ्रांसीसी घोषित कर उसे डिफ़ार्ज की विद्रोही फौज गिरफ़्तार कर पेरिस के लॉ फोर्स प्रिज़न (जेलखाने) में डाल देती है। लंदन में लूसी को इसकी ख़बर मिलते ही वह पिता डॉ. मेनेट, पुत्री छोटी लूसी और सहायिका मिस प्रोस के लेकर पेरिस पहुँचती है और पिता के मित्र लॉरी से मिलकर पति चार्ल्स डार्ने को आंदोलनकारियों की क़ैद से मुक्त कराने के प्रयत्न में जुट जाती है। किन्तु आंदोलनकारियों की गिरफ़्त से अभिजात वर्ग के सदस्यों को रिहा कराना आसान नहीं था। एक वर्ष तीन महीने बाद डार्ने को आंदोलनकारियों की अदालत में उस पर लगे देशद्रोह के आरोप पर विचार करने के लिए पेश किया जाता है। इस अवसर पर डॉ. मेनेट स्वयं को आंदोलन के पक्षधर के रूप में सिद्ध करने के लिए बरसों पूर्व स्वयं को फ्रांस के शासकों द्वारा ‘बेस्टिल’ के क़ैदखाने में गुज़ारी हुई सज़ा का हवाला देते हैं। इस गवाही से डार्ने निर्दोष साबित होता है और उसे आज़ाद कर दिया जाता है किन्तु कुछ ही क्षणों में उसे दुबारा गिरफ़्तार कर पुन: क़ैदखाने में डाल दिया जाता है। उस पर अगले दिन नए आरोपों के साथ अदालत में लाया जाता है जहाँ डिफ़ार्ज दंपति उसे मर्क्वीज़ सेंट एवरमोंड के भतीजे के रूप में पहचान लेते हैं और उसे भी फ्रांसीसी किसानों पर अत्याचार के आरोप में मृत्यु दंड दिलाने की माँग करते हैं। चार्ल्स डार्ने को मार्क्वीज़ सेंट एवरमोंड का भतीजा सिद्ध करने के लिए डॉ. मेनेट के वे पत्र प्रमाण बन जाते हैं जो डिफ़ार्ज को डॉ. मेनेट के क़ैदखाने की कोठरी से हासिल करता है। 

कथानक के इस मोड़ पर डॉ. मेनेट और मार्क्वीज़ सेंट एवरमोंड के संबंधों के आधार पर डॉ. मेनेट की गवाही को ख़ारिज कर दिया जाता है। पेरिस आकार लूसी की सहायिका मिस प्रास बरसों पूर्व बिछुड़े अपने भाई सालोमन प्रास को पहचान लेती है जो अब जॉन बारसाड के नाम से डिफ़ार्ज के आंदोलनकारी समूह का प्रमुख बन गया था। वह अँग्रेज़ (ब्रिटिश) होते हुए भी फ्रांसीसी क्रांतिकारियों के संग मिलकर जॉन बारसाड के रूप में फ्रांस के लिए जासूसी का काम करता था। उसने ही डार्ने पर देशद्रोह और फ्रांस के ख़िलाफ़ गुप्तचरी का आरोप लगाकर लंदन में मुक़दमा किया था। 

आंदोनकारियों की अदालत चार्ल्स डार्ने को मृत्यु दंड सुनाकर क़ैदखाने में डाल दिया जाता है। अगले ही दिन उसे सार्वजनिक रूप से पेरिस के चौराहे पर गिलोटिन की सज़ा देने की तैयारी की जाती है। डॉ. मेनेट की सारी कोशिशों के बावजूद डार्ने को कारागार से निकालने में सब विफल हो जाते हैं। डॉ. मेनेट पुन: मानसिक विक्षप्तावस्था में डूबकर अपनी बरसों पुरानी मानसिक स्थिति में पहुँच जाते हैं और अपनी नन्ही सी बेटी लूसी के लिए लकड़ी से छोटे-छोटे जूते बनाने में लग जाते हैं। यह विचित्र व्यवहार उनके मनोरोग का परिणाम था, जो उनकी विक्षिप्तावस्था में एक विकृति बनकर उपन्यास में कई संदर्भों में प्रकट होता है। 

इन स्थितियों में लूसी और डार्ने की मदद करने के लिए और डार्ने को कारागार से किसी भी तरह गुप्त रूप से निकाल लाने के लिए सिडनी कार्टर भी लंदन से पेरिस पहुँचता है और लूसी और लॉरी के संपर्क में रहकर डार्ने की आज़ादी के उपाय तलाशता है। कार्टन मैडम डिफ़ार्ज के शराबखाने में जाकर मैडम डिफ़ार्ज की उस घातक योजना का पता लगाता है जिसके अंतर्गत मैडम डिफ़ार्ज डार्ने से बदला लेने के लिए डार्ने के समस्त परिवार (लूसी और उसकी पुत्री) का ख़ात्मा कर देने का षडयंत्र रचती है। कार्टन को पता चलता है की मैडम डिफ़ार्ज, मार्क्वीज़ सेंट एवरमोंड द्वारा बलात्कारित और उत्पीड़ित किसान परिवार की बहन है। उसी रात सिडनी कार्टन डॉ. मेनेट, लूसी और उसकी बेटी को पेरिस से बाहर निकालने के लिए लॉरी से मिलाकर अपनी योजना समझाता है। वह डार्ने को कारागार से किसी भी तरह से निकाल लाने का आश्वासन देता है। वह लॉरी को बग्घी में सबके अन्य लोगों के साथ पेरिस छोड़ने के लिए तैयार रहने के लिए कहता है। उन्हें डार्ने के पहुँचते ही पेरिस से पलायन करने की योजना समझाकर कार्टन अपनी गुप्त योजना को अंजाम देने में लग जाता है। दूसरे दिन सवेरे कार्टन, सालोमन प्रास उर्फ बारसाड से संपर्क कर उसे उसके असली नाम और उसके ब्रिटिश होने के रहस्य को उजागर करने की धमकी देकर उसे अपने वश में कर लेता है। इस रहस्य को उद्घाटित न करने के एवज़ में वह उससे क़ैदखाने में डार्ने से उससे भेंट कराने की व्यवस्था करने की मांग करता है। बारसाड अपने प्रभाव से कार्टन को डार्ने की कोठारी तक पहुँचादेता है। वह क़ैदखाने के बाहर उसकी प्रतीक्षा करता है। क़ैदखाने के भीतर कार्टन डार्ने को मादक पदार्थ से मदहोश कर उसे अपने वस्त्र पहनाकर बारसाड के साथ कारागार से बाहर निकलवा देता है। कारागार के पहरेदार मादक द्रव्य के नशे से चूर डार्ने को कार्टन समझकर बिना रुकावट कारागार से बाहर छोड़ देते हैं। बारसाड मदहोश डार्ने को लूसी और डॉ. मेनेट के पास पहुँचाने में सफल हो जाता है। डॉ. मेनेट और लूसी पुत्री समेत लंदन के लिए पेरिस से रवाना हो जाते हैं। दूसरी ओर मैडम डिफ़ार्ज लूसी और उसकी बेटी की हत्या करने के लिए पिस्तौल लेकर पेरिस स्थित उनके आवास में घुस जाती है। उसके वहाँ पहुँचने के थोड़ी देर पहले ही डार्ने समेत लूसी वहाँ से पलायन कर जाती है। पेरिस स्थित लूसी के ठिकाने पर उसकी सहायिका मिस प्रास से मैडम डिफ़ार्ज का सामना होता है। मिस प्रास और मैडम डिफ़ार्ज के बीच संघर्ष होता है, इस दौरान मैडम डिफ़ार्ज के हाथों के पिस्तौल से गोली चलती है और वह मैडम डिफ़ार्ज को लगती है और वह वहीं ढेर हो जाती है। 

क़ैदखाने में चार्ल्स डार्ने के रूप में सिडनी कार्टन गिलोटिन में मृत्युदंड भोगने के लिए के लिए स्वयं को तैयार कर लेता है। वह डार्ने के बदले उसकी सज़ा को स्वयं स्वीकार कर प्रेम के प्रति अपनी अपने कर्तव्यनिष्ठा का आदर्श प्रस्तुत करता है। उसे थोड़ा भी संकोच या डर नहीं लगता। वह अपने प्रेम के लिए हँसते-हँसते सूली पर चढ़ जाता है। सुबह जब उसे लेने के लिए घोड़ा गाड़ी आती है तो वह बहुत ही ताज़ा और प्रसन्न मुद्रा में दिखाई देता है। तभी उसी के समान गिलोटिन की सज़ा प्राप्त एक भयभीत दर्जिन औरत उसके समीप आकर उसे डार्ने के नाम से पहचान जाती है। किन्तु जब उसे कार्टन के त्याग और बलिदान का पता चलता है तो वह उसकी नि:स्वार्थ साहस और त्याग से अभिभूत हो जाती है और अपने अंत समय में वह कार्टन को साथ रहने की विनती करती है। कार्टन उसे निडर होकर मृत्यु का सामना करने के लिए प्रोत्साहित करता है। वह उसे सांत्वना देते हुए कहता है कि उन दोनों का अंत बिना किसी विलंब के एक ही पल में हो जाएगा। उपन्यास के अंत में सिडनी कार्टन को जनसमूह के बीच चौराहे पर गिलोटिन से मृत्युदंड दे दिया जाता है।

डिकेंस ने अंत में सिडनी कार्टन के अनभिव्यक्त विचारों को प्रस्तुत प्रस्तुत किया है। कार्टन मन ही मन कहता है – "मैं बारसाड को देख रहा हूँ ...... डिफ़ार्ज, और मैडम डिफ़ार्ज ... की फौज, जो पुरानी दमनकारी व्यवस्था को नष्ट कर उसकी जगह उसी के सदृश एक दूसरी दमनकारी शोषण व्यवस्था को स्थापित करने के लिए प्रतिहिंसा और अत्याचार को फैला रहे हैं, इस अराजकता का कभी तो अंत होगा! मैं एक ख़ूबसूरत नगर (पेरिस) और प्रतिभावान लोगों को इस विनाश की गहराईयों से उठता हुआ देख रहा हूँ। वे अपने संघर्ष में पूरी तरह स्वतंत्र होंगे, वे अपनी हार और जीत को सहर्ष स्वीकार करेंगे।" इंग्लैंड और लंदन के लिए कार्टन के मन में प्रेम और सम्मान का भाव मौजूद था जिसे डिकेंस ने उपन्यास के अंत में कार्टन के मनोभावों के माध्यम से पाठकों को अवगत कराया। कार्टन के हृदय में उन सभी पात्रों के लिए विशेष प्रेम और आत्मीयता का भाव विद्यमान था जिसे वह बाह्य रूप से व्यक्त नहीं कर सका था। अंत समय में मन में कार्टन लूसी, डार्मे, डॉ. मेनेट, लॉरी और अन्य सबको स्मरण करता है। 
डिकेंस ने इस उपन्यास में फ्रेंच शैली और मुहावरों का प्रयोग अंग्रेज़ी में किया है। इस उपन्यास की कथा लंदन और पेरिस दो महानगरों की सामाजिकता और सांस्कृतिक परिवेश को चित्रित करता है। ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़ का कथानक मूलत: फ्रांस की राज्यक्रान्ति पर ही आधारित ऐतिहासिक उपन्यास है। डिकेंस ने इस उपन्यास लेखन के लिए थॉमस कार्लाइल के मशहूर ग्रंथ "द फ्रेंच रिवोल्यूशन : ए हिस्ट्री" को आधार बनाया है। इसका उल्लेख डिकेंस ने इस उपन्यास की भूमिका में किया है। फ्रांस की राज्यक्रांति ने यूरोपीय समाज व्यवस्था को बदलकर रख दिया। यूरोप में आधुनिक युग का प्रारम्भ इसी क्रान्ति और विद्रोह से माना गया है। डिकेंस ने इस उपन्यास के माध्यम से फ्रांसीसी और ब्रिटिश संस्कृतियों का तुलनात्मक परिदृश्य प्रस्तुत किया है। उस काल में मौजूद फ़्रांसीसियों और अँग्रेज़ों के परस्पर वैमनस्य और स्पर्धा को यह उपन्यास कलात्मक ढंग से दर्शाता है। 

इस कालजयी उपन्यास को फिल्म और टीवी धारावाहिक के रूप में अपार लोकप्रियता और ख्याति प्राप्त हुई। हॉलीवुड में अंग्रेज़ी में सन् 1957 में पहली फिल्म बनाई गई। इसके बाद निरंतर इस उपन्यास के कई फिल्मी संस्कारण अंग्रेज़ी, फ्रेंच और अन्य भाषाओं में निर्मित हुए। सन् 1980 में अंग्रेज़ी में जिम गोडार्ड द्वारा निर्देशित टेलीफिल्म "ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़" महत्त्वपूर्ण है। 162 मिनट की यह फिल्म समूचे उपन्यास को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है। इसके पात्रों को हॉलीवुड के ख्यातिप्राप्त अभिनेताओं ने अपने अभिनय कौशल से फिल्म के पर्दे पर जीवंत कर दिया। चार्ल्स डार्ने और सिडनी कार्टन की भूमिका क्रिस सारेंडन, लूसी मेनेट का अभिनय एलिस क्रीग, डॉ. मेनेट की भूमिका, उस समय के मशहूर चरित्र अभिनेता पीटर कुशिंग ने निभाया। इस फिल्म में 1789 के समय के पेरिस और फ्रांस के दृश्यों को यथार्थपूर्ण ढंग से दर्शाया गया। फ्रांस की राज्यक्रान्ति और पेरिस के जन आंदोलन के दृश्य फिल्म में विशेष आकर्षण पैदा करते हैं। यह फिल्म डिकेंस के उपन्यास को जीवंत स्वरूप प्रदान करती है। उपन्यास के कथानक के अनुरूप फिल्म की कथा भी उसी गति से आगे बढ़ती है। लंदन और पेरिस के सांस्कृतिक परिवेश को स्थानीय भिन्नता एवं विशिष्टता के साथ प्रस्तुत करने में फिल्म पूरी तरह सफल हुई है। उपन्यास के कथानक में लंदन की अदालत में डार्ने पर लगे आरोपों की बहस रोचक और आकर्षक है। उसी तरह फिल्म के अंत में पेरिस में जन अदालत में डार्ने को गिलोटिन की सज़ा का फैसला रोमांच के साथ साथ करुणा का भाव जगाता है। फिल्म में डार्ने को कार्टन द्वारा बचाने की योजना उस समय के अपराध और जासूसी उपन्यासों एवं फिल्मों की परंपरा को ताज़ा करता है। इस फिल्म की पटकथा में औपन्यासिक रोमांच और नाटकीयता और रोमांस को अक्षुण्ण रखा गया है जो दर्शकों को बाँधे रखता है। इसके लिए फिल्म के पटकथा लेखक जॉन गे सराहनीय हैं। फ्रांस में गिलोटिन द्वारा मृत्युदंड की परंपरा अत्यंत भयावह है। इस परंपरा इंग्लैंड में भी प्रचलित हुई। फिल्म में गिलोटिन से आरोपियों के गर्दन काटने के दृश्य दर्शकों में सिहरन पैदा करते हैं। गिलोटिन की सज़ा अमानवीय नृशंसता का द्योतक है जो यूरोपीय दंड विधान का प्रतीक था। 

ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़ उपन्यास विश्व साहित्य की एक अमर क्लासिक कृति है जिसे आज की पीढ़ी भी बड़े चाव से पढ़ती है। 
 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

शोध निबन्ध

पुस्तक समीक्षा

साहित्यिक आलेख

सिनेमा और साहित्य

यात्रा-संस्मरण

अनूदित कहानी

सामाजिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं